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Passport के लिए पति के हस्ताक्षर मांगना महिला की स्वतंत्रता का हनन, जानिए हाईकोर्ट ने क्या कहा?

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट आवेदन के लिए महिला को पति की अनुमति या हस्ताक्षर की जरूरत नहीं है। यह सोच पुरुष वर्चस्व की मानसिकता दर्शाती है।

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Dhiraj Dhillon
Madras High Court

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी महिला को पासपोर्ट आवेदन के लिए अपने पति की अनुमति या हस्ताक्षर की जरूरत नहीं है। अदालत ने इसे "पुरुष वर्चस्व की मानसिकता" करार देते हुए महिला को उसका पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की। जिसमें याचिकाकर्ता  ने कहा कि उन्होंने अप्रैल में पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था, लेकिन चेन्नई क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (RPO) ने यह कहते हुए उनका आवेदन रोक दिया कि उन्हें Form-J में अपने पति के हस्ताक्षर लाने होंगे।

जानिए क्या है पूरा मामला

रेवती की शादी 2023 में हुई थी। पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद के चलते तलाक का मामला स्थानीय अदालत में लंबित है। इस बीच रेवती ने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। चेन्नई क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने रेवती की अर्जी को आगे बढ़ाने से इसलिए इंकार कर दिया था क्योंकि उस आवेदन पर रेवती के पति के हस्ताक्षर नहीं थे। इसके बाद रेवती ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। मद्रास हाईकोर्ट ने पासपोर्ट कार्यालय को निर्देश दिया कि अन्य औपचारिकताओं की पूर्ति के आधार पर याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर पासपोर्ट जारी किया जाए।

जानिए क्या है कोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायाधीश ने आदेश में कहा, "एक पत्नी को पासपोर्ट आवेदन के लिए अपने पति की अनुमति लेना या उसके हस्ताक्षर कराना आवश्यक नहीं है। यह महिला की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और इस तरह की मांग समाज की उस मानसिकता को दर्शाती है, जहां शादीशुदा महिला को पति की संपत्ति समझा जाता है।" जज ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की अपने पति के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हैं, ऐसे में उनसे हस्ताक्षर की मांग करना एक "असंभव कार्य पूरा करने की जिद" जैसा है। "यह प्रथा समाज में महिला मुक्ति के खिलाफ है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा- यह पुरुष वर्चस्ववाद के सिवा कुछ नहीं।" 

High Court passport
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