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सावन मास में प्रदोष व्रत और शिव वास योग का संयोग भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस बार 6 अगस्त को सावन का अंतिम प्रदोष व्रत है, जिसमें मंगलकारी शिव वास योग भी बन रहा है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक और पूजन करने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं। दृक पंचांग के अनुसार, शिव वास योग तब बनता है जब त्रयोदशी तिथि पर विशेष नक्षत्र और ग्रहों का संयोग होता है। इस योग में भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहते हैं और उनकी पूजा से साधक को शिव-शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस बार सावन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 6 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 8 मिनट से शुरू होगी। इस दौरान मूल नक्षत्र दोपहर 1 बजे तक और उसके बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र रहेगा। चंद्रमा धनु राशि में संचार करेगा।
भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को धन का लाभ होता है
बुधवार को सूर्योदय 5 बजकर 45 मिनट पर और सूर्यास्त 7 बजकर 8 मिनट पर होगा। इस दिन शिव वास योग में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को धन, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को करने से साधक के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सावन मास में यह व्रत और भी फलदायी होता है, क्योंकि यह शिव की विशेष पूजा का महीना है। धार्मिक ग्रंथों में प्रदोष के पूजन की विधि बताई गई है। इस दिन संध्याकाल में पूजन का विशेष महत्व है।
क्या है पूजा की विधि
प्रदोष के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और बिल्वपत्र अर्पित करें। भांग, काला तिल, गुड़, इत्र, अबीर-बुक्का, फल और मिठाई के साथ अन्य पूजन सामग्री अर्पित कर दीप-धूप जलाएं। इसके बाद भगवान की आरती कर आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद संध्या के समय प्रदोष काल में भी इसी तरह से पूजन करने के बाद शिव कथा सुननी चाहिए। इसके बाद शिव पंचाक्षर ' ओम नमः शिवाय' और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। दिनभर उपवास रखें और फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।
प्रदोष व्रत क्या है ।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को कलियुग में अत्यंत शुभ और भगवान शिव की कृपा का वाहक माना गया है। माह की त्रयोदशी तिथि को सायंकाल का समय प्रदोष काल कहलाता है। मान्यता है कि इस समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं, और देवगण उनकी स्तुति कर उनके दिव्य गुणों का गुणगान करते हैं।
प्रदोष क्या होता है
प्रदोष हिंदू कैलेंडर में हर पखवाड़े के तेरहवें दिन मनाया जाने वाला एक पावन अवसर है, जो भगवान शिव की पूजा से गहराई से जुड़ा है। सूर्यास्त से डेढ़ घंटे पहले और बाद के तीन घंटे की शुभ अवधि को इस दिन शिव आराधना के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, जो इसकी आध्यात्मिक महिमा को बढ़ाती है।
प्रदोष व्रत कथा
प्रदोष व्रत की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। जैसा कि हम सभी जानते हैं इसी समुद्र मंथन के कारण भगवान शिव को हलाहल विष पीना पड़ा था । प्रदोष व्रत कथा समुद्रमंथन या समुद्र मंथन और भगवान शिव द्वारा हलाहल विष पीने से जुड़ी है। अमृत या जीवन का अमृत पाने के लिए, देवताओं और असुरों ने भगवान विष्णु की सलाह पर समुद्र मंथन शुरू किया। समुद्र मंथन से भयानक हलाहल विष उत्पन्न हुआ जो ब्रह्मांड को निगलने की क्षमता रखता था।भगवान शिव देवताओं और राक्षसों के बचाव में आए और उन्होंने हलाहल विष पी लिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता और असुर दोनों ही अमृत की खोज में भगवान विष्णु के पास पहुंचे, भगवान विष्णु के सलाह पर समुद्र मंथन किया गया।
इस समुद्र मंथन में कीमती रत्न, आभूषण इत्यादि देवताओं और असुरों के द्वारा प्राप्त किया गया, साथ ही अमृत और हलाहल विष प्राप्त हुए । यह हलाहल विष इतना ज्यादा जहरीला और खतरनाक था कि यह पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था, इसलिए ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान शिव ने इस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया राक्षसों और देवताओं ने समुद्र मंथन जारी रखा और अंततः चंद्र पखवाड़े के बारहवें दिन उन्हें अमृत मिला।
तेरहवें दिन देवताओं और असुरों ने भगवान शिव को धन्यवाद दिया। माना जाता है कि भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने नंदी बैल के सींगों के बीच नृत्य किया था। जिस समय शिव अत्यंत प्रसन्न थे वह प्रदोष काल या गोधूलि समय था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव इस अवधि के दौरान बेहद प्रसन्न होते हैं और सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल के दौरान उनकी इच्छाओं को पूरा करते हैं।