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New Study: वायु प्रदूषण व कुछ पारंपरिक हर्बल दवाएं हो सकती हैं फेफड़ों के कैंसर की वजह, जानें कौन से हैं कारक

पारंपरिक हर्बल दवाएं, और पर्यावरणीय कारक भी ऐसे जेनेटिक बदलाव यानी म्यूटेशन पैदा कर सकते हैं, जो फेफड़ों के कैंसर की वजह बन सकते हैं। अक्सर कहा जाता है कि फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान करने वालों की बीमारी है और ये बात सोलह आने सच भी है।  

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Mukesh Pandit
Air Pollution
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वायु प्रदूषण, कुछ पारंपरिकहर्बल दवाएं, और पर्यावरणीय कारक भी ऐसे जेनेटिक बदलाव यानी म्यूटेशन पैदा कर सकते हैं, जो फेफड़ों के कैंसर की वजह बन सकते हैं। अक्सर कहा जाता है कि फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान करने वालों की बीमारी है और ये बात सोलह आने सच भी है। लेकिन एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में सामने आया है कि अब उन लोगों में भी कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, जिन्होंने कभी बीड़ी, सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाया। मतलब कि फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ "स्मोकर्स की बीमारी" नहीं रह गया। दुनिया के कई हिस्सों में जहां धूम्रपान में कमी आई है, वहीं नॉन-स्मोकर्स यानी धूम्रपान न करने वालों में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और यह खासतौर पर महिलाओं और एशियाई मूल के लोगों में ज्यादा देखा गया है। 

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वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय कारण से गंभीर स्वास्थ्य संकट

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो और नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट(एनसीआई) द्वारा किए एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों को इस नए अध्ययन में जेनेटिक सबूत मिले हैं, जो दिखाते हैं कि वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय कारण इस गंभीर स्वास्थ्य संकट की अहम वजह हो सकते हैं। अध्ययन में बताया गया है कि वायु प्रदूषण भी वही जेनेटिक म्यूटेशन करता है जो धूम्रपान से होते हैं। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अफ्रीका, एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका के 28 क्षेत्रों में रहने वाले 871 ऐसे लोगों के फेफड़ों में ट्यूमर का अध्ययन किया, जो कभी धूम्रपान नहीं करते थे। उन्होंने पूरे जीनोम का अनुक्रमण (सीक्वेंसिंग) करके डीएनए में खास बदलावों के पैटर्न पहचाने, जिन्हें म्यूटेशनल सिग्नेचर कहा जाता है। ये पैटर्न पिछले पर्यावरणीय प्रभावों के जैविक निशान की तरह होते हैं।

प्रदूषित जगहों पर रहने वालों के ट्यूमर में ज्यादा मिले म्यूटेशन

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अध्ययन में वैज्ञानिकों ने डीएनए से जुड़े डेटा और वायु प्रदूषण के सेटेलाइट और जमीन आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इससे उन्हें यह पता लगा कि हर व्यक्ति को लंबे समय तक कितना प्रदूषण झेलना पड़ा। शोधकर्ताओं को यह भी पता चला है कि जिन लोगों ने कभी धूम्रपान नहीं किया, लेकिन वे प्रदूषित क्षेत्रों में रहते थे, उनके फेफड़ों के ट्यूमर में म्यूटेशन की संख्या बहुत अधिक थी। खासकर ऐसे म्यूटेशन जो सीधे कैंसर को बढ़ाने में मदद करते हैं। म्यूटेशन के यह निशान पहले हुए नुकसान को भी दर्शाते हैं। उदाहरण के तौर पर, इनमें तंबाकू से जुड़े म्यूटेशन 3.9 गुना और उम्र बढ़ने से जुड़े 'एजिंग म्यूटेशन' 76 फीसदी अधिक थे। अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता मार्कोस डियाज-गे का कहना है, इसका यह मतलब नहीं कि वायु प्रदूषण कोई अलग तरह के खास "म्यूटेशन सिग्नेचर" बनाता है।

वायु प्रदूषण से डीएनए में बढ़ जाती है म्यूटेशन की संख्या

बल्कि वायु प्रदूषण से डीएनए में कुल म्यूटेशन की संख्या बढ़ जाती है, खासकर उन रास्तों में जो पहले से ही डीएनए को नुकसान पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं। उनके मुताबिक वायु प्रदूषण से शरीर की सोमैटिक कोशिकाओं में म्यूटेशन बढ़ते हैं, जिनमें वे भी शामिल हैं जो तंबाकू सेवन और उम्र बढ़ने से जुड़े माने जाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जितना ज्यादा किसी व्यक्ति ने प्रदूषण झेला, उसके फेफड़ों के ट्यूमर में उतने ही ज्यादा म्यूटेशन थे। साथ ही, इन ट्यूमर में टिलोमीयर (क्रोमोजोम के सिरों पर मौजूद सुरक्षा परत) भी छोटे पाए गए, जो कोशिकाओं के जल्दी बूढ़ा होने का संकेत है।

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सेकंड हैंड स्मोक बनाम वायु प्रदूषण

अध्ययन में यह भी पाया गया कि सेकंडहैंड स्मोक की तुलना में वायु प्रदूषण का कैंसर पर ज्यादा गहरा असर पड़ा। सेकंडहैंड स्मोक और जेनेटिक बदलाव के बीच कोई मजबूत संबंध नहीं मिला। जो लोग खुद धूम्रपान नहीं करते, लेकिन सेकंडहैंड स्मोक के संपर्क में आए थे, उनके फेफड़ों के ट्यूमर में मामूली म्यूटेशन और टिलोमीयर में थोड़ी कमी देखी गई। सेकंडहैंड स्मोक से डीएनए पर कुछ प्रभाव देखे गए, लेकिन उनमें कोई खास म्यूटेशनल सिग्नेचर या कैंसर को बढ़ावा देने वाले बदलाव नहीं पाए गए। इस अध्ययन में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है, पारंपरिक चीनी जड़ी-बूटियों में इस्तेमाल होने वाला 'एरिस्टोलोचिक एसिड' भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा हो सकता है। यह असर मुख्य रूप से ताइवान के नॉन-स्मोकर्स में देखा गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन दवाओं का धुआं सांस के जरिए अंदर जाता है, जिससे यह खतरा पैदा हो सकता है।

नया म्यूटेशन, नया रहस्य

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शोधकर्ताओं ने फेफड़ों के कैंसर में एक नए "म्यूटेशनल सिग्नेचर" की भी पहचान की है, यह ज्यादातर उन लोगों में होता है जो कभी धूम्रपान नहीं करते। हालांकि अब तक इसके कारणों का पता नहीं चल पाया है। यह न ही प्रदूषण से जुड़ा है, न किसी हर्बल दवा से। यह वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य बना हुआ है। get healthy | Health Advice | Health and Fitness | Health and Time Importance | Health Awareness  lung cancer causes | air pollution effects 

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