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UP ATS : मदरसे के बच्चों, मौलवियों और प्रबंधकों की पूरी डिटेल मांगी, 8 जिलों के सभी मदरसों को नोटिस

एटीएस मुख्यालय ने प्रयागराज, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को पत्र भेजा है। हर व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, जन्म तिथि, पूरा पता और मोबाइल नंबर सहित सारी जानकारी भेजने को कहा गया है।

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Vivek Srivastav
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प्रतीकात्‍मक Photograph: (सोशल मीडिया)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश के एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (यूपी एटीएस) ने मदरसों को लेकर सख्त कदम उठाया है। लखनऊ स्थित एटीएस मुख्यालय ने प्रयागराज, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, फतेहपुर, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को पत्र भेजा है। इस पत्र में हर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों, पढ़ाने वाले मौलवियों और प्रबंधकों की पूरी डिटेल मांगी गई है। 
पत्र में हर व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, जन्म तिथि, पूरा पता और मोबाइल नंबर सहित सारी जानकारी जल्द से जल्द भेजने को कहा गया है। खासकर प्रयागराज जिले के सभी मदरसों की पूरी लिस्ट और विस्तृत जानकारी एटीएस की प्रयागराज यूनिट को सबसे पहले उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। बाकी सात जिलों की रिपोर्ट भी जल्द मुख्यालय भेजनी होगी।

खुफिया इनपुट मिलने के बाद उठाया गया कदम

एटीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कुछ खुफिया इनपुट मिले थे, जिनमें कुछ मदरसों में संदिग्ध गतिविधियों की आशंका जताई गई थी, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर यह कवायद की जा रही है। उन्होंने साफ किया कि ज्यादातर मदरसे अच्छा काम कर रहे हैं और यह सिर्फ सत्यापन का काम है, लेकिन किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। 

विभाग ने सभी मदरसों को नोटिस भेजा

प्रयागराज के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने बताया कि उनके विभाग ने सभी मदरसों को नोटिस भेज दिया है और अगले कुछ दिनों में पूरी सूची एटीएस को सौंप दी जाएगी। इसी तरह बाकी जिलों में भी काम तेजी से चल रहा है।
एटीएस ने स्पष्ट किया है कि अभी सिर्फ जानकारी इकट्ठा की जा रही है। इसके बाद जरूरत पड़ी तो मौके पर जाकर सत्यापन किया जाएगा। फिलहाल, किसी मदरसे पर कोई छापा या सीधी कार्रवाई नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग के सूत्रों का कहना है कि यह नियमित सुरक्षा जांच का हिस्सा है और इससे घबराने की कोई बात नहीं है। वहीं, कुछ लोग इसे सुरक्षा के लिए जरूरी कदम बता रहे हैं तो कुछ इसे अल्पसंख्यक समुदाय पर दबाव मान रहे हैं।

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