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How to Improve Eyesight: दुनिया देखनी है तो करें अपनी आंखों की देखभाल, जानिए कैसे

उम्र बढ़ने, आंखों में चोट लगने, लेंस खराब होने और कॉर्निया या ऑप्टिक नर्व में किसी तरह की समस्या पैदा होने पर आपके देखने की क्षमता प्रभावित होती है। नतीजतन, आपको वस्तुएं साफ-साफ देखने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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Mukesh Pandit
Eye care
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आंखें शरीर के सबसे खास अंगों में से एक हैं। इनकी मदद से ही आप दुनिया की सभी चीजों को देखते और अनुभव करते हैं। उम्र बढ़ने, आंखों में चोट लगने, लेंस खराब होने और कॉर्निया या ऑप्टिक नर्व में किसी तरह की समस्या पैदा होने पर आपके देखने की क्षमता प्रभावित होती है। नतीजतन, आपको वस्तुएं साफ-साफ देखने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति को आम भाषा में  blurry vision दृष्टि का धुंधला होना कहा जाता है। विशेषज्ञ के अनुसार, आमतौर पर आंखों में धुंधलेपन के कई कारण हैं, जिनमें कारण मोतियाबिंद, काला मोतियाबिंद, मायोपिया, हाइपरोपिया और एस्टिग्मेटिज्म होते हैं।

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आंखों में धुंधलापन का कारण

मोतियाबिंद 

मोतियाबिंद के कारण आंखों में धुंधलापन आना एक समस्या है। मोतियाबिंद को कैटरैक्ट भी कहा जाता है और यह पूरी दुनिया में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। यह एक गंभीर स्थिति से जिससे पीड़ित होने पर लेंस में धुंधलापन छा जाता है, जिस कारण मरीज को वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं। मोतियाबिंद कई कारणों से होता है, जिसमें मोटापा, धूम्रपान करना, उच्च मायोपिया, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, शराब का अधिक सेवन, डायबिटीज होना, हाइपरटेंशन की शिकायत, आंखों में चोट लगना या सूजन होना, आंखों का पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आना और आंखों की पहले कभी सर्जरी कराना एवं आनुवंशिक कारण आदि शामिल हैं।

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कारण
मोतियाबिंद के कारणों में दृष्टि का धीमा और धुंधला होना, (Night Blindness) रात के समय कम दिखाई देना, Color Blindness रंगों को पहचानने में परेशानी होना, रौशनी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ना, चश्मे के नंबर में अचानक बदलाव आना, डबल विजन की शिकायत होना, ड्राइविंग करने में दिक्कत होना, तेज रोशनी में आंखें चौंधियाना और रोशनी के चारों तरह एक गोलाकार परछाई दिखाई देना आदि शामिल हैं।

उपचार:
सर्जरी: एकमात्र प्रभावी उपचार। इसमें धुंधले लेंस को हटाकर कृत्रिम लेंस (IOL) प्रत्यारोपित किया जाता है। यह एक सुरक्षित और सामान्य प्रक्रिया है, जिसे फैकोइमल्सीफिकेशन या लेसिक सर्जरी तकनीक से किया जाता है।
शुरुआती अवस्था में चश्मे या उचित प्रकाश व्यवस्था से दृष्टि में सुधार हो सकता है, लेकिन यह अस्थायी है।
कोई दवा या घरेलू उपाय मोतियाबिंद को ठीक नहीं कर सकता।

ब्लैक मोतियाबिंद 

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काला मोतियाबिंद को ग्लूकोमा के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थिति से पीड़ित होने पर ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है, जिसके कारण यह खराब हो जाता है। ऑप्टिक नर्व का काम वस्तु के सिग्नल को दिमाग तक भेजना है जो आगे उन्हें उस इमेज के रूप में पेश करता है जो आप देखते हैं। लेकिन ऑप्टिक नर्व खराब होने पर यह सिग्नल को दिमाग तक नहीं भेज पाता है और आपको चीजें धुंधली दिखाई पड़ती हैं। आपकी दृष्टि साफ होने के लिए लेंस, रेटिना, कॉर्निया और ऑप्टिक नर्व का स्वस्थ होना आवश्यक है। काला मोतियाबिंद को पूरी दुनिया भर में अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
कारण
इसके मुख्य कारणों में बुढ़ापा, आंख की सर्जरी, आंखों में चोट लगना या सूजन होना, हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित होना, डाइलेटिंग आई ड्रॉप का इस्तेमाल करना, ऑप्टिक नर्व में ब्लड सर्कुलेशन कम होना और मायोपिया आदि शामिल हैं। काला मोतियाबंद के लक्षणों में जी मिचलाना, उलटी होना, सिर में दर्द होना, चक्कर आना, आंखें लाल होना, आंखों में तेज दर्द होना और रौशनी के चारों तरह एक गोलाकार परछाई दिखाई देना आदि शामिल हैं।

