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Blood Cancer: नए रक्त परीक्षण से अब जानलेवा ब्लड कैंसर का जल्दी पता लगेगा-अध्ययन

इजरायल और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रक्त परीक्षण विकसित किया है, जो ल्यूकेमिया जैसे जानलेवा रक्त कैंसर का शुरुआती जोखिम आसानी से पता लगा सकता है। 

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YBN News
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BloodCancer Photograph: (IANS)

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नई दिल्ली, आईएएनएस। इजरायल और अमेरिका के वैज्ञानिकोंने एक ऐसा रक्त परीक्षण विकसित किया है, जो ल्यूकेमिया जैसे जानलेवा रक्त कैंसर का शुरुआती जोखिम आसानी से पता लगा सकता है। यह अध्ययन ‘नेचर मेडिसिन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। यह खोज मायलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम (एमडीएस) नामकरक्त विकारकी पहचान में मददगार होगी, जो गंभीर एनीमिया और माइलॉयड ल्यूकेमिया का कारण बन सकता है।

रक्तप्रवाह में मौजूद दुर्लभ स्टेम कोशिकाएं

वर्तमान में एमडीएस का पता लगाने के लिए बोन मैरो नमूने की जांच की जाती है, जिसमें लोकल एनीसथीसिया की जरूरत होती है। यह प्रक्रिया मरीजों के लिए दर्दनाक और असुविधाजनक होती है। लेकिन, नया रक्त परीक्षण इस मुश्किल प्रक्रिया की जगह ले सकता है।इजरायल के वीजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के शोधकर्ताओं ने पाया कि रक्तप्रवाह में मौजूद दुर्लभ स्टेम कोशिकाएं एमडीएस के शुरुआती संकेत दे सकती हैं।

साधारण रक्त नमूने से बीमारी का पता लगाया जा सकता

शोधकर्ताओं ने उन्नत तकनीक, सिंगल-सेल जेनेटिक सिक्वेंसिंग का उपयोग कर इन कोशिकाओं का विश्लेषण किया। इससे एक साधारण रक्त नमूने से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। यह परीक्षण न केवल एमडीएस, बल्कि भविष्य में अन्य आयु-संबंधी रक्त विकारों की पहचान में भी उपयोगी हो सकता है।

कोशिकाएं उम्र के साथ बदलती

अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ कि ये स्टेम सेल्स एक बायोलॉजिकल क्लॉक की तरह काम करती हैं, जो व्यक्ति की उम्र के बारे में जानकारी देती हैं। शोध में पाया गया कि पुरुषों में इन कोशिकाओं में बदलाव महिलाओं के मुकाबले जल्दी आता है, जिसकी वजह से पुरुषों में रक्त कैंसर अधिक देखने को मिलता है।

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वीजमैन इंस्टीट्यूट की डॉ. नीली फ्यूरर ने बताया, "ये कोशिकाएं उम्र के साथ बदलती हैं और पुरुषों में इनका बदलाव जल्दी होता है, जिससे उनका कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।"

रक्त कैंसर के इलाज को आसान बनाता

यह नया रक्त परीक्षण रक्त कैंसर के इलाज को आसान और कम दर्दनाक बना सकता है। साथ ही, भविष्य में दूसरी उम्र से जुड़ी खून की बीमारियों का पता लगाने में भी मददगार हो सकता है। इस खोज को लेकर दुनिया के कई अस्पतालों में बड़े स्तर पर परीक्षण चल रहे हैं।
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