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'किसी राह में, किसी मोड़ पर', वो रात जब इंदीवर ने लिखा ‘मेरे हमसफर’ का दिल

गीत संगीत नहीं तो सिनेमा बेरंग हो जाता है। कुछ गीत फिल्म से नहीं, वक्त से जुड़ जाते हैं और ऐसा ही एक गीत है “किसी राह में, किसी मोड़ पर।” मेरे हमसफर का ये गीत दिल से निकला था।

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YBN News
Indeevar lyricist

कुछ गीत ऐसे होते हैं जो दशकों बाद भी दिल पर गहरा असर छोड़ जाते हैं। ऐसा ही एक गीत है मेरे हमसफर फिल्म का टाइटल सॉन्ग। हिंदी सिने जगत की कहानी गीतों के बिना अधूरी है। गीत संगीत नहीं तो सिनेमा बेरंग हो जाता है। कुछ गीत फिल्म से नहीं, वक्त से जुड़ जाते हैं और ऐसा ही एक गीत है “किसी राह में, किसी मोड़ पर।” मेरे हमसफर का ये गीत दिल से निकला था और शायद यही वजह है कि 55 साल बाद भी दिल से निकलने को तैयार नहीं। मेरे हमसफर 13 नवंबर 1970 में रिलीज हुई थी और इसकी कहानी उतनी ही खूबसूरत है जितनी खुद उस फिल्म की। यह गीत सिर्फ एक कहानी का हिस्सा नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा बन गया।

कैसे हुई थी किसी राह पर गीत की रचना...

यह बात खुद गीतकार इंदीवर ने 1980 के दशक में दिए एक साक्षात्कार में याद की थी, जो बाद में किताब “मेलोडी मेकर्स ऑफ हिंदी सिनेमा” (लेखक: गणेश अंजनेयुलु, 1992) में भी दर्ज हुई। उन्होंने बताया था, “मैं पुणे के एक छोटे से होटल में था। रात के करीब बारह बजे बाहर हल्की बारिश हो रही थी। फिल्म की कहानी मेरे मन में घूम रही थी। दो लोग, जो जिंदगी के मोड़ पर बिछड़ते हैं और फिर किसी राह में मिलते हैं। उसी एहसास में मैंने वो पंक्ति लिखी – किसी राह में, किसी मोड़ पर... बस फिर बाकी शब्द अपने आप उतरते चले गए।” कहते हैं ये गीत के बोल महज 20 मिनट में तैयार कर दिए गए।

“इंदीवर, यह तो दिल की जमीन से निकला है।”

अगली सुबह जब उन्होंने यह गीत कल्याणजी-आनंदजी को सुनाया, तो संगीतकार जोड़ी कुछ क्षण खामोश रही और फिर कल्याणजी बोले, “इंदीवर, यह तो दिल की जमीन से निकला है।” उसी दिन धुन बनी, और अगले दो दिनों में यह गीत रिकॉर्ड भी हो गया। उस समय निर्देशक दुलाल गुहा ने अपने असिस्टेंट से कहा था, “अब फिल्म पूरी हो गई। कहानी को जो एहसास चाहिए था, वह मिल गया।”

क्या है गीत के फिल्मांकन की कहानी

फिल्म मेरे हमसफर (1970) के लिए यह गीत सिर्फ एक भावनात्मक टुकड़ा नहीं था, बल्कि पूरी कहानी का प्रतीक बन गया- प्रेम, दूरी और किस्मत की लकीरों का। जब जितेन्द्र और शर्मिला टैगोर पर यह गीत फिल्माया गया, तो कहा जाता है कि शूट के दौरान पूरा सेट कुछ देर के लिए शांत हो गया था। कैमरे के पीछे खड़े दुलाल गुहा ने बाद में एक फिल्मी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था, “वो सीन हम सबको रोक गया। हमें लगा जैसे किसी ने हमारे अपने बिछड़ने की कहानी हमारे सामने रख दी हो।”

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रेडियो सिलोन पर रोजाना बजता रहा यह गीत

फिल्म की रिलीज के वक्त यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि रेडियो सिलोन और विविध भारती पर महीनों तक रोज बजता रहा। हालांकि फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत बड़ी सफलता नहीं हासिल की, लेकिन इस फिल्म को समय के साथ 'क्लासिक' का दर्जा मिला। इसके संवाद, भावनात्मक गहराई और संगीत आज भी उस दौर की सादगी की याद दिलाते हैं।आईएएनएस

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