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गाजियाबाद: साइबर अपराधियों ने एक बार फिर अपनी चालाकी से गाजियाबाद में बड़ा खेल रच डाला। इस बार निशाने पर थे रक्षा मंत्रालय के एक रिटायर्ड अधिकारी, जिनसे शेयर ट्रेडिंग के नाम पर 1.11 करोड़ रुपये की ठगी की गई। जालसाजों ने ऑनलाइन मुनाफे का लालच देकर पीड़ित को अपने जाल में फंसाया और उनकी जिंदगी भर की कमाई लूट ली। साइबर क्राइम थाना पुलिस ने मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह घटना साइबर ठगी के बढ़ते खतरे और डिजिटल सतर्कता की जरूरत को रेखांकित करती है।
ठगी की शुरुआत: व्हाट्सऐप ग्रुप से फंसाया जाल
राजनगर एक्सटेंशन की एक सोसाइटी में रहने वाले रिटायर्ड अधिकारी ने पुलिस को बताया कि ठगी की शुरुआत 10 मार्च 2025 को हुई और 20 मई 2025 तक चली। जालसाजों ने उन्हें "88-एएसके इनसाइडर एक्सचेंज" नाम के एक व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ा। ग्रुप में शामिल होने के बाद, उन्हें "एएसके एमआईएन" नाम की एक ऐप डाउनलोड करने और उस पर यूजर आईडी बनाने के लिए कहा गया।
ग्रुप के एडमिन ने मोटा मुनाफा कमाने का लालच देकर उन्हें शेयर ट्रेडिंग के लिए प्रोत्साहित किया। पीड़ित ने जब ग्रुप में शामिल एक कथित प्रतिनिधि, प्रिया शर्मा, से फर्म का सेबी पंजीकरण मांगा, तो उसने व्हाट्सऐप पर "एएसके इन्वेस्टमेंट मैनेजर लिमिटेड, मुंबई" के नाम से एक पंजीकरण दस्तावेज भेजा। ऑनलाइन जांच करने पर यह पंजीकरण सही प्रतीत हुआ, जिसने पीड़ित का भरोसा और मजबूत कर दिया।
लालच का जाल: 5 लाख से शुरू, 1.11 करोड़ तक पहुंचा
पीड़ित ने शेयर ट्रेडिंग में निवेश की शुरुआत 5,05,000 रुपये से की। ऐप पर ऑनलाइन मुनाफा दिखाकर जालसाजों ने उनका विश्वास जीता और धीरे-धीरे उनसे कुल 1.11 करोड़ रुपये ट्रांसफर करवा लिए। जब पीड़ित के पास पैसे खत्म हो गए, तो जालसाजों ने उन्हें कंपनी की ओर से 50 लाख रुपये का लोन ऑफर किया, जिसे उनके शेयर ट्रेडिंग खाते में समायोजित कर लिया गया।
ऐप पर पीड़ित के खाते में 12.40 करोड़ रुपये की राशि दिखाई जा रही थी, जो कथित तौर पर उनका निवेश और मुनाफा थी। लेकिन जब उन्होंने इस राशि को निकालने की कोशिश की, तो हर बार तकनीकी त्रुटि का बहाना बनाया गया। प्रिया शर्मा ने दावा किया कि पैसे निकालने के लिए पहले लोन की 50 लाख रुपये की राशि नकद जमा करनी होगी। जब पीड़ित ने खाते में दिख रही राशि से यह रकम काटने का सुझाव दिया, तो प्रिया ने इनकार कर दिया।
ठगी का खुलासा: फर्जी हस्ताक्षर और झूठा पंजीकरण
शक होने पर पीड़ित ने गहन जांच शुरू की। उन्हें पता चला कि जालसाजों ने "एएसके इन्वेस्टमेंट मैनेजर लिमिटेड" के नाम का दुरुपयोग किया था। प्रमाण-पत्र पर कंपनी के निदेशक भरत शाह के हस्ताक्षर फर्जी थे। हकीकत जानने के लिए पीड़ित मुंबई में कंपनी के दफ्तर पहुंचे, जहां उन्हें पता चला कि प्रिया शर्मा नाम की कोई कर्मचारी वहां काम ही नहीं करती। यह पूरी ठगी एक सुनियोजित साइबर अपराध का हिस्सा थी, जिसमें असली कंपनी के नाम का इस्तेमाल कर पीड़ित को फंसाया गया।
पुलिस की कार्रवाई: जांच शुरू
12 मई 2025 को पीड़ित ने साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज कराई। एडीसीपी क्राइम पीयूष सिंह ने बताया कि मामले में केस दर्ज कर लिया गया है और जालसाजों की पहचान के लिए जांच शुरू कर दी गई है। पुलिस व्हाट्सऐप ग्रुप, ऐप, और बैंक खातों के ट्रांजेक्शन की डिटेल्स खंगाल रही है। यह मामला हाल के दिनों में गाजियाबाद में सामने आए साइबर ठगी के कई मामलों में से एक है, जो इस अपराध के बढ़ते दायरे को दर्शाता है।
साइबर ठगी का बढ़ता खतरा
हाल के महीनों में गाजियाबाद और आसपास के क्षेत्रों में साइबर ठगी के मामले तेजी से बढ़े हैं। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2025 में गाजियाबाद में एक व्यक्ति से शेयर ट्रेडिंग के नाम पर 5 करोड़ रुपये की ठगी का मामला सामने आया था, जिसमें एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया था। इसी तरह, अन्य शहरों में भी रिटायर्ड अधिकारियों को निशाना बनाकर करोड़ों रुपये की ठगी के मामले सामने आए हैं।
सितंबर 2024 में एक रिटायर्ड रक्षा मंत्रालय अधिकारी से 2.9 करोड़ रुपये और नवंबर 2024 में एक रिटायर्ड शिप कैप्टन से 11.16 करोड़ रुपये की ठगी की खबरें सुर्खियों में थीं।ये मामले दर्शाते हैं कि साइबर अपराधी रिटायर्ड अधिकारियों और बुजुर्गों को आसानी से निशाना बनाते हैं, क्योंकि उनके पास निवेश के लिए पर्याप्त बचत होती है और वे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं।
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