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आयुर्वेद से लेकर मास्क तक: Diwali के बाद प्रदूषण से खुद को ऐसे बचाएं

दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो गई, जहां एक्यूआई 450 से 500 तक पहुंच गया, जो “गंभीर श्रेणी” में है। पटाखों से निकला धुआं लंबे समय तक हवा में बना रहता है,

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Ranjana Sharma
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: दिवाली की जगमगाती रात हर दिल में खुशियां भर देती है, लेकिन उसी रोशनी के बाद की सुबह अक्सर सांसों में घुटन और आसमान में धुएं का पर्दा छोड़ जाती है। 20 अक्टूबर 2025 की सुबह, देश के कई शहरों ने त्योहार की खुशी के बाद जहरीली हवा का कड़वा सच महसूस किया। दिल्ली-एनसीआर में एक्यूआई 450 से 500 के बीच दर्ज हुआ, जो “गंभीर श्रेणी” में आता है। यह वही स्तर है जहां सांस लेना सिर्फ कठिन नहीं, बल्कि खतरनाक हो जाता है। 

पटाखों का धुआं हवा में लंबे समय तक रहता है

पटाखों की आवाज भले कुछ पल की हो, लेकिन उनका धुआं हवा में लंबे समय तक बना रहता है। इस धुएं में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों तक पहुंचते हैं। डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार, पीएम 2.5 का सुरक्षित स्तर 25 माइक्रोग्राम/मी3 होना चाहिए, लेकिन 20 अक्टूबर की सुबह दिल्ली के कुछ हिस्सों में यह 350 माइक्रोग्राम/मी3 को पार कर गया। यही कारण है कि त्योहार के तुरंत बाद अस्पतालों में खांसी, तेज सांस, अस्थमा अटैक और आंखों में जलन के मामले बढ़ जाते हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर साफ दिखाई देता है, क्योंकि उनकी श्वसन क्षमता पहले से ही संवेदनशील होती है।

प्रदूषण से शरीर में टॉक्सिन बढ़ता है 

आयुर्वेद इस स्थिति को ‘दूषित वायु से उत्पन्न विकार’ मानता है। प्राणवायु यानी जीवन देने वाली हवा जब प्रदूषित हो जाती है, तो शरीर में आम (टॉक्सिन) बढ़ता है और कफ मार्ग में अवरोध पैदा करता है। दिवाली के बाद सिर्फ आराम नहीं, बल्कि शरीर की शुद्धि और अग्नि (पाचन शक्ति) को संतुलित करना जरूरी होता है। नस्य कर्म—नाक में तिल के तेल या घी की दो बूंदें डालना—एक प्राचीन उपाय है जो नाक की श्लेष्म परत को सुरक्षित करता है और प्रदूषण के असर को कम करता है। यह सिर्फ नाक की सफाई नहीं, बल्कि सांस की ढाल है।

आसान कदम भी काफी मददगार हो सकते हैं

दैनिक जीवन में आसान कदम भी काफी मददगार हो सकते हैं। सुबह के समय बिना मास्क बाहर निकलना हानिकारक हो सकता है। डॉक्टर एन-95 या एन-99 मास्क पहनने की सलाह देते हैं, क्योंकि यही पीएम 2.5 तक को रोक सकते हैं। घरेलू नुस्खे की बात करें तो तुलसी, अदरक और काली मिर्च का काढ़ा शरीर में जमा कफ को तोड़ता है और गले की जलन शांत करता है। गुड़ और काली मिर्च का सेवन, हल्दी वाला दूध या मुलेठी चूर्ण भी श्वसन तंत्र को राहत देता है। आयुर्वेद कहता है कि गरम पानी का धीरे-धीरे सेवन प्रदूषण से जमा विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है।

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भोजन भी रखता है मायने 

भोजन का चयन भी इस समय विशेष मायने रखता है। दिवाली के दौरान भारी, तैलीय और मीठे भोजन से शरीर थका हुआ होता है। ऐसे में त्योहार के बाद हल्का, सुपाच्य आहार—जैसे मूंग दाल खिचड़ी, लौकी, या जीरा-हींग वाला सूप—अग्नि को पुनर्जीवित करता है। रात को देर तक जागने की आदत भी शरीर पर असर छोड़ती है। आयुर्वेद “दिवाली के बाद विश्राम” शरीर के लिए आवश्यक होता है। नींद सिर्फ थकान मिटाती नहीं, बल्कि फेफड़ों की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है।

इनपुट-आईएएनएस

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