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सुप्रीम कोर्ट को पेगासस से दिक्कत नहीं, पर खास लोगों की जासूसी से है, जानें क्या बोले जस्टिस ?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में पेगासस का उपयोग गलत नहीं, लेकिन विशेष व्यक्तियों की जासूसी अनुचित है और ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई होगी।

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Shailendra Gautam
supreme court and spy
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारत सरकार अगर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल नेशनल सिक्योरिटी के जुड़े मामलों में करती है तो कुछ भी गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार को ऐसा करने का पूरा हक है। लेकिन इसके जरिये किसी खास शख्स की जासूसी कराई जा रही है तो ये गलत है। सर्वोच्च न्यायालय ऐसे मामलों को संजीदगी से सुनेगा और संविधान के तहत उनको राहत देने के लिए जो भी कदम उठाया जा सकता है अदालत उस पर अमल करने से किसी भी सूरत में गुरेज नहीं करेगी।  

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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सरकार की तरफ से व्यक्ति विशेष की जासूसी कराए जाने को लेकर दायर याचिकाओं पर ये टिप्पणी की है। बेंच का कहना था कि पेगासस से इस अदालत को कोई परेशानी नहीं है। सरकार को पूरा हक है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में इसका इस्तेमाल कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति सुरक्षा के लिए खतरा है तो सरकार पेगासस के जरिये उसकी निगरानी कर सकती है। बेंच का कहना था कि अगर सार्वजनिक जीवन से जुड़े किसी व्यक्ति की जासूसी सरकार की तरफ से कराई जा रही है तो अदालत इस तरह के मामलों को सुनेगी और इस तरह की हरकतों पर रोक लगाने का काम करेगी।   

एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट नहीं कर सकते सार्वजनिक

supreme court ने कहा कि पेगासस को लेकर बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कम से कम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में। इससे गली चौराहों पर ये रिपोर्ट चर्चा का विषय बन जाएगी। लेकिन जो लोग पेगासस से प्रभावित हुए हैं उनको व्यक्तिगत तौर से जानकारी मुहैया कराई जा सकती है। 

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इजरायल की कंपनी ने बनाया है स्पाइवेयर, दावा- केवल सरकारों को बेचा

पेगासस स्पाइवेयर इजरायल की फर्म एनएसओ का दूसरा नाम है। कंपनी का दावा है कि उसने ये स्पाइवेयर चुनिंदा सरकारों को मुहैया कराया है, किसी निजी संस्था को नहीं। हालांकि कंपनी ने कभी भी उन सरकारों के नाम नहीं बताए जिनको पेगासस बेचा गया है। कंपनी का कहना है कि वो नाम उजागर नहीं कर सकती है। 

2021 में उठा था मामला, सरकार पर लगा था जासूसी का आरोप

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साल 2021 में वायर समेत मीडिया जगत की कई दिग्गज कंपनियों ने ये दावा करके सनसनी फैला दी थी कि सरकार कुछ खास लोगों के फोन की निगरानी पेगासस के जरिये कर रही है। ऐसे लोगों में चुनिंदा वकीलों, पत्रकारों, अधिकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस का नाम भी थी। इस तरह की रिपोर्ट सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिटें दायर हुईं। रिट दायर करने वाले लोगों में वकील एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जान ब्रिटास, हिंदू के निदेशक एन राम, एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह समेत 29 लोग भी शामिल थे।  

सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी

याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी गठित की थी। इसकी कमान सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके जस्टिस आरवी रविंदरन को सौंपी गई थी। कमेटी ने जुलाई 2022 में अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल कर दी थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि उसने जिन 29 मोबाइल फोन्स की जांच की उनमें पेगासस नहीं मिला। हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि 29 में से 5 फोन्स में कुछ मालवेयर मिले। लेकिन वो पेगासस नहीं था। 

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सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया- कमेटी

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने ये दावा करके मामले को पेंचीदा बना दिया था कि सरकार ने जांच में उसका सहयोग रत्ती भर भी नहीं किया। कमेटी का कहना था कि जब भी उन लोगों ने सरकार ने किसी मसले पर मदद मांगी सरकार का रवैया टालमटोल वाला ही था। सहयोग जैसा काम उनकी तरफ से नहीं किया गया। 

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