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प्रतीकात्मक Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कड़े निर्देशों के बावजूद प्रिंटेड प्रोफार्मा में मजिस्ट्रेट द्वारा सम्मन आदेश जारी करने को दर्दनाक व दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में आदेश जारी करना गंभीर मामला है, प्रोफार्मा भरकर जारी आदेश से स्पष्ट है कि मजिस्ट्रेट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और मकैनिकल आदेश जारी किया है।
कोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के मजिस्ट्रेट के आचरण को निंदनीय बताया और जारी सम्मन आदेश रद कर दिया तथा न्यायिक विवेक का इस्तेमाल कर नए सिरे से सम्मन आदेश जारी करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार पचौरी ने पिंकी की याचिका पर दिया है।
याचिका में वैधता को चुनौती दी गई
याचिका पर अधिवक्ता वी के चंदेल व मयंक कृष्ण चंदेल ने बहस की। याची के खिलाफ थाना बीटा-2 में मारपीट गालीगलौज करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट ने प्रोफार्मा भरकर सम्मन आदेश जारी किया। जिसकी वैधता को चुनौती दी गई। कहा गया कि अंकित केस में हाईकोर्ट ने प्रिंटेड प्रोफार्मा आदेश को अवैध माना है और कहा है कि आदेश न्यायिक विवेक से पारित करना अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा कि प्रोफार्मा में खाली स्थान स्टाफ द्वारा भरा गया है और मजिस्ट्रेट ने हस्ताक्षर कर जारी किया है। स्पष्ट है मजिस्ट्रेट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है। ऐसा आदेश मान्य नहीं है। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को न्यायिक विवेक का इस्तेमाल कर नए सिरे से सम्मन आदेश जारी करने का निर्देश दिया है।
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