Health : 1993 से 2022 के बीच भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में खतरनाक बदलाव हुए हैं। भारत उन शीर्ष 10 देशों में शामिल है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। हालात इतने गंभीर हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण 10 फीसदी मौतें दर्ज की गई हैं। जलवायु संकट का असर न केवल पर्यावरण बल्कि स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। इसके चलते ओवरऑल हेल्थ पर 4.3 फीसदी नुकसान दर्ज किया गया है।
जलवायु संकट में भारत छठवें स्थान पर
बॉन और बर्लिन की एक स्वतंत्र विकास, पर्यावरण और मानवाधिकार संगठन ‘जर्मनवॉच’ की क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 रिपोर्ट में भारत को छठे स्थान पर रखा गया है, जो देश में बढ़ते जलवायु संकट को दर्शाता है। इस सूची में भारत से आगे डोमिनिका, चीन, होंडुरास, म्यांमार और इटली हैं। बीते वर्षों में भारत ने बाढ़, लू और चक्रवातों जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है। 1993, 1998 और 2013 में विनाशकारी बाढ़ आईं, जबकि 2002, 2003 और 2015 में भीषण गर्मी की लहरें दर्ज की गईं। कुल मिलाकर, भारत ने 400 से अधिक चरम मौसम आपदाओं का सामना किया, जिससे कम से कम 80,000 मौतें हुईं और 180 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
कई आपदाओं का किया सामना
भारत में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कुछ बड़ी घटनाओं में 1998 का गुजरात चक्रवात, 1999 का ओडिशा चक्रवात, 2013 की उत्तराखंड बाढ़ और 2014 व 2020 में आए चक्रवात हुदहुद और अम्फान शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर चरम मौसम की घटनाओं के कारण लगभग 800,000 मौतें हुईं और 4.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। इस सूची में ग्रीस, स्पेन, वानुअतु और फिलीपींस भी शीर्ष 10 प्रभावित देशों में शामिल हैं।
दक्षिणी गोलार्ध के देश इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित
ग्लोबल सेफ्टी के लिए जलवायु संकट एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, जिसे साहसिक बहुपक्षीय कार्रवाइयों के साथ संबोधित किया जाना चाहिए। म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में यह बात सामने आई कि जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज कर सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करना अब संभव नहीं है। दक्षिणी गोलार्ध के देश इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और भविष्य में यह संघर्षों को बढ़ाने, समाजों को अस्थिर करने और वैश्विक मानव सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने का कारण बन सकता है।
ठोस नीतियों और वित्तीय सहयोग की आवश्यकता
‘जर्मनवॉच’ की रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए उपलब्ध वित्तीय सहायता अपर्याप्त है। COP29 सम्मेलन जलवायु वित्त पर एक महत्वाकांक्षी समाधान निकालने में विफल रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि 2035 तक सालाना 300 बिलियन डॉलर की जरूरत होगी, ताकि बढ़ते जलवायु संकट का प्रभावी समाधान निकाला जा सके। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, भारत समेत सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस नीतियों और वित्तीय सहयोग की आवश्यकता है।