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बज गया सायरन : इस्राइल का ईरान पर हमला दे रहा घातक संकेत, जानिए - कैसे होगा अब तीसरा विश्व युद्ध! | यंग भारत न्यूज
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ईरान पर इस्राइल के हमले से वैश्विक तनाव चरम पर है, हर किसी के मन में एक ही सवाल है - क्या यह तीसरा विश्व युद्ध शुरू कर देगा? इस संवेदनशील स्थिति में रूस और चीन की भूमिका निर्णायक होगी। उनकी चुप्पी या समर्थन दुनिया के भविष्य की दिशा तय करेगा।
ईरान पर किसी भी तरह का सैन्य हमला दुनिया को एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर खड़ा कर सकता है, जहांं से वापसी मुश्किल हो जाएगी। मध्य पूर्व में तनाव हमेशा से चिंता का विषय रहा है, लेकिन अब स्थिति कहीं अधिक गंभीर दिख रही है। इस्राइल और ईरान के बीच बढ़ती दुश्मनी, अमेरिका की क्षेत्रीय रणनीति, और वैश्विक शक्तियों की जटिल चालें – ये सब मिलकर एक ऐसा विस्फोटक मिश्रण बना रहे हैं, जो किसी भी वक्त फट सकता है। क्या वाकई दुनिया एक और महायुद्ध की ओर बढ़ रही है? इस सवाल का जवाब काफी हद तक रूस और चीन के रुख पर निर्भर करता है।
क्यों ईरान पर हमला बन सकता है विश्व युद्ध की वजह?
ईरान एक ऐसा देश है, जिसका क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान है। उसके पास तेल के विशाल भंडार हैं और वह होर्मुज जलडमरूमध्य को नियंत्रित करता है, जो वैश्विक तेल व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम, क्षेत्र में उसके सहयोगी संगठन (जैसे हिजबुल्लाह और हमास), और उसकी 'पश्चिम विरोधी' नीति उसे लगातार सुर्खियों में रखती है।
ईरान पर हमला मतलब कई विनाशकारी परिणाम!
क्षेत्रीय विस्तार: यह हमला सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं रहेगा। ईरान अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस्राइल और अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जिससे पूरा मध्य पूर्व आग की लपटों में घिर जाएगा। लेबनान, सीरिया, इराक और यमन जैसे देश भी इस संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल हो सकते हैं।
तेल की कीमतें: वैश्विक तेल आपूर्ति में भारी व्यवधान आएगा, जिससे तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी। इसका सीधा असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, जो पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रही है।
प्रवासी संकट: संघर्ष बढ़ने से लाखों लोग विस्थापित होंगे, जिससे एक बड़ा मानवीय और प्रवासी संकट पैदा होगा।
वैश्विक ध्रुवीकरण: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हमला वैश्विक शक्तियों को अपने-अपने गुटों में बांट देगा। यही वह बिंदु है जहां रूस और चीन की भूमिका अहम हो जाती है।
रूस और चीन: शांतिकर्ता या युद्ध समर्थक?
रूस और चीन दोनों ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं और उनके पास वीटो पावर है। दोनों देश ईरान के महत्वपूर्ण व्यापारिक और राजनीतिक साझेदार भी हैं। ईरान रूस से हथियार खरीदता है और चीन उसका सबसे बड़ा तेल खरीदार है।
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रूस मध्य पूर्व में अपनी पकड़ मजबूत करने की फिराक में
रूस मध्य पूर्व में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है और अमेरिका के प्रभाव को कम करना चाहता है। सीरिया में उसकी सैन्य उपस्थिति इस बात का प्रमाण है। अगर ईरान पर हमला होता है, तो रूस को एक मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ेगा। क्या वह ईरान का खुलकर समर्थन करेगा और पश्चिम के साथ सीधा टकराव मोल लेगा? या वह कूटनीतिक समाधान पर जोर देगा?
यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा रूस, ईरान को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है। ईरान के साथ उसके सैन्य और आर्थिक संबंध गहरे हैं। यदि पश्चिम ईरान पर हमला करता है, तो रूस के पास ईरान का समर्थन करने के कई कारण होंगे, जिसमें पश्चिमी शक्ति को चुनौती देना और मध्य पूर्व में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना शामिल है।
चीन का हित: मध्य पूर्व पर निर्भरता बहुत अधिक
चीन अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के लिए मध्य पूर्व पर बहुत अधिक निर्भर करता है। वह क्षेत्र में स्थिरता चाहता है ताकि उसकी "बेल्ट एंड रोड" पहल को कोई नुकसान न पहुंचे। चीन हमेशा से गैर-हस्तक्षेप की नीति का पालन करता रहा है, लेकिन अगर वैश्विक व्यापार मार्गों और ऊर्जा आपूर्ति को खतरा होता है, तो उसे हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
चीन-ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंधों को बहुत महत्व देता है, खासकर तेल आयात के मामले में। यदि ईरान पर हमला होता है, तो चीन के आर्थिक हित गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। चीन शायद सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचेगा, लेकिन वह निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र में ईरान का समर्थन करेगा और आर्थिक प्रतिबंधों का विरोध करेगा। उसकी कूटनीति वैश्विक शांति के लिए महत्वपूर्ण होगी।
अगर रूस और चीन खुलकर ईरान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं और पश्चिमी देशों के खिलाफ सैन्य या आर्थिक कार्रवाई करते हैं, तो यह सीधे तौर पर एक बड़े वैश्विक संघर्ष को जन्म दे सकता है। वहीं, अगर वे कूटनीतिक समाधान पर जोर देते हैं और तनाव कम करने की कोशिश करते हैं, तो शायद दुनिया को एक बड़ी तबाही से बचाया जा सके। उनकी निष्क्रियता या अनिर्णय भी स्थिति को और बिगाड़ सकता है, क्योंकि यह हमलावर पक्षों को एकतरफा कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
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इतिहास से सीख: क्या वाकई तीसरा विश्व युद्ध संभव है?
