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Headache Photograph: (ians)
नई दिल्ली, आईएएनएस। "सिर के दर्द" को ही "शिरोरोग" कहते हैं। शिरोरोग एक सामान्य सी लेकिन अत्यंत कष्टदायक समस्या है, जिसका अनुभव लगभग हर व्यक्ति ने जीवन में किसी न किसी चरण में किया है। यह समस्या कभी-कभार उत्पन्न होती है तो कभी नियमित रूप से जीवन को प्रभावित करने लगती है।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में सिरदर्द की व्याख्या एक स्वतंत्र रोग के रूप में की गई है। सुश्रुत संहिता के अनुसार, शिरोरोग को मुख्यतः पांच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है—वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज और कृमिज। वहीं चरक संहिता के सूत्रस्थान के 17वें अध्याय में भी इन्हीं प्रकारों का उल्लेख मिलता है, और इनकी उत्पत्ति त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) के असंतुलन के आधार पर मानी गई है। इसका जुड़ाव पेट की गड़बड़ी से भी है। हरेक दोष से जूझ रहे व्यक्ति को अलग-अलग तरह की समस्या होती है।
वातज सिरदर्द
वातज सिरदर्द आमतौर पर मानसिक थकान, नींद की कमी, अधिक चिंता और कब्ज जैसी स्थितियों से जुड़ा होता है। इसमें सिर में तेज दर्द होता है जो रात के समय और अधिक बढ़ सकता है। उपचार साधारण है। तेल मालिश, घी या गर्म वस्तुओं ( दूध) के सेवन से आराम मिलता है।
पित्तज सिरदर्द
पित्तज में सिर में जलन, आंखों में गर्मी, तेज प्यास और चिड़चिड़ापन प्रमुख लक्षण होते हैं। इस प्रकार के सिरदर्द में शीतल और ठंडे उपचार जैसे चन्दन का लेप, ठंडे पदार्थों का सेवन और विश्राम लाभदायक माना गया है। कफज सिरदर्द मुख्यतः भारीपन, आलस्य, नींद और नाक बंद जैसी स्थितियों के साथ होता है। यह आमतौर पर सर्दी, नमी या अधिक कफवर्धक आहार लेने के कारण होता है। इसमें धूमपान (धूमवर्ति), नस्य (नाक में औषधि डालना), गर्म पानी का भाप लेना और कफहर औषधियां उपयोगी मानी जाती हैं।
शिरोरोग को "अर्धावभेदक"
अब बात उस माइग्रेन की जो आज के कॉरपोरेट वर्ल्ड में सुनने को मिलती है। सुश्रुत संहिता में एक विशिष्ट प्रकार के शिरोरोग को "अर्धावभेदक" कहा गया है। इसमें दर्द केवल सिर के एक ओर होता है, तीव्र, चुभने जैसा होता है, और अक्सर प्रकाश या ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है। इसका कारण वात और पित्त दोषों की प्रधानता होती है। इसका उपचार नेस्य क्रिया, शिरोधारा (पंचकर्म), विश्राम और मानसिक शांति प्रदान करने वाली विधियों से किया जाता है।
चरक संहिता में ऐसे सिरदर्दों में शीतल लेप, शुद्ध देसी घी का सेवन, दूध, त्रिफला जैसे रसायन और शुद्ध वायु में विश्राम करने की सलाह दी गई है। वहीं सुश्रुत संहिता शिरोरोग के निदान और चिकित्सा में पंचकर्म जैसे शोधन उपायों का उपयोग भी आवश्यक मानती है, विशेषकर जब रोग पुराना हो या सामान्य उपायों से ठीक न हो।
एक शारीरिक रोग ही नहीं
तो कह सकते हैं कि सिरदर्द केवल एक शारीरिक रोग ही नहीं है, बल्कि यह मानसिक, आहार संबंधी और पर्यावरणीय कारणों से भी जुड़ा होता है। यदि जीवनशैली में सुधार, भोजन की शुद्धता और मानसिक स्थिति की स्थिरता को अपनाया जाए, तो शिरोरोग से न केवल राहत मिल सकती है, बल्कि इसे जड़ से मिटाना भी संभव है।