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यूनानी अस्पताल
गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता ।
सरकारी अस्पताल का हाल किसी से नहीं छुपा है। ऐसे में सरकार ने कोशिश की कि कुछ अन्य पद्धतियों द्वारा मरीजों का इलाज करा जाए, जिससे एलोपैथिक पद्धति पर भार कम हो। लेकिन यह तो सरकारी तंत्र है, नया शुरू करके पुराना तो भूल ही गए और नए को भी ठीक से संचालित नहीं कर सके।
अपना विभाग छोड़ दूसरे विभाग में कर रहे हैं काम
जिला एमएमजी अस्पताल मे ही संचालित होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाखानों मे हाल ये है कि यहाँ ज्यादातर दवाइयां खत्म हैं, जिसके बाद यहाँ डॉक्टर कुत्ते काटने से घायल मरीजों के इलाज में लगे हैं। बताया जा रहा है कि दो साल से बजट जारी नहीं होने के कारण दवाइयां अस्पताल में नहीं हैं। दवाई उपलब्ध होने पर तीनों विभागों में रोजाना ढाई सौ से तीन सौ मरीज उपचार कराने आते थे।
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पुराने पैथोलॉजी लैब में चलती है तीनों पद्धतियां
एमएमजी अस्पताल के पुराने पैथॉलाजी लैब विभाग में अलग-अलग कक्ष में आयुष विंग के तहत होम्योपैथिक, यूनानी और आयुर्वेदिक विभाग संचालित है। यह पहले मौजूदा पैथोलॉजी में संचालित थी, लेकिन पुराने पैथॉलाजी लैब का प्लास्टर गिरने से कई मशीनें खराब हो गई थीं। इसके बाद दोनों को आमने सामने कक्ष में शिफ्ट कर दिया। दो साल से किसी भी विंग के पास दवाई मौजूद नहीं है। बताया गया कि शासन से बजट ही जारी नहीं हो रहा था, इसलिए दवाई की खरीदारी नहीं हुई थी। एक अस्पताल में एक विंग के लिए एक वित्तीय वर्ष में 50 हजार रुपये का बजट जारी होता है। उसी से दवाइयों की खरीदारी होती है। स्थानीय एमएमजी अस्पताल प्रबंधन ने दिया है, लेकिन संचालन सीएमओ स्तर से होता है। इसलिए एमएमजी की तरफ से कोई मदद नहीं दी जाती है
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दवाइयां हो गई खत्म क्या करें डॉक्टर
दवाई उपलब्ध नहीं होने और मरीज नहीं आने से यूनानी के डॉ.मोहम्मद शारिक और होम्योपैथिक के डॉ.संजीव पंवार कुत्ते सहित अन्य जानवरों के काटने से घायल हुए लोगों के घाव देखकर एआरवी लगवाने की रिपोर्ट लिख रहे हैं। जबकि आयुर्वेद के डॉ.विपिन सिंह के पास कुछ चूर्ण हैं, जिसे गैस से संबंधित मरीजों को दे देते हैं। नोडल अधिकारी डॉ.रविंद्र कुमार ने बताया कि शासन से बजट आने के बाद कुछ दवाइयां आ गई हैं। इसी सप्ताह शेष दवाइयां भी आ जाएंगी। जल्द ही दवाइयां सभी केंद्रों को पहुंचा दी जाएगी।
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