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Bhringraj
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गांवों और शहरों की सड़कों के किनारे, नमी वाले कोनों में उगने वाला 'भृंगराज' का पौधा देखने में भले ही मामूली लगे, लेकिन आयुर्वेद में यह एक ‘रत्न’ समान है। प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में इसे ‘केशराज’ और ‘भृंगराज’ जैसे नामों से जाना जाता है, जो इसके बालों के लिए रामबाण गुणों को उजागर करते हैं। लेकिन इसका महत्व सिर्फ बालों तक सीमित नहीं। यह पौधा लीवर को डिटॉक्स करने, ब्लड शुगर को नियंत्रित करने और पाचन को दुरुस्त रखने में भी सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा का हिस्सा रहा है।
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भृंगराज है औषधीय गुणों का भंडार
भृंगराज को वनस्पति विज्ञान में एक्लिप्टा अल्बा कहा जाता है। यह आस्टेरेसी कुल का सदस्य है। भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों में यह बहुतायत में पाया जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे ‘घमरा’ या ‘भांगड़ा’ जैसे नामों से जाना जाता है। इसकी तीखी गंध और स्वाद के पीछे छिपे हैं औषधीय गुणों के भंडार, जिन्हें आयुर्वेद ने हजारों साल पहले ही पहचान लिया था।
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बालों की समस्या से देता है छुटकारा
चरक संहिता में इसे ‘पित्तशामक’ और ‘रक्तशोधक’ बताया गया है, जो लीवर की कार्यक्षमता बढ़ाने और रक्त को शुद्ध करने में सक्षम माना जाता है। वहीं सुश्रुत संहिता में भृंगराज तेल को बालों की जड़ों को मजबूत करने और समय से पहले सफेदी रोकने की ‘अग्रणी औषधि’ कहा गया है। बालों के लिए तो यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं। आधुनिक समय में असमय सफेद होते बाल, टूटते हुए रेशे और रूसी की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भृंगराज का तेल एक प्राकृतिक समाधान है। इसके नियमित उपयोग से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं, रक्त संचार बेहतर होता है और केराटिन का उत्पादन बढ़ता है। यही नहीं, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटीफंगल गुण सिर की त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं और डैंड्रफ से मुक्ति दिलाते हैं।
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तरिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही गुणकारी
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ग्रामीण इलाकों में आज भी बुजुर्ग इसके पत्तों को पीसकर लेप बनाते हैं और बालों में लगाते हैं, जबकि शहरी इलाकों में लोग इसके तेल को महंगे ब्रांड्स से खरीदते हैं। इसका तेल घर पर भी आसानी से बनाया जा सकता है। नारियल या सरसों के तेल में भृंगराज की पत्तियों को उबालकर, जिससे इसका सार तेल में समा जाता है।
बालों के अलावा यह पौधा शरीर के आंतरिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही गुणकारी है।
बालों के अलावा यह पौधा शरीर के आंतरिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही गुणकारी है।
पित्त के स्राव को करता हैसंतुलित
आयुर्वेद के अनुसार भृंगराज का रस या कैप्सूल लीवर को डिटॉक्सिफाई करने में अहम भूमिका निभाता है। यह पित्त के स्राव को संतुलित करता है और फैटी लीवर, पीलिया जैसे रोगों में राहत देता है। शोध बताते हैं कि इसमें मौजूद ‘वेडेलोलैक्टोन’ नामक यौगिक लीवर सेल्स के पुनर्जनन में मदद करता है। साथ ही, यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाने वाली ‘जठराग्नि’ को प्रज्वलित करता है, जिससे भोजन का पाचन और पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है। पेट की गैस, अल्सर और मतली जैसी समस्याओं में भी यह कारगर है।
डायबिटीज में है रामबाण
डायबिटीज के मरीजों के लिए भी भृंगराज रामबाण है। इसके कसैले गुण और एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक प्रभाव ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में सहायक माने गए हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसे नियमित आहार में शामिल करने की सलाह देते हैं, खासकर मधुमेह के प्रारंभिक चरणों में।प्रकृति के इस उपहार को अपनाने के लिए न तो ज्यादा खर्च की जरूरत है और न ही जटिल प्रक्रिया की। गमलों में भी इसे उगाया जा सकता है। जिस पौधे को अक्सर ‘खरपतवार’ समझकर उखाड़ दिया जाता है, वही आयुर्वेद की नजर में स्वास्थ्य का खजाना है।
मुंबई,आईएएनएस
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