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नारायण कवच पाठ एक शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है, जो विष्णु पुराण और भगवतम पुराण में वर्णित है। यह श्री विष्णु भगवान के विभिन्न रूपों और नामों का आह्वान करता है, जो साधक की रक्षा के लिए कवच के रूप में कार्य करते हैं। यह पाठ मुख्य रूप से श्री नारायण के दिव्य रूपों का स्मरण करके स्वयं की सुरक्षा, स्वास्थ्य, मानसिक शांति, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।
यह कवच नकारात्मक शक्तियों से बचाता है
यह पाठ एक अदृश्य रक्षा कवच की तरह कार्य करता है, जो साधक को नकारात्मक शक्तियों, बुरी नजर, तंत्र-मंत्र, और बुरे स्वप्नों से बचाता है। जिन लोगों को भय, चिंता, या असुरक्षा की भावना सताती है, उन्हें इसका नित्य पाठ अवश्य करना चाहिए। जब व्यक्ति नारायण कवच का नियमित पाठ करता है, तो उसे मानसिक शांति का अनुभव होता है। इसका उच्चारण चित्त को स्थिर करता है और ध्यान की स्थिति को सशक्त बनाता है। नारायण कवच का पाठ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और रोगों से बचाव करता है। विशेषकर मानसिक रोग, भय, और अनिद्रा जैसे विकारों में यह बहुत लाभकारी है।
कानूनी समस्याओं से बचाता है कवच
व्यक्ति जीवन में कठिनाइयों, शत्रुओं, कानूनी समस्याओं या किसी अनिष्ट के भय से ग्रस्त है, तो नारायण कवच एक रक्षा कवच बनकर उन्हें संकट से उबार सकता है। इसे संकट काल में विशेष रूप से किया जाना चाहिए। यह पाठ न केवल सांसारिक लाभ देता है बल्कि साधक की आत्मा को ईश्वर से जोड़ता है। नारायण के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान साधक के भीतर भक्ति, श्रद्धा और आध्यात्मिक शक्ति का संचार करता है।
नारायण कवच के प्रभाव
इसका पाठ करते समय उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे साधक का आभामंडल शक्तिशाली बनता है। जिन घरों में नकारात्मकता या वास्तु दोष होते हैं वहां अगर नियमित रूप से नारायण कवच का पाठ किया जाए, तो घर का वातावरण पवित्र और शांत हो जाता है। माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु यह पाठ करते हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है।
नारायण कवच पाठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक कवच है, जो व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, और आत्मिक रूप से सशक्त बनाता है। इसका नित्य अभ्यास साधक को नकारात्मकता से दूर रखता है और ईश्वर के सान्निध्य का अनुभव कराता है. श्रद्धा, नियम, और शुद्ध हृदय से किया गया नारायण कवच पाठ जीवन में चमत्कारी परिवर्तन ला सकता है।
नारायण कवच एक संक्षिप्त स्तोत्र
श्री नारायण कवच भगवद पुराण के छठे स्कंद के अध्याय आठ में आता है। श्री नारायण कवच एक संक्षिप्त स्तोत्र है, जिसमें केवल 42 श्लोक हैं। श्री नारायण कवच का पाठ करने से असफलता दूर होती है तथा इस श्री नारायण कवच का पाठ करने से विपत्तियों सेछुटकारा मिल जाता है। इसका जाप करने से सारे दुःख दर्द खत्म हो जाते हैं। यह देखा और अनदेखी हमारे दुश्मनों से खुद को बचाने केलिए एक कवच है।
नारायण कवच
ॐ श्री विष्णवे नमः (तीन बार पढ़ें)
ॐ नमो नारायणाय (तीन बार पढ़ें)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (तीन बार पढ़ें)
आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत।।1।।
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः।।2।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः।।3।।
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः।।4।।
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान्।।5।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात्।।6।।
सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः परूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात्।।7।।
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः।।8।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः।।9।।
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः।।10।।
देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः।।11।।
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः।।12।।
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः।।13।।
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन्।।14।।
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन्।।15।।
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्।।16।।
यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा।।17।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः।।18।।
गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः।।19।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः।।20।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः।।21।।
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया।।22।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः।।23।।
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः।।24।। hindu | hindu god | hindu guru | Hindu festivals | hindu festival