कानपुर, वाईबीएन नेटवर्क।
कानपुर में श्रमिक कालोनियों में रहने वाले किराएदार इनके मालिक बन सकते हैं। इससे हजारों लोगों को फायदा होगा। इसके लिये कानपुर के विधायक व उत्तरे प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना तथा विधायक सुरेंद्र मैथानी के काफी समय से किये जा रहे प्रयास सफल हो सकते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो हो दीपावली पर कालोनी में रहने वाले किरायेदारों को तय नियम के अनुसार मकान मालिक बनने का लाभ मिल सकता है इस बार कालोनी वासियों के लिये यही सरकार को तोहफा भी हो सकता है।
महाना के प्रयास से गठित हुई कमेटी
जानकारों की मानी जाएतो कानपुर नगर में श्रमिक कॉलोनियों में बतौर किरायेदार आबाद परिवारों को मालिकाना हक देने की दिशा में प्रदेश सरकार ने कदम आगे बढ़ाए हैं। कानपुर में सर्वाधिक श्रमिक कालोनियां विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना तथा विधायक सुरेंद्र मैथानी के विधानसभा क्षेत्र में ही आती हैं। इसलिये इन दोनों ने पहल की विधानसभा अध्यक्ष की अगुवाई में गठित कमेटी की सिफारिशों के आधार पर श्रमिक कॉलोनियों के किरायेदारों को मकान मालिक बनाने के रास्ते खोजना शुरू कर दिया गया है। मकान मालिक बनने के लिए किरायेदारों को न्यूनतम कीमत अदा करनी पड़ेगी। इसके अलावा किरायेदारों को वैध कब्जे वाले हिस्से का मालिक बनाया जाएगा।
पूरे प्रदेश में हैं श्रमिक कालोनियां
पूर्व में कानपुर में कई कपड़ा मिलों के साथ-साथ एचएएल में उत्पादन होता था। जिससे बाहरी जनपदों के बड़ी संख्या में मजदूर यहां काम करने के लिये कानपुर में आकर बसे थे आजादी के बाद मजदूरों की आवास समस्या के निदान के लिए वर्ष 1950 में श्रमिक कालोनियों का निर्माण की शुरुआत हुई। वर्ष 1953 से मजदूरों को कॉलोनियां आवंटित होने लगीं। उस वक्त एक कमरे की कॉलोनी का किराया 10.50 रुपये था, जबकि दो कमरे वाली कॉलोनी के लिए प्रति महीना 18.50 रुपये अदा करने होते थे। वर्ष 1970 में किराया बढ़ाकर क्रमशः 17.50 रुपये और 23 रुपये किया गया, जोकि वर्ष 1990 में 125 रुपये तथा 235 पहुंच गया।
मिल बंद होने पर बिकने लगीं कॉलोनियां
वर्ष 1990 के दौर में कानपुर की कपड़ा मिलें बंद होने लगी तो बेरोजगार हुए मजदूर यहां से अपने गृह जनपद जाने लगे जिससे श्रमिक कॉलोनियों के अवैध खरीद-फरोख्त की जाने लगी। इसी दरमियान वर्ष 1997 में हाईकोर्ट ने दिल्ली व ओडिशा की तर्ज पर यूपी की श्रमिक कालोनियों का स्वामित्व देने का फैंसला दिया लेकिन इसके 28 साल बीतने के बाद भी अदालत के इस आदेश पर अमल नहीं हुआ। वर्तमान में अधिकांश कॉलोनियों में सिकमी किरायेदार ( आवंटी किरायेदार के स्थान पर दूसरा अवैध किरायेदार) काबिज हैं।
महाना-मैथानी की कोशिश से निकलेगा रास्ता
पिछले सप्ताह विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अपने कैंप कार्यालय में एक महिला की व्यथा सुनकर मालिकाना हक दिलाने के लिए नए सिरे से प्रयास करने का फैसला किया। विधानसभा अध्यक्ष ने कॉलोनियों के मालिकाना हक का मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचाया तो अब योगी सरकार की उत्तर प्रदेश राज्य परामर्शदात्री समिति ने सकारात्मक रुख अपनाया। इसी के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने श्रममंत्री अनिल राजभर, विधायक सुरेंद्र मैथानी, श्रमायुक्त मार्कंडेय शाही संग लखनऊ में विधानसभा प्रेक्षागृह में बैठक कर 15 जून तक सर्वे रिपोर्ट मांगी है। श्रमायुक्त ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट तैयार कराकर समिति के सामने रखी जाएगी।
कैबिनेट करेगी प्रस्ताव पर विचार
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने दावा किया, 16 जून को कॉलोनियों के मालिकाना हक के मसले पर विस्तृत प्रस्ताव बनाकर कैबिनेट में रखा जाएगा। कॉलोनियों के मालिकाना हक के लिए कितनी कीमत अदा करनी होगी, कितना एरिया बतौर मालिकाना हक हासिल होगा, जैसे तमाम विषय श्रमायुक्त के सर्वे और उच्चस्तरीय कमेटी के मंथन के आधार पर तय होंगे। श्री महाना ने स्पष्ट किया कि, कॉलोनियों में मौजूदा समय में रहने वालों को ही मालिक बनाया जाएगा। फिलहाल, श्रम विभाग को बकाया किराया की वसूली की नोटिस से परहेज करने के लिए कहा गया है।
कानपुर की श्रमिक कालोनियों का फोटो लगा सकते हैं