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पंजाब की सुनहरी धूप और अमृतसर की तंग गलियों में एक ऐसी कहानी छिपी थी, जो 30 साल से पुलिस के रडार पर थी। मंगत सिंह, जिसे लोग ‘मंगा’ के नाम से जानते थे, वो कोई साधारण शख्स नहीं था। वो था खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) का एक खूंखार आतंकी, जिसके नाम पर गाजियाबाद पुलिस ने 25,000 रुपये का इनाम रखा था।
लेकिन मंगत सिंह था कि जैसे हवा में गायब हो गया था 30 साल तक! आखिरकार, यूपी ATS और साहिबाबाद पुलिस ने मिलकर इस ‘भूत’ को अमृतसर के टिम्मोवाल गांव से धर दबोचा। ये कहानी जितनी रोमांचक है, उतनी ही रहस्यमयी भी। तो चलिए, इस ‘हटकर’ कहानी को थोड़ा करीब से देखते हैं।
30 साल की भगोड़ा जिंदगी: मंगत सिंह की ‘छुपन-छुपाई’
1993 में मंगत सिंह को पहली बार गाजियाबाद में गिरफ्तार किया गया था। उस पर थे गंभीर आरोप हत्या का प्रयास, टाडा (TADA) एक्ट, आर्म्स एक्ट, और डकैती व उगाही के मामले। लेकिन 1995 में जमानत मिलते ही मंगत ने पुलिस को चकमा दे दिया। वो फरार हो गया, और फिर शुरू हुआ उसका ‘अदृश्य’ खेल।
कोई नहीं जानता था कि वो कहां है। क्या वो देश छोड़कर भाग गया? या फिर किसी गांव की गुमनाम गलियों में छिपा था? मंगत की फाइलें पुलिस स्टेशनों में धूल खाती रहीं, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला।मंगत का भाई संगत सिंह, जो KCF का चीफ था, 1990 में पंजाब पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। शायद यही वजह थी कि मंगत ने अपनी पहचान और ठिकाने बार-बार बदले। वो एक भूत की तरह था,जिसके बारे में सबने सुना था, लेकिन कोई देख नहीं पाया।
UP ATS और साहिबाबाद पुलिस का ‘मास्टरस्ट्रोक’
यूपी ATS की नोएडा यूनिट और साहिबाबाद पुलिस ने एक जॉइंट ऑपरेशन शुरू किया। खुफिया जानकारी मिली थी कि मंगत सिंह अपने पैतृक गांव टिम्मोवाल में छिपा है। ये वही गांव था, जहां मंगत ने बचपन बिताया था, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी। क्योंकि पुरानी कहावत है—‘चोर कितना भी चालाक हो, घर की मिट्टी उसे खींच ही लाती है।’ATS की टीम ने बिना किसी शोर-शराबे के गांव को घेर लिया। मंगत को लगा कि वो अब भी पुलिस से दो कदम आगे है, लेकिन इस बार उसका नंबर आ चुका था। जैसे ही वो बाहर निकला, ATS और पुलिस ने उसे दबोच लिया। 30 साल की फरारी का अंत हो चुका था। वो शख्स, जिसने दशकों तक कानून को ठेंगा दिखाया, अब हथकड़ियों में था।
क्यों है ये गिरफ्तारी इतनी खास?
मंगत सिंह की गिरफ्तारी सिर्फ एक आतंकी को पकड़ने की कहानी नहीं है। ये एक मैसेज है कानून की पहुंच से कोई नहीं बच सकता, चाहे वो कितने साल तक छिपे। मंगत सिंह 1990 के दशक में पंजाब में आतंकी गतिविधियों का हिस्सा था, जब खालिस्तानी आंदोलन अपने चरम पर था।
उस दौर में KCF ने कई वारदातों को अंजाम दिया था। मंगत का भाई संगत सिंह इस संगठन का सरगना था, और मंगत भी उसी रास्ते पर चल पड़ा था। लेकिन 30 साल बाद भी उसका अतीत उसे छोड़ने को तैयार नहीं था।इस गिरफ्तारी ने ये भी दिखाया कि यूपी ATS और स्थानीय पुलिस की तालमेल कितना दमदार हो सकता है। नोएडा से अमृतसर तक का ये ऑपरेशन आसान नहीं था। खुफिया जानकारी जुटाने से लेकर सटीक कार्रवाई तक, हर कदम पर सावधानी बरती गई। और सबसे बड़ी बात—इस ऑपरेशन ने उन लोगों को चेतावनी दी है, जो आज भी कानून से छुपने की कोशिश कर रहे हैं।
मंगत सिंह अब कहां?
फिलहाल मंगत सिंह पुलिस कस्टडी में है। उससे पूछताछ चल रही है, और पुलिस ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इन 30 सालों में वो कहां-कहां रहा, किन-किन लोगों से मिला, और क्या वो अभी भी किसी आतंकी नेटवर्क से जुड़ा था। उसके खिलाफ पुराने केस फिर से खोले जाएंगे, और नए सबूतों के आधार पर कार्रवाई होगी। लेकिन एक सवाल जो हर किसी के दिमाग में है क्या मंगत सिंह अब भी उतना ही खतरनाक है, जितना वो 30 साल पहले था? या वो बस एक थका-हारा फरार था, जो अपने अतीत से भाग रहा था?
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