गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता
मोदीनगर के कादराबाद गांव में एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो न सिर्फ एक परिवार के टूटने की दास्तान बयां करती है, बल्कि समाज में रिश्तों की सच्चाई पर भी सवाल उठाती है। ज्योति, एक ऐसी महिला जिसने अपने पति सचिन पर भरोसा किया, दो बच्चों की मां बनी, लेकिन बदले में उसे मिला धोखा बिना तलाक के दूसरी शादी का। ये कहानी सिर्फ ज्योति की नहीं, बल्कि हर उस औरत की है जो अपने हक के लिए लड़ रही है।
ज्योति और सचिन एक अधूरी कहानी
कादराबाद गांव की ज्योति की शादी कुछ साल पहले सचिन के साथ हुई थी। दोनों की जिंदगी में दो बच्चों ने खुशियां भरीं। लेकिन ये खुशियां तब छिन गईं, जब ज्योति को पता चला कि सचिन ने बिना तलाक दिए किसी दूसरी महिला से शादी रचा ली। ज्योति के लिए ये खबर किसी बिजली गिरने से कम नहीं थी। जिस शख्स पर उसने अपनी जिंदगी का हर सपना सौंपा, वही अब उसे और उसके बच्चों को अंधेरे में छोड़ गया।
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थाने के चक्कर, लेकिन हक की लड़ाई
ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी। उसने सबसे पहले मोदीनगर थाने में सचिन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, लेकिन वहां से उसे निराशा ही हाथ लगी। कोई कार्रवाई न होते देख ज्योति ने हार नहीं मानी। उसने मुख्यमंत्री पोर्टल पर अपनी आपबीती सुनाई। ये वो कदम था, जिसने आखिरकार पुलिस को हरकत में ला दिया। एसीपी मोदीनगर ने बताया कि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है और मामले की जांच शुरू हो चुकी है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ज्योति को उसका हक मिल पाएगा?
दो शादियों का खेल सचिन की चालाकी
सचिन की इस हरकत ने न सिर्फ ज्योति के साथ धोखा किया, बल्कि कानून की भी धज्जियां उड़ाईं। बिना तलाक के दूसरी शादी करना न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि ये एक महिला और उसके बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। सचिन ने ऐसा क्यों किया? क्या ये सिर्फ उसकी मनमानी थी, या इसके पीछे कोई और कहानी है? ये सवाल जांच के बाद ही साफ होंगे, लेकिन फिलहाल ज्योति और उसके बच्चों की जिंदगी सवालों के घेरे में है।
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ज्योति की हिम्मत एक मिसाल
ज्योति की कहानी सिर्फ दुख की नहीं, बल्कि हिम्मत और हक की लड़ाई की है। उसने न सिर्फ अपने पति की बेवफाई का सामना किया, बल्कि सिस्टम से भी टकराई। थाने की उदासीनता से लेकर मुख्यमंत्री पोर्टल तक का सफर, ज्योति ने दिखा दिया कि एक औरत जब अपने हक के लिए लड़ती है, तो वो रास्ते भी बना लेती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या हर ज्योति इतनी हिम्मत जुटा पाती है? क्या समाज और सिस्टम को और संवेदनशील होने की जरूरत नहीं?
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