Advertisment

G7 देशों का एकतरफा फैसला, जानिए — क्या है अमेरिका-इसरायल का सीक्रेट प्लान?

जी-7 ने इसरायल को खुलकर समर्थन दिया, ईरान को कड़ी चेतावनी। अमेरिकी राष्ट्रपति का अचानक लौटना और उनके बयान मध्य पूर्व में बड़े बदलाव का संकेत। क्या इसरायल-ईरान संघर्ष क्षेत्र को युद्ध की ओर धकेल रहा है? जानें इसके कूटनीतिक मायने और वैश्विक असर।

author-image
Ajit Kumar Pandey
G7 देशों का एकतरफा फैसला, जानिए — क्या है अमेरिका इसराइल का सीक्रेट प्लान? | यंग भारत न्यूज

G7 देशों का एकतरफा फैसला, जानिए — क्या है अमेरिका इसराइल का सीक्रेट प्लान? | यंग भारत न्यूज

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । जी-7 शिखर सम्मेलन में दुनिया की शीर्ष आर्थिक शक्तियों ने इजराइल के प्रति अपना अडिग समर्थन व्यक्त किया है, जबकि ईरान को सीधे तौर पर कड़ी चेतावनी दी गई है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब मध्य पूर्व में तनाव अपने चरम पर है और इसरायल-ईरान संघर्ष लगातार गहराता जा रहा है। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति का अचानक जी-7 समिट से लौटना और उसके बाद के बयानों ने वैश्विक कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका इस क्षेत्र में कुछ बड़ा करने वाला है, और इसके वैश्विक शांति पर क्या दूरगामी परिणाम हो सकते हैं?

Advertisment

जी-7 का एकजुट संदेश: इसरायल के साथ, ईरान को आंखें!

इटली में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों ने इसरायल के आत्मरक्षा के अधिकार का पुरजोर समर्थन किया। यह एक स्पष्ट संदेश था कि ये देश इसरायल की सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं। लेकिन, इस बैठक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ईरान को दी गई कड़ी चेतावनी थी।

जी-7 नेताओं ने ईरान से आग्रह किया कि वह क्षेत्र को अस्थिर करने वाली गतिविधियों को तुरंत बंद करे, जिसमें यमन के हूती विद्रोहियों और लेबनान के हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी समूहों का समर्थन शामिल है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई और उसे अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का पालन करने का आह्वान किया गया।

Advertisment
जी-7 का एकजुट संदेश: इसरायल के साथ, ईरान को आंखें! | यंग भारत न्यूज
जी-7 का एकजुट संदेश: इसरायल के साथ, ईरान को आंखें! | यंग भारत न्यूज

अमेरिका का अचानक लौटना और उसके मायने

जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति का अचानक वापस लौटना और उसके बाद के घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं। आमतौर पर राष्ट्राध्यक्ष ऐसे महत्वपूर्ण सम्मेलनों को बीच में नहीं छोड़ते, जब तक कि कोई बेहद गंभीर और तात्कालिक मामला न हो। इस अचानक वापसी को मध्य पूर्व में बढ़ती अमेरिकी सक्रियता से जोड़ा जा रहा है।

Advertisment

माना जा रहा है कि अमेरिका, इसरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर बेहद चिंतित है और किसी भी बड़े टकराव को रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है। अमेरिकी बयानों में ईरान के खिलाफ सख्त लहजे का इस्तेमाल किया गया है, जो इस बात का संकेत है कि अमेरिका किसी भी कीमत पर इसरायल की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। यह स्थिति इसरायल-ईरान संघर्ष को एक नए मोड़ पर ले जा सकती है, जहां अमेरिका की प्रत्यक्ष भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

इसरायल-ईरान संघर्ष: क्यों भड़की है आग?

