फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने समाज सुधारकों ज्योतिराव फुले और
सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म ‘फुले’ को लेकर उठे विवादों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत में जातिगत अन्याय और सुधार आंदोलन पर बनी फिल्मों को बार-बार सेंसरशिप और विरोध का सामना क्यों करना पड़ता है। अनुराग ने कहा कि यदि जातिवाद आज मौजूद नहीं है, तो इतिहास में फुले दंपति को इसके खिलाफ क्यों संघर्ष करना पड़ा
सेंसर बोर्ड पर भी उठाए सवाल
अनुराग कश्यप ने ‘फुले’ को दिए गए ‘यू’ सर्टिफिकेट के बावजूद, केंद्रीय फिल्म
प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा सुझाए गए संशोधनों पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा कि ‘फुले’ के अलावा संध्या सूरी की ‘संतोष’, करण जौहर की ‘धड़क 2’, दिलजीत दोसांझ की ‘पंजाब ’95’ और दिबाकर बनर्जी की ‘टीज़’ जैसी फिल्में भी सेंसर की दिक्कतों का सामना कर रही हैं। उन्होंने इसे रचनात्मक अभिव्यक्ति पर रोक लगाने वाला कदम बताया।
ब्राह्मण समुदाय की आपत्ति और रिलीज में बदलाव
‘फुले’ का ट्रेलर 10 अप्रैल को रिलीज किया गया था, जिसके बाद
ब्राह्मण समुदाय के कुछ लोगों ने यह आरोप लगाया कि फिल्म में उनकी छवि को नकारात्मक रूप में दिखाया गया है। इन विरोधों के कारण फिल्म की रिलीज डेट टाल दी गई, जो अब 25 अप्रैल को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा मुख्य भूमिकाओं में हैं, जिन्होंने फुले दंपति का किरदार निभाया है।