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Ghaziabad- No हेलमेट No पेट्रोल, आदेश की धज्जियां उड़ाते पेट्रोल पंप

गाजियाबाद में "हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान को लागू करने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन यह पूर्ण रूप से कामयाब नहीं हो सका। इसके पीछे कई कारण हैं, जिन्हें सामाजिक, प्रशासनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।

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Kapil Mehra
फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार
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गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता 

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गाजियाबाद में "हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान को लागू करने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन यह पूर्ण रूप से कामयाब नहीं हो सका। इसके पीछे कई कारण हैं, जिन्हें सामाजिक, प्रशासनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। नीचे इसकी असफलता के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

लोगों में जागरूकता और सहयोग की कमी 

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गाजियाबाद जैसे शहर में दोपहिया वाहन चालकों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन हेलमेट के प्रति जागरूकता अभी भी कम है। कई लोग इसे अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं और नियम का पालन करने में अनिच्छा दिखाते हैं। अभियान के शुरुआती दिनों में लोगों ने इसका विरोध किया और पेट्रोल पंप कर्मियों के साथ बहस या मारपीट की घटनाएं भी सामने आईं। इससे नियम को सख्ती से लागू करना मुश्किल हो गया।

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पेट्रोल पंप संचालकों की सुरक्षा 

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पेट्रोल पंप कर्मचारियों को इस नियम को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन उनके पास इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त अधिकार या सुरक्षा नहीं थी। कुछ मामलों में, बिना हेलमेट वालों को पेट्रोल देने से मना करने पर कर्मचारियों पर हमले हुए। उदाहरण के लिए, पहले भी लोनी क्षेत्र में एक पंप पर सेल्समैन पर गोली चलाने की घटना हो चुकी है। ऐसे में पंप संचालक और कर्मचारी नियम लागू करने से हिचकते हैं, क्योंकि उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं होती।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

पुलिस और प्रशासनिक समर्थन की कमी 

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इस अभियान को सफल बनाने के लिए पुलिस और प्रशासन की सक्रिय भागीदारी जरूरी थी, लेकिन कई बार ऐसा देखा गया कि पेट्रोल पंपों पर नियम तोड़ने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नहीं हुई। सीसीटीवी कैमरे लगाने और निगरानी के निर्देश तो दिए गए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे पंपों पर इनका पालन नहीं हो सका। पुलिस की सीमित मौजूदगी के कारण पंप संचालक अकेले नियम लागू करने में असमर्थ रहे।

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ग्रामीण क्षेत्रों में लागू करने में कठिनाई 

गाजियाबाद में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल हैं। शहरी इलाकों में जहां कुछ हद तक जागरूकता अभियान और निगरानी संभव थी, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इस नियम को गंभीरता से नहीं लेते। वहां पेट्रोल पंप संचालक भी ग्राहकों के दबाव में नियम तोड़ने को मजबूर हुए, क्योंकि वे अपने व्यवसाय को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे।

अपवाद और ढीलापन 

कई पेट्रोल पंपों पर नियम को लचीले ढंग से लागू किया गया। कुछ जगहों पर हेलमेट न होने पर भी पेट्रोल दे दिया गया, खासकर तब जब ग्राहक दबाव बनाते थे या कर्मचारियों के साथ बहस करते थे। इससे अभियान की विश्वसनीयता कम हुई और लोगों ने इसे गंभीरता से लेना बंद कर दिया।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

जागरूकता अभियानों का प्रभाव 

प्रशासन ने जागरूकता के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सोशल मीडिया का सहारा लिया, लेकिन ये प्रयास सतही साबित हुए। लोगों का व्यवहार बदलने के लिए लंबे समय तक निरंतर और प्रभावी अभियान की जरूरत थी, जो गाजियाबाद में नहीं हो सका। गुलाब देकर हेलमेट पहनने की अपील जैसे कदम अच्छे थे, लेकिन इनका असर अस्थायी रहा।

व्यावहारिक चुनौतियां 

कई बार लोग हेलमेट साथ लेकर नहीं चलते, और पेट्रोल पंप पर अचानक ईंधन खत्म होने की स्थिति में उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता। ऐसे में पंप संचालकों के लिए नियम लागू करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि ग्राहक इसे अपनी मजबूरी बताते हैं। साथ ही, कुछ लोग बोतल में पेट्रोल लेने की कोशिश करते हैं, जिससे नियम का उल्लंघन आसान हो जाता है।

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निष्कर्ष

गाजियाबाद में "हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान की असफलता का मुख्य कारण लोगों का सहयोग न करना, प्रशासनिक ढीलापन और पेट्रोल पंप संचालकों की सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। इसे सफल बनाने के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई, पुलिस की मौजूदगी, और लंबे समय तक चलने वाले जागरूकता अभियानों की जरूरत थी। जब तक लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा और प्रशासन पूर्ण प्रतिबद्धता नहीं दिखाएगा, इस तरह के अभियान प्रभावी नहीं हो सकते। गाजियाबाद में यह अभियान शुरू तो हुआ, लेकिन इसे बनाए रखने और सख्ती से लागू करने में कमी के कारण यह अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हो सका। 

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

 

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