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Ghaziabad News - कहानी एक प्रोफेसर के त्याग समर्पण और धैर्य की

गाजियाबाद का MMH डिग्री कॉलेज 100 साल से ऊपर की आयु रखता है इस कॉलेज की लाइब्रेरी में आज भी एक सदी से पुरानी किताबें मौजूद हैं, कभी लाइब्रेरी कहे जाने वाली इमारत को अब विभाग में तब्दील कर दिया गया है

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Kapil Mehra
फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार
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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

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गाजियाबाद के एमएमएच कॉलेज की लाइब्रेरी अब एक युग के अंत का गवाह बनने जा रही है, जब प्रोफेसर डॉ. श्याम बाबू कुलश्रेष्ठ ने 33 साल 6 महीने की अपनी शानदार सेवा के बाद 30 जून को सेवानिवृत्ति लेने जा रहे है। यह कहानी न केवल एक प्रोफेसर की मेहनत और समर्पण की है, बल्कि एक ऐसी जंग की भी है, जिसमें उन्होंने न सिर्फ अपने हक के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश के लाइब्रेरियन प्रोफेसरों के लिए लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।

लाइब्रेरी साइंस को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाला योद्धा

2 दिसंबर 1990 को जब डॉ. श्याम बाबू ने एमएमएच कॉलेज में लाइब्रेरी साइंस के लाइब्रेरियन के रूप में कार्यभार संभाला, तब शायद ही किसी ने सोचा था कि यह व्यक्ति इस विषय को प्रदेश में एक नया मुकाम देगा। उनकी मेहनत और दूरदर्शिता ने लाइब्रेरी साइंस को न केवल एक अकादमिक विषय के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसे एक जीवंत और प्रासंगिक क्षेत्र के रूप में भी उभारा। उनकी क्लासरूम से लेकर लाइब्रेरी तक की यात्रा ने कई छात्रों को प्रेरित किया और इस क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए।

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फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

सम्मान और संघर्ष: एक सिक्के के दो पहलू

डॉ. श्याम बाबू की उपलब्धियां केवल उनकी कक्षा तक सीमित नहीं रहीं। उन्हें 2004 में यूपी सरकार द्वारा गाजियाबाद गौरव सम्मान और सूचना एवं ब्रॉडकास्टिंग मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया गया। इसके अलावा, 2025 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में राष्ट्रीय गौरव सम्मान ने उनके योगदान को और गौरवान्वित किया। लेकिन, जहां सम्मान था, वहां चुनौतियां भी कम नहीं थीं।

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उनके करियर में एक ऐसा मोड़ भी आया, जब कुछ सीनियर और साथी प्रोफेसरों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा। गलत साक्ष्य और जानकारी के आधार पर शासन को भेजकर उन्हें जबरन 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करने की साजिश रची गई, जबकि परंपरा के अनुसार सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष थी। यह एक ऐसा दौर था, जब डॉ. श्याम बाबू का धैर्य और हौसला परखा गया।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

न्याय की लड़ाई और ऐतिहासिक जीत

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डॉ. श्याम बाबू ने हार नहीं मानी। 3 नवंबर 2023 को उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यूपी सरकार के खिलाफ केस दायर किया। यह केस न केवल उनकी व्यक्तिगत लड़ाई थी, बल्कि पूरे प्रदेश के लाइब्रेरियन प्रोफेसरों के हक की आवाज बन गया। लंबी कानूनी जंग के बाद, उन्होंने न केवल अपनी जीत हासिल की, बल्कि अपने 17 साथी प्रोफेसरों को भी दोबारा सेवा में शामिल होने का मौका दिलाया। इस जीत ने न केवल उनकी दृढ़ता को साबित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि सच्चाई और मेहनत के सामने हर साजिश बौनी पड़ जाती है।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

एक प्रेरणा, एक विरासत

डॉ. श्याम बाबू कुलश्रेष्ठ की सेवानिवृत्ति केवल एक प्रोफेसर का विदाई समारोह नहीं है; यह एक ऐसी कहानी का समापन है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। उन्होंने न सिर्फ लाइब्रेरी साइंस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज्बा भी दिखाया। उनकी यह यात्रा हमें सिखाती है कि मेहनत, समर्पण और साहस के साथ कोई भी मुश्किल से पार पाया जा सकता है।आज जब डॉ. श्याम बाबू कुलश्रेष्ठ ने एमएमएच कॉलेज की लाइब्रेरी को अलविदा कहने जा रहे है, तो उनके साथ उनकी उपलब्धियां, उनकी लड़ाइयां और उनकी प्रेरणा भी अमर हो गईं।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

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