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खांसी, दर्द और सूजन को दूर करने में माहिर है 'नीलगिरी', पर बेहद सावधानी से करें इसका इस्तेमाल

सेहत को बनाए रखने के लिए आजकल लोग प्राकृतिक चीजों की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। प्रकृति में कई ऐसे पेड़-पौधे हैं, जो हमारे शरीर को रोगों से दूर रखते हैं। इनमें से एक है 'नीलगिरी', जिसे यूकेलिप्टस भी कहा जाता है, एक अत्यंत लाभकारी पेड़ है।

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YBN News
Neelgiri
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सेहत को बनाए रखने के लिए आजकल लोग प्राकृतिक चीजों की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। प्रकृति में कई ऐसे पेड़-पौधे हैं, जो हमारे शरीर को रोगों से दूर रखते हैं। इनमें से एक है 'नीलगिरी', जिसे यूकेलिप्टस भी कहा जाता है, एक अत्यंत लाभकारी पेड़ है। इसका हर एक हिस्सा, खासकर इसके पत्तों से निकाले जाने वाला तेल, औषधीय रूप में गुणकारी माना जाता है, जो कई बीमारियों और तकलीफों में रामबाण की तरह काम करता है। 

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बीमारियों और तकलीफों में रामबाण

जानकारी हो कि अगर आपको सर्दी-खांसी, जोड़ों का दर्द, गठिया, साइटिका, या फिर सूजन की समस्या है, तो नीलगिरी का तेल आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। लेकिन इसका इस्तेमाल बेहद सावधानी से करना चाहिए। 

अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, नीलगिरी तेल पर वैज्ञानिकों और अनुसंधान संस्थानों ने कई शोध किए हैं। इन वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि इसका तेल बहुत खास होता है और इसे कई तरह की बीमारियों में काम में लिया जा सकता है। शोधों में यह देखा गया है कि नीलगिरी के तेल में मौजूद कुछ रसायन जैसे सिनेओल और अल्फा-पाइनिन दर्द और सूजन कम करने में मदद करते हैं। इससे मांसपेशियों का दर्द, गठिया और साइटिका जैसी समस्याओं में आराम मिलता है।

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एक चमत्कारी औषधि

नीलगिरी का तेल, खासकर घर में होने वाली आम समस्याओं के लिए, एक चमत्कारी औषधि के रूप में जाना जाता है। इसका तेल सर्दी, खांसी और बंद नाक जैसे श्वसन संबंधी रोगों में भी फायदेमंद है। जब आप इसकी कुछ बूंदों को पानी में डालकर भाप लेते हैं, तो यह श्वसन तंत्र को साफ करता है और बंद नाक खोलने में मदद करता है। इसमें मौजूद सिनिओल नामक तत्व बलगम को ढीला करके बाहर निकालने में सहायक होता है। इसके अलावा, यह तेल मांसपेशियों के दर्द और सूजन को भी कम करता है, इसलिए जोड़ों के दर्द, साइटिका या गठिया जैसी समस्याओं में यह बहुत उपयोगी है।

यह तेल एंटीसेप्टिक और एंटीफंगल गुणों से भरपूर

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यह तेल एंटीसेप्टिक और एंटीफंगल गुणों से भरपूर होता है, जो त्वचा पर होने वाले मुंहासे, फोड़े-फुंसी और फंगल इन्फेक्शन को ठीक करता है। इसके तेल को घाव पर लगाने से संक्रमण का खतरा कम होता है और घाव जल्दी भरते हैं।

अरोमाथेरेपी, जिसे सुगन्ध चिकित्सा

वहीं, इस तेल की तीव्र गंध मच्छरों और कीटों को दूर रखती है और मन को तरोताजा रखती है, जिससे एकाग्रता बढ़ती है। यही कारण है कि इसे अरोमाथेरेपी में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि अरोमाथेरेपी, जिसे सुगन्ध चिकित्सा भी कहा जाता है, पौधों से प्राप्त आवश्यक तेलों का उपयोग करके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की एक विधि है। इसके तहत मन, शरीर और आत्मा को एक साथ स्वस्थ करने का प्रयास किया जाता है।

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कुछ सावधानियां भी बरतनी जरूरी

फायदों के साथ-साथ नीलगिरी तेल से जुड़ी कुछ सावधानियां भी बरतनी जरूरी हैं। इसे कभी भी सीधे त्वचा पर न लगाएं, क्योंकि यह जलन या एलर्जी का कारण बन सकता है। हमेशा किसी कैरियर ऑयल के साथ मिलाकर ही उपयोग करें। वहीं, इसे आंखों के पास या आंखों में न लगाएं। इसकी तीव्र गंध और रासायनिक गुण आंखों में जलन पैदा कर सकते हैं। इसकी अधिक मात्रा का सेवन या अत्यधिक प्रयोग न करें। ज्यादा इस्तेमाल करने से उल्टी, चक्कर या एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इसका उपयोग डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।

आईएएनएस। 

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