लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। भाजपा गठबंधन में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। इस घोषणा के साथ ही भाजपा के एक और सहयोगी दल निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कही है। वहीं, भाजपा की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गई है।
ओमप्रकाश राजभर का तेवर सख्त
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने आजमगढ़ में एक प्रेस वार्ता में कहा, "त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में हम पूरी ताकत से उतरेंगे और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारने के निर्देश दे दिए हैं।" राजभर का यह रुख न केवल भाजपा से दूरी को दिखाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि वह अपने दम पर प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान मजबूत करना चाहते हैं।
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल पार्टी ने भी चुनी अलग राह
भाजपा की एक और सहयोगी पार्टी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने भी मिर्जापुर में स्पष्ट किया कि वह पंचायत चुनावों में भाजपा के साथ नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरेगी। इस कदम से साफ है कि भाजपा के छोटे सहयोगी अब अपनी स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हैं।
भाजपा की चुप्पी रणनीति या भ्रम?
इस पूरे घटनाक्रम पर भाजपा ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। न ही पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की ओर से कोई बयान आया है, और न ही इन दलों को मनाने की कोशिशें सार्वजनिक रूप से सामने आई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा की चुप्पी दो तरह से देखी जा सकती है।
रणनीतिक मौन: भाजपा चाहती है कि सहयोगी दलों के भीतर से ही मनमुटाव सुलझे और वह अपनी स्थिति को उच्च स्तर पर मजबूत रखे।
सांकेतिक दूरी: यह भी संभव है कि भाजपा को इन दलों की उपयोगिता अब सीमित लग रही हो और वह अगले चुनावों के लिए नई रणनीति पर काम कर रही हो।
राजनीतिक असर और आगे की राह
राजभर का प्रभाव: पूर्वांचल की राजनीति में ओमप्रकाश राजभर का खासा प्रभाव है, खासकर पिछड़ी जातियों और कमजोर वर्गों में। अगर वे पंचायत चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।
भाजपा के लिए चेतावनी: यदि सहयोगी दलों की बगावत बढ़ती है, तो यह भाजपा की सीटों पर भी असर डाल सकता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां स्थानीय समीकरण अधिक असर करते हैं।
विपक्ष के लिए मौका: समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे दल इन बिखरावों को एक अवसर के रूप में देख सकते हैं और भाजपा के खिलाफ साझा रणनीति बना सकते हैं।
पंचायत चुनाव बनाएंगे 2027 की राह
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही स्थानीय स्तर के हों, लेकिन इनमें बनने वाले समीकरण 2027 के विधानसभा चुनावों की ज़मीन तैयार करेंगे। ऐसे में ओमप्रकाश राजभर और शोषित समाज पार्टी के संजय निषाद का भाजपा से अलग होना महज राजनीतिक 'दूरी' नहीं, बल्कि आगामी 'दिशा' का संकेत भी हो सकता है।
यूपी में बीजेपी के 67 और सपा के हैं पांच जिला पंचायत अध्यक्ष
वर्ष 2021 जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। कुल 75 जिलों में सत्ता पक्ष ने 67 पर पचरम लहराया। इनमें 21 पर पहले ही भाजपा प्रत्याशियों ने निर्विरोध जीत हासिल कर ली थी। समाजवादी पार्टी का जो हाल रहा, उसकी शायद उसने कल्पना भी नहीं की थी। सपा को केवल पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। इसके अतिरिक्त रालोद, जनसत्ता दल, व निर्दलीय ने एक-एक सीट हासिल की।
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