नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
महर्षि दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत का सबसे बडा समाज सुधारक माना जाता है। उनके अनुयायी उनको हिंदू धर्म के शिखर पुरुष के रुप में जानते हैं। उनके बचनप का नाम मूलशंकर था। अपने गुरू पूर्णानंद सरस्वती से दीक्षा लेने के बाद उनका नाम दयानंद सरस्वती हो गया। उनके द्वारा दिया अभिभाषण ‘वेदों की ओर लौटो’ हिंदुओं के लिए मंत्र बन गया।
जयंती मनाने का कारण
हिंदू धर्म की पुस्तकों में इनका जिक्र मिलता है। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई काम किए थे। समाज में महिलाओं की पिछडती स्थिति को लेकर ये काफी चिंतित रहते थे। महर्षि सरस्वती जयंती हर वर्ष दयानंद सरस्वती जी के सम्मान में मनाई जाती है। इसके अलावा इन्होंने शिक्षा प्रणाली में बदलाव भी किया था जिसके सहारे महिलाओं को शिक्षा और अन्य अधिकार मिले। इन्होंने उस समय पूरे भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रचलित औपचारिक धारणाओं की भी आलोचना की, साथ ही दयानंद जी ने "सत्यार्थ प्रकाश" नामक ग्रंथ भी लिखा था जोकि आज भी प्रासंगिक है। समाज में वैदिक मूल्यों के पुनरुद्धार के लिए भी इन्होंने अहम योगदान दिया था।
उनका जीवन परिचय
दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात के टंकारा में करशनजी लालजी कापड़ी और यशोदाबाई के यहां हुआ था। यह एक स्व-शिक्षित व्यक्ति थे जिन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी।
आर्य समाज की स्थापना
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सुधारवादी और प्रगतिशील समाज की स्थापना के क्रम में सन् 1875 में बंबई में 'आर्य समाज' की स्थापना की। अभिवादन के लिए प्रचलित शब्द 'नमस्ते' आर्य समाज की ही देन है। उन्होंने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए पाखंड खंडन, अद्वैतमत का खंडन, वेद भाष्य भूमिका, व सत्यार्थ प्रकाश आदि पुस्तकों की रचना की। इसमें 'सत्यार्थ प्रकाश' सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ। इनको मारने के कई प्रयास किए गए थे। एक बार इनको जहर दिया , पानी डुबाने की कोशिश भी की गई थी।
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