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गाजियाबाद में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में पारिवारिक न्यायालय के 160 मामलों का निपटारा किया गया। इस दौरान 13 दंपतियों ने आपसी मतभेद दूर कर सुलह कर ली, जबकि 40 दंपतियों की गलतफहमियां दूर नहीं हुईं और उन्होंने तलाक के लिए कोर्ट से तारीख ले ली। लोक अदालत में कई भावनात्मक और जटिल मामले सामने आए, जिनमें प्रेम विवाह, पारिवारिक विवाद और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों पर सुनवाई हुई।
सिम कार्ड तोड़कर सुलह
एक अनोखे मामले में, एक महिला ने अपने पति के साथ सुलह करने के लिए सिम कार्ड तोड़ दिया। दरअसल, पति ने पत्नी पर दिनभर फोन पर बात करने का आरोप लगाया था। लोक अदालत में दोनों पक्षों की काउंसलिंग के बाद पत्नी ने सिम कार्ड तोड़कर विवाद खत्म किया और दोनों साथ घर चले गए। इस मामले ने उपस्थित लोगों का ध्यान खींचा और आपसी समझदारी की मिसाल पेश की।
प्रेम विवाह के बाद विदाई का मामला
गौतमबुद्ध नगर की एक युवती ने जनवरी 2024 में फरीदाबाद के एक युवक से आर्य समाज मंदिर में प्रेम विवाह किया था। युवती के परिजनों को जब इसकी जानकारी हुई, तो वे उसे अपने साथ ले गए और रीति-रिवाज के अनुसार शादी करने की बात कहकर विदाई का वादा किया। हालांकि, बाद में परिजनों ने युवती को ससुराल भेजने से इनकार कर दिया। युवक ने कोर्ट में अर्जी दाखिल की। लोक अदालत में दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने युवती को उसके पति के साथ भेजने का आदेश दिया।
साहिबाबाद के दंपति का तलाक
साहिबाबाद के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और मोदीनगर की फार्मासिस्ट युवती ने तीन साल पहले प्रेम विवाह किया था। पति ने पत्नी पर अवैध संबंधों का आरोप लगाया, जबकि पत्नी ने पति पर शराब पीने और संबंध न रखने का आरोप लगाया। कई बार काउंसलिंग के बावजूद दोनों के बीच सुलह नहीं हो सकी। लोक अदालत में पति ने तलाक की अर्जी दी, जिसका पत्नी ने विरोध नहीं किया। अंततः कोर्ट ने दोनों का तलाक मंजूर कर लिया।
लोनी के दंपति का गुजारा भत्ता मामला
लोनी की एक युवती की शादी 2016 में अयोध्या के एक युवक से हुई थी। उनकी एक बेटी है। घर खर्च को लेकर दोनों के बीच विवाद चल रहा था। पत्नी ने गुजारा भत्ता और तलाक के लिए अर्जी दाखिल की थी। लोक अदालत में पति ने बताया कि उसकी मासिक आय 10,000 रुपये है और वह पत्नी व बेटी को साथ रखना चाहता है। पत्नी ने साथ रहने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने पति को पत्नी के लिए 6,000 रुपये और बेटी के लिए 2,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
लोक अदालत की भूमिका
राष्ट्रीय लोक अदालत ने पारिवारिक विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोर्ट ने आपसी सहमति और काउंसलिंग के जरिए कई दंपतियों को सुलह का मौका दिया। जिन मामलों में सुलह संभव नहीं हुई, वहां गुजारा भत्ता और तलाक जैसे मुद्दों पर त्वरित निर्णय लिए गए। लोक अदालत के इस प्रयास ने न केवल कोर्ट के बोझ को कम किया, बल्कि कई परिवारों को राहत भी प्रदान की।
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