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HemaMalini Photograph: (IANS)
नई दिल्ली।बॉलीवुड की ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी ने फिल्मी दुनिया में अपने करियर की शुरुआत 1970 के दशक में की थी। अपने दमदार अभिनय, नृत्य और ग्लैमरस लुक के लिए वे तुरंत चर्चा में आ गईं। ‘सपतिनी’, ‘शोले’, ‘सिंहासन’ जैसी हिट फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। केवल एक अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि हेमा ने राजनीति में भी कदम रखा और समाज सेवा में सक्रिय भूमिका निभाई। रियल लाइफ में उनकी सादगी और बौद्धिकता ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया, वहीं रील लाइफ में उनका हर किरदार आज भी यादगार माना जाता है।
हिंदी फिल्मों में डेब्यू
Happy Birthday wishes for a very dear friend today! Rekha, beautiful inside and out, timeless, ageless beauty, has been one of my closest friends in this industry, always wishing me well. Our mothers were both our driving forces and responsible for our rise in Hindi cinema. Our… pic.twitter.com/8QYATGc3ov
— Hema Malini (@dreamgirlhema) October 10, 2025
मालूम हो कि सपनों के सौदागर से हेमा मालिनी ने हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया। तमिल ब्राह्मण परिवार में पली बढ़ी, भरतनाट्यम में पारंगत और सरकारी मुलाजिम की 19 साल की बेटी का रियल से रील तक का सफर आसान नहीं रहा। कई मौकों पर हेमा उस दौर का जिक्र कर चुकी है। हेमा मालिनी को दुनिया अक्सर रोशनी में खड़ी एक परिपूर्ण छवि की तरह देखती है-झिलमिलाती आंखें, मुस्कुराता चेहरा और सदैव सजे हुए सपनों का आकाश।
जिंदगी का हर किरदार शिद्दत से निभाया
हेमा मालिनी एक ऐसी महिला जिन्होंने जिंदगी का हर किरदार शिद्दत से निभाया, चाहे वो एक्ट्रेस का हो, नृत्यांगना का हो, प्रेमिका का हो, पत्नी का हो, मां का हो, या फिर सांसद का। जो भी किया उसमें अपना सौ फीसदी दिया। भाई आर.के. चक्रवर्ती ने अपनी किताब ‘गैलोपिंग डीकेड्स: हैंडलिंग द पैसेज ऑफ टाइम’ में हेमा की कुछ खासियतों का जिक्र किया है। वहीं भावना सोमाया की 'हेमा मालिनी: द ऑथराइज्ड बायोग्राफी' में जीवन के उन क्षणों की बात है जिसने हिंदी सिनेमा को एक दमदार एक्ट्रेस से रूबरू कराया।
तिरुचिरापल्ली जिले के अम्मानकुडी में 16 अक्टूबर 1948 को जन्मी हेमा छोटी उम्र से ही मंच पर थीं, लेकिन किसी ने उन्हें बतौर अभिनेत्री नहीं देखा था-वे घर में बस एक शांत बच्ची थीं, जिसे मां जया लक्ष्मी अय्यर भरतनाट्यम का कठोर अभ्यास करवाती थीं। मां जानती थीं कि यह बच्ची साधारण नहीं, एक समर्पित साधिका बनेगी। पिता, वी.एस. रामन, सरकारी मुलाजिम थे। भाई आर. चक्रवर्ती ने अपनी किताब में हेमा की उस तलाश के बारे में लिखा। बताया कि 'वह उम्र में नहीं, बल्कि लय में बढ़ी, हेमा कभी चली नहीं, वह ग्लाइड करती थी।'
यही वह पंक्ति है जो बताती है कि हेमा उम्र से नहीं, नूपुर की झंकार से आगे बढ़ीं।
