वाशिंगटन, वाईबीएन नेटवर्क।
अमेरिकी सरकार के कार्यदक्षता विभाग (डीओजीई) द्वारा "भारत में मतदान" के लिए 21 मिलियन डॉलर का फंड रद्द करने के फैसले का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समर्थन किया। उन्होंने ‘‘भारत में चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने’’ के लिए 2.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आवंटन के मकसद पर भी सवाल उठाया और कहा, ‘‘भारत दुनिया में सबसे अधिक कर लगाने वाले देशों में से एक है’।’’
उन्होंने ये टिप्पणियां एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई (सरकारी कार्यदक्षता विभाग) द्वारा यह खुलासा किए जाने के बाद की कि ‘यूएसएड’ ने भारत में मतदान में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग को 2.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है।
Funding पर जताया आश्चर्य
उन्होंने कहा कि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है और वह दुनिया के सबसे ज्यादा कर वसूलने वाले देशों में से एक है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका को भारत के साथ व्यापार करने में मुश्किल होती है क्योंकि वहां के टैरिफ बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया लेकिन इस बात पर आश्चर्य जताया कि भारत में मतदान प्रक्रिया के लिए अमेरिका को पैसा देने की जरूरत क्यों महसूस हुई।
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क्या है मामला
यह विवाद तब शुरू हुआ जब एलन मस्क के नेतृत्व में अमेरिकी कार्यदक्षता विभाग (डीओजीई) ने 16 फरवरी को 21 मिलियन डॉलर की निधि को रोकने की घोषणा की। डीओजीई ने एक्स पर एक पोस्ट के जरिए जानकारी दी कि कई विदेशी सहायता कार्यक्रमों को गैर-जरूरी या अत्यधिक खर्च वाला मानते हुए बंद किया गया है। इस सूची में भारत में मतदाता मतदान प्रोजेक्ट सबसे ऊपर था। इसके अलावा, बांग्लादेश में राजनीतिक सुधारों के लिए 29 मिलियन डॉलर और नेपाल में राजकोषीय संघवाद व जैव विविधता संरक्षण के लिए 39 मिलियन डॉलर की फंडिंग भी बंद कर दी गई।
फैसले पर भाजपा ने जताई नाराजगी
भारत में इस फैसले को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस निधि को रोकने के फैसले की आलोचना की और इसे भारत की चुनावी प्रक्रिया में “विदेशी हस्तक्षेप” करार दिया। भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने सवाल किया कि आखिर इस धनराशि से किसे फायदा हुआ, यकीन है सत्तारूढ़ पार्टी को तो इससे कोई लाभ नहीं हुआ होगा! उन्होंने इसे विदेशी संस्थाओं द्वारा भारतीय संस्थानों में “व्यवस्थित घुसपैठ” का हिस्सा बताया और कहा कि इससे भारत के लोकतंत्र पर खतरा बढ़ सकता है।
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इस अरबपति की भूमिका पर उठाये सवाल
मालवीय ने इस फंडिंग पहल के पीछे अमेरिकी अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जॉर्ज सोरोस का प्रभाव पहले भी भारत की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली विदेशी वित्तपोषित पहलों में देखा गया है। उन्होंने 2012 में भारत के चुनाव आयोग और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के बीच हुए विवादास्पद समझौते का जिक्र किया, जो सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ था।
इस सूची में ‘‘बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने’’ के लिए 2.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आवंटन, साथ ही नेपाल में ‘‘राजकोषीय संघवाद’’ के लिए दो करोड़ अमेरिकी डॉलर और वहां ‘‘जैव विविधता संरक्षण’’ के लिए 1.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आवंटन भी शामिल है, जिन्हें रद्द कर दिया गया है।