इतिहास गवाह है कि बड़े युद्ध अक्सर छोटे क्षेत्रीय संघर्षों से ही शुरू हुए हैं। प्रथम विश्व युद्ध ऑस्ट्रिया-हंगरी के राजकुमार की हत्या के बाद शुरू हुआ, और द्वितीय विश्व युद्ध जर्मनी द्वारा पोलैंड पर हमले के बाद। आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक आपस में जुड़ी हुई है, और एक छोटे से संघर्ष के भी वैश्विक परिणाम हो सकते हैं। परमाणु हथियारों की उपस्थिति इस खतरे को और भी गंभीर बना देती है।
हालांकि, यह भी सच है कि दुनिया ने अतीत में कई गंभीर संकटों को टाला है। शीत युद्ध के दौरान क्यूबा मिसाइल संकट एक ऐसा ही उदाहरण था, जब परमाणु युद्ध की आशंका थी, लेकिन कूटनीति से इसे टाल दिया गया। आज भी, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन संघर्षों को रोकने और कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं।
ईरान पर हमला एक जटिल और खतरनाक स्थिति है। दुनिया को अब रूस और चीन के अगले कदम का इंतजार है। क्या वे तनाव को कम करने में मदद करेंगे या आग में घी डालेंगे? इसका जवाब ही यह तय करेगा कि दुनिया शांति की ओर बढ़ेगी या तीसरे विश्व युद्ध की भयावहता झेलेगी। सभी की निगाहें उन पर टिकी हैं।
आपको बता दें कि इज़राइल के “राइजिंग लायन” ऑपरेशन के बाद ईरान पर भारी हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। 100+ रणनीतिक ठिकानों पर एयरस्ट्राइक, परमाणु सुविधाओं को निशाना, और रूस–चीन की प्रतिक्रिया तय करेगी कि क्या यह सशस्त्र संघर्ष एक व्यापक वैश्विक टकराव में बदल जाएगा। चर्चा अब केवल मध्य-पूर्व तक सीमित नहीं, बल्कि एक नए विश्व युद्ध की आशंका भी उभरकर सामने आई है।
इस्राइल ने 13 जून 2025 को एक व्यापक एयरस्ट्राइक की घोषणा की, जिसे “Operation Rising Lion” नाम दिया गया। इस हमले का उद्देश्य ईरान के परमाणु एवं सैन्य ठिकानों को क्षति पहुंचाना था। फोर्डो और नार्काज़ जैसे संवेदनशील परमाणु फैसिलिटीज़ को निशाना बनाया गया, साथ ही कई शीर्ष IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) अधिकारियों को भी खत्म करने का दावा किया गया है।
यह हमला केवल एक क्षेत्रीय झड़प नहीं रह गया। ईरान ने इसके जवाब में ड्रोन और बैलेस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनमें से कई इज़रायली वायु-क्षेत्र से परे इंटरसेप्ट भी किए गए। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपियन यूनियन, रूस, चीन, तुर्की, यूएई, सऊदी अरब और अन्य ने स्थितियों को और बिगड़ने से रोकने की अपील की।
राजनीतिक बयान बाजियां: रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब, जॉर्डन, कतर और ओमान जैसी मुस्लिम-बहुल देश इस हमले की निंदा कर चुके हैं।
उत्तरी गोलार्ध तैयारी: वहां सेनाएं मोर्चा सम्भालने पर हैं, यदि संघर्ष विस्तृत होता है तो...
क्या बन रहा है तीसरा विश्व युद्ध?
विश्लेषक बताने लगे हैं कि यह केवल मध्य-पूर्व तक सीमित नहीं रहेगा। रूस–चीन–ईरान के गठजोड़ को देखते हुए, कई देश इसे “नया ऑटोरिटेरियन धुरी” कह रहे हैं। यह गठबंधन अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ एक ठोस चुनौती बन सकता है।
उसी श्रृंखला में, अगर स्थिति और बिगड़ी तो एक व्यापक, बहुमुखी वैश्विक टकराव (Third World War) का डर वास्तविकता बन सकता है, जिसे अब “Axis of Upheaval” बताया जा रहा है।
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अमेरिका की स्थिति क्या है?
अमेरिका ने इस्राइल की कार्रवाई में “प्रत्यक्ष भागीदारी” से इनकार किया है, लेकिन साथ ही उसने वॉरेन्टी दी कि अमेरिकी हितों को निशाना बनाया गया, तो जवाब दे सकता है ।
आगे का रास्ता
रूसी-चीन मध्यस्थता: रूस ने सुझाव दिया है कि रूस–अमेरिका मिलकर ईरान के साथ नए परमाणु समझौते की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं ।
ईरान की ‘पूर्व की तरफ़ मूवमेंट’: ईरान ने रूस और चीन के साथ मिलकर क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को मजबूत करना शुरू किया है।
संयुक्त राष्ट्र की पहल: जी-7 और यूएन इस तनाव को रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं।
क्या आप इससे सहमत हैं? कमेंट करें और बताएं कि आपकी सोच में यह टकराव बड़े युद्ध की राह पर है या कूटनीतिक समाधान निकलेगा।
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