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थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी!

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच प्रेह विहार मंदिर पर दशकों पुराना विवाद अब युद्ध का रूप ले रहा है। दोनों देशों की सैन्य ताकतें, हथियार खरीद और भारत पर संभावित असर। क्या कूटनीति बचा पाएगी खूनी संघर्ष से दक्षिण-पूर्व एशिया को? जानें पूरी रिपोर्ट।

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Ajit Kumar Pandey
थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी! | यंग भारत न्यूज

थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज गुरूवार 24 जुलाई 2025 को कंबोडिया और थाईलैंड के बीच अब एक नया संघर्ष शुरू हो गया है। इसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के ऊपर गोलाबारी और रॉकेट से हमले करना शुरू कर दिया है। आरटी न्यूज से मिली जानकारी के मुताबिक कंबोडिया के हमले में थाईलैंड का एक गैस स्टेशन तबाह हो गया है। इसके बाद कई मीडिया रिपोर्टों में थाईलैंड द्वारा कंबोडिया पर एयरस्ट्राइक करने की खबरें भी सामने आ रही हैं। 

आपको बता दें कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद अब युद्ध का रूप ले रहा है। प्रेह विहार मंदिर को लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ा है, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया में अशांति फैलने का डर है। जानें इस विवाद की जड़, सैन्य ताकतें और भारत पर संभावित असर।

दशकों से सुलग रहा थाईलैंड और कंबोडिया के बीच का सीमा विवाद अब एक खतरनाक मोड़ पर आ गया है। एक प्राचीन प्रेह विहार मंदिर इस पूरे तनाव का केंद्र बन गया है, जिसने दोनों देशों को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया है। यह सिर्फ एक भौगोलिक विवाद नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक दावों का टकराव है, जिसकी तपिश अब पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में महसूस की जा रही है। 

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच का मौजूदा संकट कोई नया नहीं है। इसकी जड़ें 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी की शुरुआत में औपनिवेशिक काल तक जाती हैं, जब फ्रांस ने इंडोचीन में अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। उस समय, थाईलैंड (तब स्याम) और फ्रांस के बीच सीमाएं तय की गई थीं। प्रेह विहार मंदिर (या फ्रा केव विहार), जो एक 11वीं सदी का प्रभावशाली खमेर हिंदू मंदिर है, डंगरेक पर्वत श्रृंखला के एक रणनीतिक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर सदियों से दोनों देशों के बीच खींचतान का विषय रहा है।

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1962 में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें मंदिर पर कंबोडिया के दावे को सही ठहराया गया। हालांकि, इस फैसले में मंदिर तक जाने वाले पहाड़ी रास्ते और आसपास के कुछ इलाके को थाईलैंड का हिस्सा माना गया। यह निर्णय थाईलैंड के लिए एक बड़ा झटका था, और तभी से यह विवाद शांत नहीं हो पाया है। थाईलैंड का मानना है कि मंदिर का स्थान और आसपास की भूमि उनकी संप्रभुता का अभिन्न अंग है, जबकि कंबोडिया इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक मानता है।

थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी! | यंग भारत न्यूज
थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

क्यों गहरा रहा है अब यह विवाद?

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हाल के वर्षों में, प्रेह विहार मंदिर के आसपास के क्षेत्र में सैन्य झड़पें और घुसपैठ की घटनाएं बढ़ी हैं। दोनों देशों ने मंदिर क्षेत्र में अपनी सेनाओं को तैनात कर दिया है, जिससे तनाव का स्तर लगातार बढ़ रहा है।

पुरातत्वीय महत्व और पर्यटन: मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाता है। दोनों देश इस पर नियंत्रण के माध्यम से राजस्व और वैश्विक पहचान चाहते हैं।

क्षेत्रीय संप्रभुता: यह विवाद सिर्फ मंदिर तक सीमित नहीं है, बल्कि दोनों देशों के लिए अपनी-अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता और सम्मान का मुद्दा बन गया है। कोई भी देश पीछे हटने को तैयार नहीं है।

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घरेलू राजनीति: दोनों देशों की सरकारों के लिए यह मुद्दा घरेलू राजनीति में भी अहम भूमिका निभाता है। राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काकर लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास भी इस तनाव को बढ़ाने में सहायक रहा है।

पिछले कुछ सालों में, इस क्षेत्र में कई बार गोलाबारी की खबरें आई हैं, जिससे आम नागरिकों को भी विस्थापित होना पड़ा है। यह दिखाता है कि किस तरह यह एक शांत सीमा विवाद से अब एक सक्रिय संघर्ष में बदल रहा है।

थाईलैंड की सैन्य क्षमता: किसका पलड़ा भारी?

अगर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच युद्ध होता है, तो सैन्य क्षमताओं के मामले में थाईलैंड का पलड़ा भारी दिख रहा है। थाईलैंड की सेना दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक मानी जाती है, जिसके पास आधुनिक उपकरण और बेहतर प्रशिक्षण है।

थाईलैंड की सैन्य ताकत

सक्रिय सैनिक: लगभग 2.5 लाख सक्रिय सैनिक।

वायुसेना: थाईलैंड के पास एक मजबूत वायुसेना है जिसमें F-16 फाइटर जेट्स, JAS 39 ग्रिपेन और विभिन्न प्रकार के हेलीकॉप्टर शामिल हैं। वे अपनी हवाई शक्ति के लिए अमेरिका और स्वीडन जैसे देशों पर निर्भर करते हैं।

नौसेना: थाईलैंड की नौसेना भी काफी सक्षम है जिसमें फ्रिगेट, कॉर्बेट और पनडुब्बियां शामिल हैं। उन्होंने चीन, दक्षिण कोरिया और स्पेन से जहाज खरीदे हैं।

