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UP News : मीडिया पर जमकर क्‍यों बरसे अखिलेश यादव? लगा दिए ये बड़े आरोप

समाजवादी पार्टी के मुखिया व यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि कुछ मीडिया हाऊस महाकाव्‍यों को गलत तरीके से तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं, उनका लक्ष्‍य है कि किसी तरह परिवार को तोड़कर कमजोर किया जा सके।

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Vivek Srivastav
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समाजवादी पार्टी के मुखिया व यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजे आने के बाद से देश भर की राजनीति में भूचाल मचा हुआ है। एक तरफ महागठबंधन की हार और दूसरी तरफ एनडीए की प्रचंड जीत, इन दोनों तथ्‍यों ने राजनीति को लेकर नए सिरे से सोचना मजबूर कर दिया है। वहीं, इस बीच राजद परिवार के भीतर मची कलह ने भी राजनीतिक कोलाहल मचा रखा है। इन सबके बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया व यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने इन सबका ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया है। उन्‍होंने आरोप लगाया है कि कुछ मीडिया हाऊस महाकाव्‍यों को गलत तरीके से तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं, उनका लक्ष्‍य है कि किसी तरह परिवार को तोड़कर कमजोर किया जा सके। इस मुद्दे को लेकर अखिलेश ने सोशल मीडिया एक्‍स पर एक के बाद एक दो पोस्‍ट किए और मीडिया पर जमकर निशाना साधा। 

अखिलेश यादव ने क्‍या कहा एक्‍स पर 

सपा मुखिया ने सोशल मीडिया एक्‍स पर लिखा, प्रिय परिवारवालों, कुछ मीडिया हाऊस हमारे महाकाव्यों की बातों और संदर्भों को गलत तरीके से प्रस्तुत करके उनका अपमान कर रहे हैं और इन महाकाव्यों को मानने वालों की धार्मिक भावनाओं को आहत भी कर रहे हैं। ये राजनीतिक 'दानाजीवी मीडिया हाऊस' बार-बार परिवारवाद के नाम पर जो एजेंडा चला रहे हैं, क्या वो ये नहीं जानते हैं कि हमारे दोनों महाकाव्यों के पीछे की सांकेतिक महाकथा का आधार परिवार रहा है। दरअसल सत्ता-भक्ति में लीन ये लोग जाने-अनजाने में 'परिवार' के नाम पर हमारी पौराणिक महागाथाओं का मखौल उड़ा रहे हैं और उनकी प्रतीकात्मक कहानियों को बदनाम कर रहे हैं। ऐसी बातों से परिवार कमजोर होते हैं और महाकाव्यों का अपमान होता है। 

मोदी-योगी पर साधा निशाना 

अखिलेश यादव ने आगे लिखा, सच तो ये है कि ये जिन स्वार्थी लोगों के लिए काम कर रहे हैं, वो स्वयं परिवार और संबंधों को कोई महत्व नहीं देते हैं। ये 'मीडिया हाउस' उनके परिवारों की कहानियां छापने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते हैं? उनके उपेक्षित छोड़ दिए गए घरवालों के बारे में समाचार प्रकाशित क्यों नहीं करते हैं? गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ अपने परिवार से दूरी बना चुके हैं और वे किसी भी तरह अपने संबंधों को लाभ उठाकर परिवार को आगे नहीं ले जाना चाहते। 

परिवार को राजनीति में सामने से नहीं पिछले दरवाजे से लेकर आते हैं

अखिलेश यादव ने कहा कि जो लोग राजनीति को पैसा कमाने की मशीन समझते हैं, उनके मन के अंदर चोर बैठा होता है, इसीलिए वो राजनीति को ख़राब मानकर अपने परिवार को राजनीति में सामने से नहीं पिछले दरवाजे से लेकर आते हैं। जो लोग राजनीति के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं और उसे जन सेवा का माध्यम मानते हैं वो ही ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों की भलाई के लक्ष्य से प्रेरित होकर अपने परिवार को संघर्ष के लिए समर्पित कर देते हैं। ये परिवारवाद नहीं, बलिदानवाद होता है क्योंकि उनके परिवारवालों को भी अहंकारी सत्ताओं और वर्चस्ववादी लोगों से लड़ना पड़ता है, हर तकलीफ  का सामना करना पड़ता है। जबकि इसके विपरीत सुविधाभोगी लोग अपने परिवार को ऐशो-आराम के कामों मे लगाकर, उनके जरिए अपने लिए जायदाद-दौलत इकट्ठा करने में लग जाते हैं। 

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भाजपाई और उनके अपरिवारवादी संगी-साथी व दानाजीवी मीडिया हाऊस घोषित कर दें कि 