उपचार:
दवाएं: आंखों की बूंदें (जैसे बीटा-ब्लॉकर्स, प्रोस्टाग्लैंडिन एनालॉग्स) दबाव को नियंत्रित करने के लिए।
लेजर उपचार: जैसे ट्रैबेक्यूलोप्लास्टी या इरिडोटॉमी, जो द्रव निकासी को बेहतर बनाते हैं।
सर्जरी: गंभीर मामलों में ट्रैबेक्यूलेक्टॉमी या शंट सर्जरी की जाती है।
नियमित जांच और जल्दी उपचार महत्वपूर्ण है, क्योंकि ग्लूकोमा से होने वाली दृष्टि हानि स्थायी होती है

मायोपिया  

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इस स्थिति को निकट दृष्टि दोष या निकटदर्शीता के नाम से भी जाना जाता है। मायोपिया से पीड़ित होने पर नजदीक की वस्तुएं साफ और दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं। मायोपिया से पीड़ित होने पर आंख की पुतली का आकार सामान्य से अधिक बड़ा हो जाता है। नतीजतन, आंखों में जाने वाली रौशनी रेटिना पर केंद्रित होने के बजाय रेटिना से थोड़ा आगे केंद्रित हो जाती है। मायोपिया के कारणों में काफी चीजें शामिल हैं जैसे कि आंख की पुतली का आकार बढ़ना, कॉर्निया का सुडौल होना, शराब और सिगरेट का अधिक सेवन करना, सूरज की रौशनी में कम से कम समय बिताना, लंबे समय तक टीवी, लैपटॉप और मोबाईल की स्क्रीन के सामने समय बिताना साथ ही साथ स्क्रीन और अपनी आंख के बीच आवश्यक दूरी का ख्याल नहीं रखना आदि।

कारण
मायोपिया के मुख्य लक्षणों में बार-बार पालक झपकना, आंखों को मलना, दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई पड़ना, टीवी देखते या किताब पढ़ते समय बहुत करीब बैठना, आंखों पर दबाव पड़ना, आंखों में दबाव पड़ने के कारण सिर में दर्द होना, रात को गाड़ी चलाने में परेशानी होना और किसी वस्तु को साफ-साफ देखने के लिए आंखों को तिरछा करना या उन्हें लगभग बंद कर देना आदि शामिल हैं।

उपचार:
चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस: नकारात्मक पावर (-ve) वाले लेंस दृष्टि को सुधारते हैं।
रिफ्रैक्टिव सर्जरी: जैसे LASIK या PRK, जो कॉर्निया को पुनर्जनन करके दृष्टि ठीक करते हैं।
ऑर्थोकेराटोलॉजी: विशेष कॉन्टैक्ट लेंस जो रात में पहनकर कॉर्निया को अस्थायी रूप से आकार देते हैं।
बच्चों में मायोपिया को नियंत्रित करने के लिए विशेष लेंस या एट्रोपिन ड्रॉप्स का उपयोग किया जा सकता है।

 हाइपरोपिया

हाइपरोपिया को दूर दृष्टि दोष और हाइपरमेट्रोपिया के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज को दूर की वस्तुएं साफ और नजदीक की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं। हाइपरमेट्रोपिया होने पर आंख में जाने वाली रौशनी रेटिना पर केंद्रित होने के बजाय रेटिना के पीछे केंद्रित होती है, जिसके कारण मरीज को पास की वस्तुएं साफ-साफ दिखाई नहीं देती हैं। हाइपरोपिया कई कारणों से होता है, लेकिन इसके मुख्य कारणों में आई बॉल का आकार सामान्य से अधिक छोटा होना है। कुछ मामलों में यह समस्या बच्चों को जन्मजात होती है, लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है यह समस्या अपने आप ही दूर हो जाती है। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो इलाज की आवश्यकता पड़ती है।

कारण 
दृष्टि का धुंधला होना, पास की वस्तुओं का धुंधला दिखाई देना, सिर में दर्द होना, कमजोरी और थकावट महसूस करना, आंखों पर दबाव पड़ना, बाइनोकुलर विजन होना, किसी भी वस्तु को गौर से देखने के लिए आंखें सिकुड़ना और गहराई को देखने में दिक्कत होना आदि हाइपरोपिया के मुख्य लक्षण हैं। अगर आपको  हाइपरोपिया है तो चश्मा, कॉन्टेक्ट लेंस या सर्जरी की मदद से इससे छुटकारा पा सकते हैं

चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस: सकारात्मक पावर (+ve) वाले लेंस दृष्टि को सुधारते हैं।
रिफ्रैक्टिव सर्जरी: LASIK या PRK के माध्यम से कॉर्निया को आकार देकर सुधार किया जा सकता है।
हल्के हाइपरोपिया में आंखें स्वयं समायोजन कर सकती हैं, लेकिन लंबे समय तक पढ़ने या काम करने से सिरदर्द हो सकता है, जिसके लिए चश्मा जरूरी है।

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