हिंदी फिल्म में एंट्री
मालूम हो कि फिर आया वो समय जब हेमा की हिंदी फिल्म में एंट्री हुई। पहली फिल्म सपनों का सौदागर थी और सामने एक्टर थे द ग्रेट शोमैन राज कपूर। हेमा मालिनी: द ऑथराइज्ड बायोग्राफी में पहले स्क्रीन टेस्ट तक पहुंचने की पूरी कहानी है। इसमें हेमा के घर पिता और मां में हुई अनबन का जिक्र है। ये भी कि पिता ने पूरे हफ्ते नाराज होकर परिवार के साथ खाना नहीं खाया और ये भी कि कैसे फिर आखिरकार मां ने मना लिया। हेमा भी पर्दे पर दिखने की ख्वाहिश नहीं रखती थीं, लेकिन उन्होंने अपनी मां की इच्छा का सम्मान किया और उस अपमान से भी पार पाने का रास्ता चुना जो वर्षों पहले एक तमिल फिल्म में रिजेक्ट होने से उपजा था। खैर, इस फिल्म का स्क्रीन टेस्ट हेमा मालिनी के दिमाग पर अब भी छपा हुआ है।
स्टेज पर बतौर नृत्यांगना
उन्होंने बताया कि स्क्रीन टेस्ट देवनार के स्टूडियो में होना था। तब तक हेमा स्टेज पर बतौर नृत्यांगना खुद को स्थापित कर चुकी थीं। उनका अपना स्टाफ था जिसमें मेकअप मैन माधव पई, ड्रेसमैन विष्णु और स्पॉट-बॉय हनुमान शामिल थे। सबने हेमा का हौसला बढ़ाया। विष्णु ने ड्रेस रूम में पद्मिनी और वैजयंतीमाला जैसी दिग्गज अभिनेत्रियों की पोशाकें दिखाते हुए कहा, 'एक दिन इनके अलावा तुम्हारी पोशाकें भी टंगी होंगी?' मेकअप मैन ने कहा, 'निडर रहो, ऐसे प्रदर्शन करो जैसे कमरे में तुम्हारे अलावा कोई नहीं है... अपना दिल खोलो और देखो कि रोशनी तुम्हारे चेहरे पर कैसे चमकती है।' नर्वस हेमा थोड़ी संभली और टेस्ट दिया।
साउथ में सिरे से खारिज
18-19 साल की इस एक्ट्रेस ने जो स्टेज पर किया उसे देख राज कपूर भी तपाक से बोल पड़े, 'यह भारतीय पर्दे की सबसे बड़ी स्टार बनने जा रही हैं?' साउथ में सिरे से खारिज की गई हेमा और उनकी मां जया के घावों पर ये मरहम की तरह था। उनके भाई की किताब में एक पंक्ति छिपी है, जो शायद सबसे सच्चा परिचय है इकलौती बहन हेमा का और वो है- 'उसने कभी शोहरत का पीछा नहीं किया, बल्कि शालीनता को तलाशा और शोहरत उनके पीछे ब्रेथलेस साथ चल दिया।'हेमा मालिनी को समझना है तो उनके प्रख्यात संवाद नहीं, उनके मौन को पढ़ना होगा। उनका जीवन कोई चमकती गाथा नहीं, बल्कि एक अनंत रियाज है।
“ड्रीम गर्ल” का तमगा
फिल्मों में आना उनका निर्णय नहीं था; यह उनकी मां की महत्वाकांक्षा थी। लेकिन ड्रीम गर्ल बनना उनका सपना भी नहीं था; यह तो लोगों ने उन्हें उपाधि की तरह पहना दी। सफलता मिली, मगर वह कभी उसमें बसी नहींं। उन्होंने प्यार किया, विवाह किया, परिवार बनाया-मगर इन सबके बीच भी वे एक नृत्यांगना ही रहीं। बेटियां ईशा और अहाना जब जन्मदिन पर उनके सामने घुंघरू लेकर बैठती हैं, तो वे उन्हें मां की तरह नहीं, गुरु की तरह देखती हैं। यह विरोधाभास ही हेमा हैं-ममता में कठोर, कठोरता में करुणा। भाई इस पर भी लिखते हैं। "वह प्यार के मामले में नर्म थी, और अनुशासन में कठोर।" यह दो वाक्य शायद किसी भी जीवनी में नहीं मिलेंगे, पर यही वह सत्य है जिसे “ड्रीम गर्ल” का तमगा कभी छू नहीं सका।
(इनपुट-आईएएनएस)