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा, उसके संगी साथी समेत मीडिया हाऊस को दानाजीवी बताते हुए कुछ सवाल भी किए, जो निम्‍न हैं। 
- वो आज ही उन सब लोगों को अपनी पार्टी और संगठन से निकाल देंगे, जिनके माता-पिता या परिवार का अन्य कोई सदस्य कभी भी राजनीति में रहा है। 
- उन सभी को छोटे पद से लेकर मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद तक से हटा देंगे, जिनकी मठाधीशी का आधार पारिवारिक संबंध है। 
- ये उनसे चंदा नहीं लेंगे जिनके कारोबार में परिवार लगा है। 
- नाम के बाद आनेवाले पारिवारिक नाम (सरनेम) का प्रयोग बंद कर देंगे।
- जिनके भी परिवार हैं उनसे वोट नहीं लेंगे। 
- सरकार ये नियम बना दे कि अधिकारी की बेटी या बेटा अधिकारी नहीं बनेगा; डॉक्टर का, डॉक्टर नहीं बनेगा; वकील और न्यायाधीश का एडवोकेट या जज नहीं बनेगा; पत्रकार का जर्नलिस्ट नहीं बनेगा; कारोबारी का कारोबारी नहीं बनेगा; और मीडिया हाउस के मालिक की बच्ची या बच्चा मीडिया हाउस का मालिक नहीं बनेगा… इत्यादि।
- दानाजीवी मीडिया हाऊस भी घोषित करें कि अपने परिवार के लोगों से मैनेजमेंट के सारे पद और शेयर वापस ले लेंगे और अपने एम्प्लॉयीज को दे देंगे। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो उनके विरुद्ध भी शांतिपूर्ण जनआंदोलन करने का हक उनके एम्प्लॉयीज और जनता को होगा। 

अखिलेश बोले, ये चाहते हैं कि परिवार तोड़ दिए जाएं

सपा मुखिया ने आगे लिखा कि सच्चाई तो ये है कि भाजपा और उनके अपरिवारवादी संगी-साथी चाहते है कि परिवार तोड़ दिए जाएं, लोगों को अकेला कर दिया जाए, फिर उनको डराकर अपने प्रभाव में लेकर उनका शोषण किया जाए। भुखमरी, गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, भर्ती-नौकरी, खेती-मजदूरी, काम-कारोबार, तंगी-मंदी जैसे मुद्दों पर लोग इकट्ठा न हो पाएं। ये सब नकारात्मक स्वार्थी लोग एकजुटता से डरते हैं, और चूंकि परिवार एकजुटता की पहली सीढ़ी होते हैं, इसीलिए परिवार को नकारते हैं। परिवार, कुनबा, कुल जब सकारात्मक होकर एक-दूसरे से जुड़ते हैं तभी समाज बनता है। सच्चा समाज नकारात्मक लोगों के ख़िलाफ़ होता है, इसीलिए जब कोई चोर-डकैत गांव-बस्ती में घुस आता है तो ये सारा समाज इकट्ठा होकर, एक होकर उसको खदेड़ देता है। भाजपाई और उनके संगी-साथी अंदर से डरे हुए लोग हैं, इसीलिए परिवार की बुराई करते हैं। इनका बस चले तो कल को ये शादी-विवाह भी बंद करवा दें जिससे कि परिवार बने ही नहीं यहां तक कि पारिवारिक एकजुटता की तस्वीरों को भी बैन कर दें।

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मीड‍िया हाऊसों पर जमकर बरसे अखिलेश यादव 

सपा मुखिया ने कहा कि कुछ स्वार्थी मीडिया हाउस भी चाहते हैं कि परिवार टूट जाएं और लोग अकेले पड़ जाएं, जिससे अकेले लोग अलग-अलग घरों में रहें और उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिले, हर किसी का अपना टीवी, फ्रिज और बाकी सामान हो, जिसकी बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियां अपना विज्ञापन करें और इनको विज्ञापन के लिए पैसे देकर, इनका खजाना भरें। अखिलेश ने सवाल किया कि ये मीडिया हाउस बताएं कि 'प्रायोजित समाचार, फेक न्यूज, एजेंडा-प्रोग्राम चलाने की दानापोषी व विज्ञापनों से कमायी गई अपनी अरबों की कमाई में से, कितना परिवार को दिया और कितना अपने एम्प्लॉयीज को। 

जो अब दुनिया में नहीं, उनको तो सम्‍मान दें 

अखिलेश यादव ने तल्‍ख लहजे में आगे कहा कि इन मीडिया हाउस और उनके पोषकों के अंदर इतनी नैतिकता तो होनी ही चाहिए कि जो लोग अब दुनिया में नहीं हैं, उनको सम्मान के साथ प्रदर्शित करें। दिवंगतों के प्रति सम्मान की भावना रखना हमारी सांस्कृतिक परंपरा रही है। इन जैसे धनलोभी मीडिया हाउसों से पत्रकारिता के मान, मूल्य, मर्यादा और सैद्धांतिक सीमाओं की अपेक्षा करना तो व्यर्थ है लेकिन अपने देश की सांस्कृतिक पंरपरा की निरंतरता की रत्ती भर उम्मीद तो की जा सकती है या इनमें इतनी भी नैतिकता नहीं बची कि कम-से-कम गुजरे हुए लोगों को तो अपनी खुदगर्जी का शिकार न बनाएं। सम्मान नहीं कर सकते तो अपमान भी न करें! क्या इस अपमान का आधार ये है कि ऐसे लोग शोषित-वंचित समाज से आते हैं? 

अब पीडीए नहीं सहेगा, खुलकर कहेगा!!!

अंत में अखिलेश यादव ने कहा कि हर परिवारवाले के दुख, दर्द, तकलीफ को अपना माननेवाला… हर परिवार की तरक्‍की, खुशहाली और परिवारों से मिलकर बननेवाले समाज में अमन-चैन चाहनेवाला…आपका अखिलेश यादव।

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