नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज के पदों के लिए तीन साल की वकालत प्रैक्टिस को जरुरी कर दिया है। प्रैक्टिस के इस नियम को साल 2002 में हटा दिया गया था, लेकिन अब इसे फिर से लागू कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले ने छात्रों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।
छात्रों ने कहा कि कोर्ट को रियल एक्सपोजर जरूरी
BA LLB के थर्ड इयर के एक स्टूडेंट ने कहा कि यह नियम थोड़ा चुनौतीपूर्ण है। लॉ का कोर्स पहले ही 5 साल का होता है। अब इसके बाद 8 साल का हो जाएगा। इससे लॉ करियर काफी लम्बा हो जाएगा। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है कि बिना रियल केस हैंडल किए अगर कोई जज बन जाता है तो उसके फैसलों में गहराई की कमी हो सकती है। छात्र ने कहा कि मुझे लगता है कि यह नियम लंबे समय में फायदेमंद होगा बशर्ते सही ट्रेनिंग और सपोर्ट मिले।
फैसला जरूरी और समय की मांग: न्यायाधीशों व विशेषज्ञों की राय
सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले में कहा है कि पिछले दो दशकों में बिना किसी वकालती अनुभव के सीधे लॉ ग्रेजुएट्स को न्यायिक सेवा में नियुक्त करना प्रभावी साबित नहीं हुआ है। कोर्ट ने इस प्रक्रिया से उत्पन्न समस्याओं का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि जजों को शुरू से ही नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति से जुड़े बेहद गंभीर मामलों की सुनवाई करनी होती है, जिसके लिए केवल किताबी ज्ञान या प्रारंभिक प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं माना जा सकता।
इस फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व न्यायाधीश रिशभ गांधी ने कहा, "मैंने उन न्यायाधीशों के साथ काम किया है जो सीधे लॉ स्कूल से आए थे। उनमें व्यावहारिक अनुभव की कमी साफ नजर आती थी। यह नया नियम न्यायपालिका में पेशेवर दक्षता और गुणवत्ता को बढ़ाएगा।"