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ट्रैक्टर की टक्कर से 4 साल की मासूम की मौत
सड़कें जो हमें मंजिल तक ले जाती हैं, कभी-कभी जिंदगियां भी छीन लेती हैं। गाजियाबाद के दिल्ली-मेरठ मार्ग पर रविवार सुबह एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने न सिर्फ एक परिवार को तोड़ दिया, बल्कि समाज के सामने कई सवाल भी खड़े कर दिए।
चार साल की मासूम हिमांशी, जो अपने माता-पिता के साथ गंगा स्नान के लिए निकली थी, एक पल में तेज रफ्तार ट्रैक्टर की चपेट में आ गई। यह हादसा नहर के पास यूटर्न पर हुआ, जहां हिमांशी के पिता बाइक को मोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन क्या यह सिर्फ एक हादसा था, या हमारी लापरवाही और सिस्टम की खामियों का नतीजा?
मासूम का आखिरी सफर
सुबह के करीब 8:30 बजे, दिल्ली-मेरठ रोड पर नहर के पास का माहौल सामान्य था। हिमांशी अपने पिता की बाइक पर बैठी थी, शायद अपनी मासूम हंसी और सवालों से माहौल को गुलजार कर रही थी। परिवार पूर्वोत्तर दिल्ली के करावल नगर से मुरादनगर पर गंगा स्नान के लिए निकला था।
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पिता ने यूटर्न लेने के लिए बाइक डिवाइडर के पास रोकी, लेकिन तभी मोदीनगर की ओर से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ने उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया। हिमांशी ट्रैक्टर के नीचे आ गई और गंभीर चोटों के कारण उसकी नन्ही जान बच न सकी।
स्थानीय लोगों ने उसे तुरंत नजदीकी निजी अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। ट्रैक्टर चालक मौके से फरार हो गया, लेकिन पुलिस ने ट्रैक्टर को जब्त कर लिया है। परिवार का गम और गुस्सा देखकर हर कोई सन्न रह गया। आखिर एक मासूम की जिंदगी इतनी सस्ती कैसे हो सकती है?
सिर्फ हादसा नहीं, सिस्टम की नाकामी
यह हादसा सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है; यह हमारे सड़क सुरक्षा तंत्र और सामाजिक जिम्मेदारी की खामियों को उजागर करता है। दिल्ली-मेरठ मार्ग, जो तेजी से विकास का प्रतीक बन रहा है, बार-बार ऐसे हादसों का गवाह क्यों बनता है? आइए, कुछ सवालों पर गौर करें।
यूटर्न की अव्यवस्था
नहर के पास का यूटर्न बिना किसी स्पष्ट चिह्न या ट्रैफिक सिग्नल के क्यों है? क्या सड़क डिजाइन में ऐसी जगहों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जानी चाहिए?
तेज रफ्तार का कहर
ट्रैक्टर जैसे भारी वाहनों की गति पर निगरानी क्यों नहीं है? क्या हाईवे पर स्पीड लिमिट और चेकिंग सिर्फ कागजी कार्रवाई बनकर रह गई है?
चालक की लापरवाही
ट्रैक्टर चालक की फरारी बताती है कि जिम्मेदारी का अभाव कितना गहरा है। क्या ड्राइवरों को प्रशिक्षण और सख्त नियमों की जरूरत नहीं?
सामाजिक जागरूकता
हम, जो सड़क पर चलते हैं, क्या अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं? बाइक पर छोटे बच्चों को ले जाना कितना सुरक्षित है, खासकर ऐसी व्यस्त सड़कों पर?
हिमांशी की कहानी: एक चेतावनी
हिमांशी की मासूम मुस्कान अब सिर्फ यादों में बची है। लेकिन उसकी कहानी हमें चेतावनी देती है कि सड़क हादसे सिर्फ आंकड़े नहीं हैं; ये जिंदगियां हैं, परिवार हैं, सपने हैं। गाजियाबाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, और परिवार की तहरीर के आधार पर कार्रवाई की बात कही जा रही है। लेकिन क्या यह काफी है? हर हादसे के बाद हम वही वादे सुनते हैं जांच होगी, कार्रवाई होगी। फिर भी, हादसे रुकते नहीं।
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आगे की राह: बदलाव की जरूरत
हिमांशी जैसे मासूमों को बचाने के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे:
सड़क डिजाइन में सुधार
यूटर्न, चौराहों और व्यस्त सड़कों पर स्पष्ट चिह्न, सिग्नल और बैरियर लगाए जाएं।
सख्त ट्रैफिक नियम
भारी वाहनों की गति और चालकों के लाइसेंस की नियमित जांच हो।
जागरूकता अभियान
लोगों को सड़क सुरक्षा के प्रति शिक्षित करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में कार्यक्रम चलाए जाएं।
तकनीक का उपयोग
हाईवे पर सीसीटीवी और स्पीड गन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए।
सामुदायिक जिम्मेदारी
हम सभी को सड़क पर सतर्क और जिम्मेदार बनना होगा।
अंत में: एक मासूम का बलिदान व्यर्थ न जाए
हिमांशी की मौत सिर्फ एक परिवार का नुकसान नहीं, बल्कि समाज के लिए एक सबक है। हम कब तक ऐसी त्रासदियों को "हादसा" कहकर भूलते रहेंगे? यह वक्त है कि हम सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए एकजुट हों। हिमांशी की याद में, आइए संकल्प लें कि कोई और मासूम ऐसी त्रासदी का शिकार न बने। क्योंकि हर जिंदगी कीमती है, और हर बच्चे की मुस्कान अनमोल।
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