थल सेना: थाईलैंड की थल सेना के पास आधुनिक टैंक (जैसे अमेरिकी एम1ए1 अब्राम्स), बख्तरबंद वाहन और तोपखाने हैं। वे अक्सर अमेरिका, चीन और यूक्रेन से हथियार खरीदते हैं।

सैन्य खर्च: थाईलैंड का रक्षा बजट कंबोडिया से काफी अधिक है, जिससे उन्हें उन्नत हथियार प्रणालियों में निवेश करने का मौका मिलता है।

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थाईलैंड vs कंबोडिया : रॉकेट हमला — एयरस्ट्राइक और इतिहास की जंग! पढ़िए प्रेह विहार मंदिर विवाद की पूरी कहानी! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

कंबोडिया की सैन्य क्षमता: क्या दे पाएगा टक्कर?

कंबोडिया की सेना, थाईलैंड की तुलना में छोटी और कम आधुनिक है। हालांकि, वे छापामार युद्ध और स्थानीय इलाके की बेहतर जानकारी का फायदा उठा सकते हैं।

कंबोडिया की सैन्य ताकत

सक्रिय सैनिक: लगभग 1.25 लाख सक्रिय सैनिक।

वायुसेना: कंबोडिया की वायुसेना काफी छोटी है, जिसमें पुराने मिग-21 फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर शामिल हैं। वे मुख्य रूप से चीन और रूस जैसे देशों से हथियार खरीदते हैं।

नौसेना: कंबोडिया की नौसेना भी सीमित है, जिसमें छोटे गश्ती जहाज और तटीय रक्षा प्रणालियां शामिल हैं।

थल सेना: कंबोडिया की थल सेना में सोवियत-युग के टैंक और तोपखाने शामिल हैं। उनके पास मुख्य रूप से चीन, रूस और पूर्वी यूरोपीय देशों से खरीदे गए हथियार हैं।

प्रशिक्षण: कंबोडिया की सेना को हाल के वर्षों में चीन से सैन्य प्रशिक्षण और सहायता मिली है, जिससे उनकी क्षमताओं में कुछ सुधार हुआ है।

हथियार खरीद: कौन कहां से खरीदता है?

थाईलैंड: थाईलैंड लंबे समय से अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी रहा है और वहां से बड़ी मात्रा में सैन्य उपकरण खरीदता है, जिसमें फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर शामिल हैं। हाल के वर्षों में, थाईलैंड ने चीन और स्वीडन से भी अपनी खरीद में विविधता लाई है।

कंबोडिया: कंबोडिया मुख्य रूप से चीन और रूस से हथियार खरीदता है। चीन कंबोडिया का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता रहा है जो उन्हें टैंक, तोपखाने और प्रशिक्षण प्रदान करता है।

यह हथियार खरीद पैटर्न दक्षिण-पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक संरेखण को भी दर्शाता है, जहां थाईलैंड पश्चिमी प्रभाव में है, जबकि कंबोडिया चीन के करीब हो रहा है।

युद्ध के संभावित परिणाम और भारत पर असर

अगर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी।

मानवीय संकट: संघर्ष से बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो सकते हैं, जिससे मानवीय संकट पैदा होगा।

आर्थिक अस्थिरता: व्यापार मार्ग बाधित होंगे, पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान होगा और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

क्षेत्रीय अस्थिरता: यह संघर्ष अन्य आसियान (ASEAN) देशों को भी अपनी ओर खींच सकता है, जिससे पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में अस्थिरता बढ़ेगी।

वैश्विक भू-राजनीतिक प्रभाव: इस संघर्ष में बड़ी शक्तियों (जैसे अमेरिका, चीन) के शामिल होने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे क्षेत्रीय संतुलन बदल सकता है।

भारत पर क्या पड़ेगा असर

भारत के लिए, यह संघर्ष कई मायनों में चिंताजनक हो सकता है

"एक्ट ईस्ट" नीति पर असर: भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है। इस क्षेत्र में अस्थिरता से यह नीति प्रभावित हो सकती है।

व्यापार और निवेश: भारत का थाईलैंड और कंबोडिया दोनों के साथ महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश संबंध हैं। युद्ध से ये संबंध बाधित होंगे।

चीन का बढ़ता प्रभाव: अगर चीन इस संघर्ष में कंबोडिया का समर्थन करता है, तो दक्षिण-पूर्व एशिया में उसका प्रभाव और बढ़ सकता है, जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए चुनौती पैदा करेगा।

समुद्री सुरक्षा: दक्षिण चीन सागर के पास होने वाला यह संघर्ष भारत की समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय बन सकता है।

मध्यस्थता की भूमिका: भारत, एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में, दोनों देशों के बीच शांति वार्ता में मध्यस्थता की भूमिका निभा सकता है, लेकिन यह एक जटिल चुनौती होगी।

समाधान की राह: कूटनीति ही एकमात्र विकल्प

इस गंभीर स्थिति में, कूटनीति और बातचीत ही एकमात्र रास्ता है जिससे इस संघर्ष को टाला जा सकता है। आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लाने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए दबाव डाल सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए और दोनों देशों को संयम बरतने की अपील करनी चाहिए।

प्रेह विहार मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं है; यह एक प्रतीक है। यह प्रतीक है सदियों पुरानी दोस्ती और प्रतिद्वंद्विता का, और अब यह दक्षिण-पूर्व एशिया में शांति और स्थिरता की परीक्षा बन गया है। उम्मीद है कि यह ऐतिहासिक विरासत युद्ध का कारण बनने के बजाय, शांति और सहयोग का एक नया अध्याय लिखने में सहायक होगी।

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