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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने गर्मी को लेकर रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग का कहना है कि इस बार न केवल अधिकतम तापमान पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर देगा, बल्कि लू के थपेड़े आपको कहीं ज्यादा दिनों तक भी झेलने पड़ेंगे। अप्रैल और मई की गर्मी झुलसा देने वाली होगी। उत्तरी भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भी भारी गर्मी की चपेट में रहने वाले हैं। भारतीय मौसम विभाग ने 2024 में 554 हीटवेव रिकॉर्ड की थीं, लेकिन मौसम विज्ञानियों का कहना है कि इस बार यह रिकॉर्ड कहीं पीछे रह जाएगा। फरवरी और मार्च का तापमान हमें आगाह करने का काम कर चुका है।
फरवरी ने तोड़ा रिकॉर्ड, मार्च उससे भी आगे
इस साल फरवरी इतनी गर्म रही कि पिछले 125 साल का रिकॉर्ड टूट गया। आईएमडी के मुताबिक इस बार फरवरी माह का अधिकतम औसत तापमान 22.04 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ है, यह सामान्य से 1.34 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसी तरह मार्च का औसत अधिकतम तापमान 32.2 डिग्री सेल्सियस रहा। मार्च का इतना औसत अधिकतम तापमान आने वाले दिनों के लिए आग कर रहा है। मौसम विभाग ने अप्रैल के पहले सप्ताह में सूरज की 42 डिग्री तक पहुंचने की चेतावनी जारी की है। यानी अप्रैल की शुरूआत ही हीट वेब से होने वाली है। यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में धरती धधकने लगेगी। यह चुनौती केवल भारत के सामने नहीं है, बल्कि कैलीफोर्निया, साइबेरिया, यूरोप, एशिया और ऑस्ट्रेलिया समेत पूरी दुनिया के सामने है।
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प्राकृतिक असंतुलन दुनिया के आगे बड़ी चुनौती
एक बात आपने अक्सर सुनी होगी। कुछ भी बुरा होने पर बस कहकर छूट जाना चाहते हैं, कुदरत को यही मंजूर था। क्या इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि कुदरत को यही मंजूर क्यों था। यूं ही प्राकृतिक आपदा को नियति न मानिए। उसका का कारण जानने का प्रयास करिए। उसका रहस्य जानने का प्रयास करिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने ही कुदरत को ऐसा करने पर मजबूर किया हो। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती घटनाओं, जैसे बाढ़, भूकंप, जंगल की आग और ग्लेशियर आदि के प्रकोप के कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होने को मजबूर हो रहे हैं, इन घटनाओं ने मानव जाति को चिंताओं में डाल दिया है।
प्रकृति का स्वभाव सृजनात्मक, पर हो क्या रहा है
कैलीफोर्निया में भारी बारिश और उसके बाद होने वाले भयंकर भूस्खलन प्रकृति के असंतुलन का ही परिणाम हैं। 2024 में हिंद महासागर में आए भूकंप के चलते सूनामी में करीब 2,29000 जानें गई थीं। यह अब तक का दूसरा सबसे बड़ा भूंकप माना जाता है। पिछले सप्ताह Myanmar earthquake को ही ले लीजिए। यह प्रकृति को रोष ही तो है।म्यांमार में आए भूकंप में करीब 35 लाख लोग बेघर हुए हैं। शहर के शहर तबाह हो गए। दक्षिण कोरिया के जंगल में लगी आग भी कहीं न कहीं कुदरत का क्रोध ही तो है। 38 हजार हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ गए। 18 लोगों की मौत हो गई और करीब 38 हजार लोग बेघर हो गए। यह सब प्रकृति का असंतुलन नहीं तो और क्या है? प्रकृति से यदि आप छेड़छाड़ न करें तो उसका स्वभाव सृजन वाला है, लेकिन हम उसे वैसा रहने दें तब न।
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ग्लोबल वार्मिंग क्या, और क्यों
कुदरत के क्रोध का बड़ा कारण है ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग का कारण है वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों (मीथेन, कार्बन डाईआक्साइड, आक्साइड और क्लोरो फ्लोरो कार्बन) का बढ़ना। यह गैस मानव निर्मित जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) जलाए जाने के साथ ही बढ़ते औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वनों की कटाई के कारण बढ़ रही हैं। यही कारण है कि पिछली शताब्दी में पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में असामान्य रूप से वृद्धि हुई है और इसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र तल बढ़ रहा है और जैव विविधता को नुकसान हो रहा है, लेकिन हम इस पर कितना गंभीर हैं यह सोचने की जरूरत है।
बड़ा सवालः कैसे बचेगी दुनिया
अब बड़ा सवाल यह है कि प्राकृतिक संतुलन ऐसे ही बिगड़ता रहा तो दुनिया कैसे बचेगी। इसके लिए जरूरी है कि हम प्रकृति को दोहन करने बजाय, कुछ देना भी सीखें। जिस अनुपात में वनों की कटाई कर रहे हैं उससे अधिक पौधे लगाने की जरूरत है। जीवाश्म ईंधन के बजाय प्राकृतिक ईंधन (सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा) पर जोर दें। अपनी जरूरतें सीमित करें। जलवायु परिवर्तन को वैश्विक खतरा मानने के बावजूद, नीतियों में पर्याप्त कार्रवाई और समन्वय की कमी कुछ कहती है। है।
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