नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
आज भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू नई दिल्ली के कर्तव्य पथ से राष्ट्र के जश्न का नेतृत्व किया। इस साल गणतंत्र दिवस की, थीम "स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास" है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उज्जवल भविष्य की उम्मीदों को उजागर करेगी।
सन् 1950 को भारत ने अपना संवीधान लागू किया था। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने आज के दिन शपथ ग्रहण की थी, और साथ ही एक भव्य परेड का आयोजन भी किया गया था। इस साल की ही तरह पहले गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ही थे।
तो आइए आज आपको वक्त से थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं, और भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह को एक बार फिर से याद करते है।
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गणतंत्र दिवस का इतीहास
सन् 1947 को आाजादी मिलमे के दो साल बाद भी भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ सभी संबंध नहीं तोड़े थे। भारत अभी भी ब्रिटिश शासन बना रहा, और Government of India Act of 1935 के तहत भारत अभी भी क्राउन के प्रति वफ़ादार था। हालाँकि, 26 जनवरी 1950 को यह बदल गया। इसी दिन भारत का नया संविधान लागू हुआ और देश एक संप्रभु गणराज्य बन गया।
तब से ही भारत इस क्षण को मनाने और लोगों के दिलों और दिमाग में राष्ट्रीय गौरव जगाने के लिए आज के दिन एक सैन्य परेड आयोजित की जाती है। साथ ही यह भी तय किया गया कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद परेड में शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने जनसमूह को पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी में संबोधित किया। गणतंत्र दिवस के इस परेड समारोह में तत्कालीन इंडोनेशियाई राष्ट्रपति “सुकर्णो" मुख्य अतिथि थे।
जाने कहा हुई थी भारत की पहली परेड
राष्ट्रपति की शपत समारोह खत्म होने के बाद, पुराना किला के सामने इरविन एम्फीथिएटर में परेड शुरू हुई थी। आपको बता दें कि सन् 1954 तक गणतंत्र दिवस परेड इरविन स्टेडियम में आयोजित की जाती थी, जिसे अब मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम के रूप में जाना जाता है। 1955 के बाद से परेड का स्थान राजपथ पर स्थानांतरित किया गया, जिसे अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है।
एक जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी एक किताब “इंडिया आफ्टर गांधी” में इस बात की पुष्टी की है भारत की पहली परेड में भारतीय सशस्त्र बलों के 3,000 से भी अधिक जवानों ने इस मार्च में भाग लिया था।
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1950 के दशक के अंत और 60 के दशक की शुरुआत में, भारत में भाषाई तनाव भी देखा जाने लगा, क्योंकि केंद्र ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में लागू करने की कोशिश की। इस अशांति को महसूस करते हुए, सरकार ने झांकी और फ्लोटिला को शामिल करके परेड में एक सांस्कृतिक पहलू पेश किया।