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Negligence: लेट लतीफ :जब पीएसी के नहीं बने आवास तो आम आदमी की क्या औकात

आवासीय परियोजना के अंतर्गत पीएसी के जवानों के लिए प्रथम चरण में बनने वाले मकान के अवस 2 करोड़ 97 लाख रुपए की धनराशि जारी की गई थी लेकिन अभी तक काम पूरा नहीं हुआ,समय सीमा गुजर चुकी है।

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Syed Ali Mehndi
PAC POLICE

पीएसी आवासीय योजना

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गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता

सरकारी योजनाओं को तो राम भरोसे माना जाता है हालांकि जब मामला सरकारी कार्यालय या सरकारी विभाग से जुड़े आवासों का होता है तब उनमें गतिविधि आही जाती है।

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परंतु यह गाजियाबाद है यहां आम खास कोई कुछ नहीं,जिनकी ऊंची पहुंच है उनके काम होते हैं और जिनकी ऊंची पहुंच है उनकी मनमर्जी भी चलती है फिर वह ठेकेदार हूं या सरकारी अफसर हो। कुछ ऐसा ही नजर 47 में पीएसी वाहिनी के आवासीय परिसर के निर्माण को लेकर नजर आया।

समय पूरा हो गया लेकिन नहीं बने पीएसी के आवास 

दरअसल पीएसी के जवानों को गाजियाबाद में पोस्टिंग के दौरान बटालियन के बाहर ही किराए पर मकान लेने पड़ते हैं इसके चलते शासन ने फैसला किया था कि गोविंदपुरा में स्थित 47 वाहिनी के लिए 200 मकान बनाए जाएंगे।

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2020 में काम शुरू हुआ लेकिन सरकारी तंत्र अपनी लेट लतीफी के लिए तो मशहूर ही है। हैरत की बात यह है कि सरकारी विभाग के मकानों को बनाने में भी सरकारी विभागों ने रवैया नहीं बदला यह मकान दिसंबर 2024 तक बन जाना चाहिए थे लेकिन परियोजना अभी भी अधर में लटक रही है।

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प्रथम फेस के लिए 2 करोड़ 97 लाख हुए थे सैंक्शन 

आवासीय परियोजना के अंतर्गत पीएसी के जवानों के लिए प्रथम चरण में बनने वाले मकान के अवस 2 करोड़ 97 लख रुपए की धनराशि जारी की गई थी लेकिन अभी तक काम पूरा नहीं हुआ और समय सीमा गुजर चुकी है।

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सीडीओ अभिनव गोपाल

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इस संबंध में मुख्य विकास अधिकारी अभिनव गोपाल का कहना है कि कार्य में देरी हुई है इसके विभिन्न कारण थे इस संबंध में ग्रामीण अभियंता सेवा के अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है साथ ही उन्हें कार्य जल्द से जल्द पूरा करने के दिशा निर्देश दिए गए हैं।

जल्द पूरा होने के नहीं है असर

इस परियोजना योजना से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि परियोजना अधर में लटक चुकी है क्योंकि जिस तरह से परियोजना के संबंध में स्वीकृत धन जारी किया जा रहा है उसी रफ्तार से काम भी चल रहा है दरअसल सरकारी धन की प्राप्ति में ऊपर से नीचे तक बहुत अड़ंगा होता हैं जिसके चलते सरकारी काम करना बेहद मुश्किल है।

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