नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
Trump प्रशासन द्वारा लगाए गए Reciprocal Tariff ने भारत का 280 बिलियन डॉलर के सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री प्रभावित हुई है। दरअसल इंडस्ट्री अपने कुल राजस्व का लगभग 50 प्रतिशत अमेरिका से प्राप्त करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अल्पकालिक चुनौतियां तो जरूर आएंगी, लेकिन दीर्घकाल में विकास और अनुकूलता की संभावनाएं भी बनी रहेंगी। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रेसिप्रोकल टैरिफ से अमेरिकी कंपनियों पर महंगाई का दबाव बढ़ेगा। जाहिर तौर पर अमेरिकी कंपनियों को अपने खर्च कम करने के लिए कुछ कदम उठाने पड़ेंगे। इसका सीधा असर भारतीय आईटी फर्मों पर पड़ेगा, जो पहले से ही वित्त वर्ष 2023-24 की धीमी वृद्धि से उबरने का प्रयास कर रही हैं।
चुनौतियों से जूझ रहा आईटी क्षेत्र
जानकारों का कहना है कि अप्रैल से जून की पहली तिमाही में अनुमानित राजस्व अपेक्षा से कम रह सकता है और मार्च तिमाही में इसमें लगभग 1.3 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जा सकती है। एवरेस्ट ग्रुप के प्रैक्टिस डायरेक्टर आकाश वर्मा के अनुसार donald trump tariff सेवाओं की मांग को प्रभावित करेंगे, आपूर्ति को नहीं। अल्पकाल में, विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और रिटेल जैसे क्षेत्रों पर लागत का दबाव बढ़ेगा, जिससे गैर-जरूरी आईटी खर्च में कटौती होगी।"
विशेषज्ञों को दीर्घकालिक संभावनाओं की उम्मीद
दूसरी ओर विशेषज्ञों का मानना है कि प्रारंभिक प्रभाव नकारात्मक हो सकते हैं, लेकिन उद्योग के विशेषज्ञ मध्यम और दीर्घकाल में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद देख रहे हैं। 5F वर्ल्ड के संस्थापक गणेश नटराजन का मानना है कि अमेरिका में फिर से उभरते विनिर्माण क्षेत्र में नए अवसर बन सकते हैं। वे कहते हैं कि कंपनियां लागत घटाने, सप्लायर्स में विविधता लाने और ऑटोमेशन बढ़ाने पर ध्यान देंगी, जिससे सेवा प्रदाताओं के लिए नए विकास के रास्ते खुलेंगे।
छह माह तक रह सकता है प्रतिकूल प्रभाव
कॉन्स्टेलेशन रिसर्च के संस्थापक रे वांग का अनुमान है कि यह प्रभाव लगभग छह महीने तक सीमित रहेगा, उसके बाद अमेरिकी कंपनियां फिर से तकनीकी निवेश शुरू कर सकती हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी संभावना जताई कि अमेरिका में सेवा व्यापार असंतुलन को देखते हुए H1-B वीज़ा की संख्या बढ़ सकती है, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों को लाभ मिलेगा।