नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
1 फरवरी 2003 का वो दिन जब दुनिया कोलंबिया अंतरिक्ष यान के वापस लौटने का इंतजार कर रही थी। भारत इस बात पर गर्व महसूस कर रहा था कि उसकी बेटी दूसरी बार अंतरिक्ष से लौटकर वापस आ रही है। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। अंतरिक्ष से कल्पना चावला के बजाय वो खबर आई, जो भारत सहित पूरी दुनिया की आखों में आंसू थमा गई। कल्पना चावला की दूसरी यात्रा आखिरी बन गई। इस मिशन में उनके अलावा सात और लोग भी थे। ये लोग हमेशा के लिए आसमान की गूंज बनकर रह गए।
बचपन से ही थी आसमान की तमन्ना
हरियाणा के करनाल में 17 मार्च 1962 को कल्पना चावला का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योति चावला था। कल्पना चावला की शुरूआती शिक्षा करनाल में पूरी हुई। कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर वह अमेरिका चली गईं। साल 1982 में जब कल्पना चावला अमेरिका गईं, तो वहां पर टैक्सस यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम.टेक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो से डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की।
ऐसे हुई सफर की शुरूआत
सन 1988 में कल्पना चावला ने नासा में काम करना शुरू कर दिया था। कल्पना को 1997 में पहली बार अंतरिक्ष जाने का मौका मिला। 5 अंतरिक्ष यात्रिओं में उनका नाम भी शामिल था। इस सफर के दौरान उन्होंने 10.4 मिलियन माइल्स की दूरी को कवर किया। यान ने इस सफर में धरती के 252 चक्कर काटे थे।
वो सफर जो बन गया आखिरी
16 जनवरी 2003 को कल्पना सहित 7 यात्रियों ने कोलंबिया STS-107 से उड़ान भरी थी। यह कल्पना का दूसरा स्पेश मिशन था। यही मिशन कल्पना चावला का आखिरी मिशन बन गया। उन्हें 3 फरवरी को वापस लौटना था लेकिन उड़ने का शौक देखने वाली कल्पना का जीवन उड़ते- उड़ते ही खत्म हो गया।
यह भी पढें: Republic Day 2025: 26 जनवरी 1950 को भारत का पहला गणतंत्र दिवस समारोह कैसा था?