इसरायल और ईरान के बीच दुश्मनी कोई नई बात नहीं है। दशकों से ये दोनों देश एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं। इसरायल, ईरान को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है, खासकर उसके परमाणु कार्यक्रम और लेबनान व सीरिया जैसे पड़ोसी देशों में प्रॉक्सी समूहों के माध्यम से बढ़ते प्रभाव के कारण। वहीं, ईरान-इसरायल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता और उसे मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों का विस्तार मानता है।

Advertisment

हाल के महीनों में यह संघर्ष और तेज हो गया है। इसरायल ने सीरिया में ईरान से संबंधित ठिकानों पर कई हमले किए हैं, जबकि ईरान ने इसरायल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए हैं, खासकर हमास-इसरायल संघर्ष के बाद। यह टकराव सीधे युद्ध में बदलने की कगार पर है, जिससे पूरे क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल है। इसरायल-ईरान संघर्ष अब केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले लिया है।

इसरायल-ईरान संघर्ष: क्यों भड़की है आग? | यंग भारत न्यूज
इसरायल-ईरान संघर्ष: क्यों भड़की है आग? | यंग भारत न्यूज

कूटनीतिक मायने: क्या है आगे का रास्ता?

जी-7 देशों का यह स्पष्ट रुख और अमेरिका की आक्रामक मुद्रा बताती है कि वैश्विक शक्तियां मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता चाहती हैं। वे नहीं चाहते कि यह इसरायल-ईरान संघर्ष एक बड़े क्षेत्रीय या वैश्विक युद्ध में तब्दील हो।

इसके कूटनीतिक मायने गहरे हैं

इसरायल को मजबूती: जी-7 का समर्थन इसरायल को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर और मजबूत करता है, जिससे उसे अपनी रक्षा नीतियों को जारी रखने का नैतिक बल मिलता है।

ईरान पर दबाव: ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है कि वह अपनी क्षेत्रीय नीतियों में बदलाव लाए और परमाणु समझौते का पालन करे।

अमेरिका की भूमिका: अमेरिका मध्य पूर्व में अपनी परंपरागत भूमिका को फिर से सक्रिय कर रहा है, जहां वह इसरायल का सबसे बड़ा समर्थक रहा है। उसकी हालिया सक्रियता इस बात का संकेत है कि वह क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है।

शांति की संभावना: हालांकि तनाव बढ़ रहा है, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह दबाव अंततः शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, या कम से कम संघर्ष को एक निश्चित दायरे में सीमित रखने में मदद कर सकता है।

हालांकि, स्थिति बेहद नाजुक है। ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता। ऐसे में अमेरिका और उसके सहयोगियों को बहुत सावधानी से कदम उठाने होंगे। किसी भी गलत अनुमान या कार्रवाई से स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर | यंग भारत न्यूज
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर | यंग भारत न्यूज

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ सकता है। यह क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। किसी भी बड़े संघर्ष से तेल की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति और बढ़ सकती है और आर्थिक विकास धीमा पड़ सकता है।

जी-7 देशों की चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है। वे नहीं चाहते कि मध्य पूर्व की अस्थिरता उनके अपने देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करे। यही कारण है कि वे इस इसरायल-ईरान संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

यह स्पष्ट है कि मध्य पूर्व की स्थिति बेहद जटिल और अस्थिर है। जी-7 का संदेश, अमेरिका की बढ़ती सक्रियता और इसरायल-ईरान के बीच गहराता संघर्ष, ये सभी कारक मिलकर एक ऐसे समीकरण का निर्माण कर रहे हैं, जिसका परिणाम अभी स्पष्ट नहीं है।

आगे की राह बेहद चुनौतीपूर्ण है। कूटनीतिक प्रयासों को तेज करना होगा, ताकि किसी भी बड़े सैन्य टकराव से बचा जा सके। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक साथ मिलकर इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए काम करना होगा। ईरान को भी यह समझना होगा कि उसकी क्षेत्रीय अस्थिरता फैलाने वाली नीतियां उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग कर रही हैं।

इसरायल-ईरान संघर्ष का समाधान तभी संभव है जब सभी पक्ष संयम बरतें और बातचीत के माध्यम से रास्ता निकालने को तैयार हों। क्या दुनिया एक और बड़े युद्ध की ओर बढ़ रही है, या कूटनीति सफल होगी, यह देखना बाकी है।

क्या आप इससे सहमत हैं? कमेंट करें। 

Israel | iran | america | donald trump |

donald trump america iran Israel
Advertisment
Advertisment