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Sankashti Chaturthi 2025: अप्रैल  में कब रखा जाएगा विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

वैशाख माह की चतुर्थी तिथि के दिन वैशाख संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत कृष्ण पक्ष में रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन कई जातक व्रत भी रखते हैं।

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Mukesh Pandit
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष वैशाख माह की चतुर्थी तिथि के दिन वैशाख संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत कृष्ण पक्ष में रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन कई जातक व्रत भी रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो जातक इस व्रत को रखते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। साथ ही जीवन में चल रही सभी कलह-क्लेश से भी छुटकारा मिल सकता है। यह व्रत विशेष रूप से व्यापारियों के लिए उत्तम फलदायी माना जाता है। अब ऐसे में विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत अप्रैल में कब रखा जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है। आइए जानें  

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कब है विकट संकष्टी चतुर्थी?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का मुहूर्त 16 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से आरंभ हो रहा है और इस तिथि का समापन 17 अप्रैल को दोपहर 03 बजकर 23 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि के हिसाब से विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 अप्रैल को रखा जाएगा। इस दिन साधक भगवान गणेश की पूजा विधिवत रूप से कर सकते हैं और व्रत भी रख सकते हैं। hindu religion | hindi religious festion | Hindu Religious Practices

विकट संकष्टी चतुर्थी कब मनाते हैं?

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विकट गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है, जो वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिदाता’ कहा जाता है। वे बुद्धि, ज्ञान, समृद्धि और शुभता के देवता माने जाते हैं। इस पर्व को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है।

विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन भक्तगण दिनभर व्रत रखते हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं। पूजा विधि इस प्रकार है:

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व्रत की शुरुआत:

प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।

भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।

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पूजन सामग्री:

दूर्वा की 21 गांठ, लाल फूल, लड्डू या मोदक, धूप, दीप, कपूर, अक्षत, रोली आदि।

पूजन विधि:

भगवान गणेश को तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करें।

लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।

ॐ गं गणपतये नमः’मंत्र का जाप करें।

विकट संकष्टी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।

रात को चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य अर्पित करें और व्रत समाप्त करें।

विकट संकष्टी चतुर्थी का महत्व  

विकट संकष्टी शब्द का अर्थ है 'संकटों को हरने वाली'। यह दिन भगवान गणेश के उस स्वरूप की आराधना के लिए होता है जो भक्तों के सभी दुख और विघ्न दूर करते हैं। एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भी यह व्रत रखा था, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और गणेश जी को संकटमोचक रूप में स्थापित किया। यह व्रत मानसिक संतुलन और आत्मबल को मजबूत करता है, जिससे व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सहजता से सामना कर सकता है।

विकट संकष्टी चतुर्थी के लाभ  

जीवन के समस्त कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं। पारिवारिक सुख-शांति और समृद्धि में वृद्धि होती है। संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए फलदायी है। मानसिक तनाव और रोगों से मुक्ति मिलती है। व्रत करने से कार्यों में सफलता और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

संकष्टी चतुर्थी की विशेष बातें  

गणेश जी के इस विकट स्वरूप में शक्ति और साहस की प्रतीकता होती है। यदि यह चतुर्थी मंगलवार को पड़े, तो इसका पुण्यफल कई गुना अधिक माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं परिवार की सुख-शांति और संतान की भलाई के लिए व्रत करती हैं। यह एकमात्र व्रत है जिसमें चंद्रमा को जल अर्पण कर व्रत पूर्ण किया जाता है।

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए. वह बालक ही गणेश बने। माता पार्वती ने गणेश को द्वारपाल बनाकर स्नान करने गईं। इसी दौरान भगवान शिव वहां आए, लेकिन गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर शिव ने उनका मस्तक काट दिया। जब पार्वती को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत दुखी हुईं और प्रलय की स्थिति बन गई। तब भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि गणेश को दोबारा जीवन देंगे और प्रथम पूज्य देवता भी बनाएंगे। बाद में शिव जी ने एक हाथी का मस्तक गणेश को लगाया और उन्हें जीवनदान दिया. इस तरह भगवान गणेश को ‘गजानन’ नाम प्राप्त हुआ और वे प्रथम पूज्य माने गए।

विकट संकष्टी चतुर्थी 

विकट संकष्टी चतुर्थी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मविकास, मानसिक संतुलन और संकटों से लड़ने की शक्ति देने वाला पर्व भी है। यदि आप सच्चे मन से यह व्रत करते हैं, तो न केवल आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि जीवन में स्थिरता और संतुलन भी आता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग- यह योग सभी प्रकार के कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला माना जाता है।
अमृत सिद्धि योग -यह योग किसी भी कार्य को सिद्ध करने और उसमें शुभता लाने के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है।
भद्रावास योग- हालांकि भद्रा को कुछ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष स्थितियों में यह शुभ फलदायी भी हो सकता है।
शिववास योग- इस योग में भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहते हैं, जिससे पूजा और आराधना का फल शीघ्र मिलता है।

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