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Election - रामलीला चुनाव शुरू हुई वर्चस्व की वोटिंग

गाजियाबाद की सबसे पुरानी रामलीला के चुनाव आज सुबह 10:00 बजे से रामलीला मैदान में शुरू हो चुके हैं इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दखल के बाद रजिस्ट्रार को पड़ी फटकार तब जाकर शुरू हुई चुनाव की प्रक्रिया।

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Kapil Mehra
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फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

घंटाघर रामलीला चुनाव की प्रक्रिया शुरू

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गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता 

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सुल्लामल रामलीला कमेटी के दोनों पैनल आमने-सामने, 299 सदस्य चुनेगी 7 पदाधिकारियों के साथ अध्यक्ष।

रामलीला चुनाव- शुरू हुई वर्चस्व की जंग, जी हां इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद आखिरकार 8 वर्ष की देरी से ही सही गाजियाबाद की 135 साल पुरानी रामलीला के चुनाव आज सुबह 10 बजे से शुरू हो गए है, एक तरफ सांसद समर्थित ग्रुप है तो एक तरफ युवाओं की फौज है।

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फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

पूरे गाजियाबाद की है नज़र 

रामलीला का ये चुनाव किसी बड़े चुनाव से कम नहीं आंका जा रहा है, बता दे प्रयागराज उच्च न्यायालय की फटकार के बाद जिला रजिस्टार ने चुनाव को संपन्न कराने की प्रक्रिया अमल में लाई गई।

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सुल्लामल रामलीला कमेटी के इस चुनाव में सुल्लामल परिवार के वंशज भी चुनावी मैदान में हैं। जो खलीफा की पगड़ी पहन चुके हैं वो भी चुनाव लड़ रहे हैं। रविवार को एक खलीफा अपना आशीर्वाद देने पहुंचे तो दूसरे खलीफा चुनावी पर्चा भर रहे थे।

सुल्लामल के वंशज भी हैं रेस में 

सुल्लामल परिवार से सुमित गर्ग लेखा फरीकाक पद हेतु चनाव मैदान में हैं। बाबा गन हाउस प्रतिष्ठान के मालिक तथा सुल्लामल परिवार के वंशजों में शामिल सुमित गर्ग रामलीला कमेटी के पदाधिकारी रहे स्व. विनोद कुमार वीनू बाबा के सुपुत्र हैं।

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फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

रामलीला का इतिहास 

गाजियाबाद के घंटाघर स्थित रामलीला मैदान में लगने वाली 'सुल्लामल रामलीला' केवल दिल्ली-एनसीआर नहीं, बल्कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की प्राचीन और प्रमुख रामलीलाओं में से एक है. अंग्रेजों के दौर से इस रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. आज भी लाखों की संख्या में लोग रामलीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं.

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उस्ताद सुल्लामल द्वारा 135 वर्ष पहले साल 1890 में रामलीला की शुरुआत की गई थी उस्ताद सुल्लामल अपने शागिर्दों के साथ रामलीला का मंचन करते थे. शुरुआत में रामलीला का मंचन शहर में होता था जबकि समापन घंटाघर में होता था. शहर के बीचो-बीच घंटा घर रामलीला मैदान ही सबसे बड़ी जगह थी. ऐसे में कुछ सालों बाद रामलीला का मंचन यहां होना शुरू हो गया।

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