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eclipse Photograph: (ians)
नई दिल्ली। चंद्र ग्रहण को लेकर धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर चर्चा तेज है। इस बीच लोगों से अपील की गई है कि ग्रहण समाप्त होने तक भोजन, पूजा, और बाहरी गतिविधियों से बचें। ग्रहण के बाद स्नान और दान करने की सलाह दी गई है। आचार्य विक्रमादित्य कहते हैं कि ग्रहण के प्रभाव को राशियों के दृष्टिकोण से बहुत विस्तृत रूप से समझा जा सकता है। 12 राशियों में से प्रत्येक पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
वहीं ,चंद्रग्रहण को लेकर पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य ने बताया कि यह एक खगोलीय घटना है। यह रविवार की रात को 9 बजकर 57 मिनट पर आरंभ होने जा रहा है। यह ग्रहण करीब साढ़े तीन घंटे का रहने वाला है। ग्रहण के समाप्त होने के बाद स्नान करना जरूरी है।
चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना
पीठाधीश्वर ने बताया कि चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। आकाश मंडल में जिस प्रकार ग्रहों का परिवर्तन होता है, उसके अनुसार सूर्य और चंद्रमा के बीच में होने से पृथ्वी पर जो छाया पड़ती है, उसके कारण ग्रहण होता है। इस ग्रहण का प्रभाव हर व्यक्ति और जीव पर पड़ता है। किसी पर सकारात्मक तो किसी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ग्रहणकाल भारतीय ज्योतिष गणना के अनुसार पर्व काल माना जाता है। इस दौरान भगवान के मंत्र जप, साधना और चिंतन के द्वारा पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
कुंभ राशि प्रभावित
पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य के अनुसार रविवार को रात को 9 बजकर 57 मिनट पर चंद्र ग्रहण आरंभ होने जा रहा है। कुंभ राशि में राहु के साथ चंद्रमा की जो युति बन रही है, उसमें यह ग्रहण काल बनेगा। करीब साढ़े तीन घंटे का यह ग्रहण रहने वाला है। यह विशेष समय पर आया है; श्राद्ध से पहले चंद्र ग्रहण और बाद में सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। इन दो ग्रहणों के बीच में 15 दिन का समय चल रहा है, यह बहुत सावधानी भरा है। इसमें कई ग्रहों के परिवर्तन का योग बन रहा है। आने वाले 40 दिनों में विश्व में कई प्रकार से उथल-पुथल होने की संभावना है।
प्रत्येक राशियों में से प्रत्येक पर अलग-अलग प्रभाव
चंद्र ग्रहण पर पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य कहते हैं कि ग्रहण के प्रभाव को राशियों के दृष्टिकोण से बहुत विस्तृत रूप से समझा जा सकता है। 12 राशियों में से प्रत्येक पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि ग्रहण काल के बाद सबसे पहले स्नान करना चाहिए। ग्रहण रात में करीब डेढ़ बजे समाप्त होगा। कहा जाता है कि ग्रहण का दोष लगता है क्योंकि स्नान न करने पर सूतक काल व्याप्त रहता है। भारतीय संस्कृति स्नानमय संस्कृति है। शनि को उतारना है तो ग्रहण के बाद स्नान करना जरूरी है।
सावधानियां बरतने की सलाह
भाद्रपद पूर्णिमा और पितृ पक्ष के अवसर पर 7 सितंबर 2025 को होने वाले वर्ष के अंतिम चंद्र ग्रहण के चलते देशभर में धार्मिक स्थलों पर सूतक काल का पालन किया गया । उत्तर प्रदेश के जौनपुर से महाराष्ट्र के अकोले तक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल में सावधानियां बरती जा रही हैं।
सूतक कालरविवार दोपहर 12:19 बजे से शुरू होने के चलते प्रमुख मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं। पंडितों के अनुसार सूतक काल शुरू होने के साथ ही मंदिर के सभी कपाट दर्शन और पूजन के लिए बंद कर दिए गए हैं। यह प्रक्रिया ग्रहण समाप्त होने तक जारी रहेगी।सोमवार सुबह कपाट पुनः भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। सूतक काल के दौरान पुजारी भगवान का ध्यान और स्मरण करेंगे।
गर्भवती महिलाओं को सलाह
वहीं, दूसरी ओर पुजारी धनंजय ने बताया कि चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ सावधानियां बरतना आवश्यक है। विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को सलाह दी गई है कि वे ग्रहण के समय बाहर न निकलें और न ही कोई धारदार वस्तु का उपयोग करें, क्योंकि माना जाता है कि इससे गर्भस्थ शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।गर्भवती महिलाएं इस दौरान ध्यान और प्रार्थना करें, ताकि शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित हो।"
विज्ञान ग्रहण को एक खगोलीय घटना मानता है, जबकि अध्यात्म इसे ऊर्जा और आध्यात्मिक संतुलन से जोड़ता है। दोनों दृष्टिकोण एक-दूसरे के पूरक हैं। विज्ञान हमें ग्रहण की प्रक्रिया समझाता है, वहीं अध्यात्म हमें इसके दौरान सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने की प्रेरणा देता है।