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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। कहते हैं कि नाम में क्या रखा है लेकिन यूपी की राजनीति को देखें तो नाम में बहुत कुछ रखा है। नाम में 2027 के चुनाव का एजेंडा निहित है तो नाम में ही विरोध की राजनीति भी। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लखीमपुर खीरी के एक गांव मुस्तफाबाद का नाम बदलकर कबीर धाम किए जाने के बाद राजनीति गरमा गई है। नामकरण की राजनीति का यह पहला उदाहरण तो नहीं था लेकिन अब नए सिरे से इसमें जान आई है क्योंकि इसमें आगामी चुनाव की राजनीति की झलक मिलती है। यही वजह है कि विपक्ष इसे भाजपा की वोट की राजनीति के रूप में देख रहा है तो भाजपा सांस्कृतिक पुनरोद्धार की ओट में जीत की संभावनाएं ढूंढ़ रही है।
एक भी मुसलमान नहीं लेकिन गांव का नाम मुस्तफाबाद
लखीमपुर खीरी में स्मृति महोत्सव-25 में शामिल होने गए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नाम बदलने की घोषणा जिस तरीके से की, उसमें भी चुनावी संदेश स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था। भरी सभा में उन्होंने पूछा कि क्या इस गांव में कोई मुसलमान है? जवाब मिला कि एक भी नहीं। फिर उन्होंने सोद्देश्य सवाल पूछा कि फिर इसका नाम मुस्तफाबाद क्यों? इसके बाद उन्होंने घोषित किया कि गांव को अब कबीर धाम कहा जाएगा। प्रकट रूप में यह एक प्रशासनिक घोषणा भर नजर जरूर आता है लेकिन यह भाजपा सरकार के उसी एजेंडा का हिस्सा थी जिसके तहत नामकरण को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और इसके जरिये आस्था और इतिहास की पुनर्स्थापना का संदेश जनमानस को दिया जाता रहा है।
फैजाबाद हुआ अयोध्या और इलाहाबाद प्रयागराज
योगी सरकार के आठ साल में वैसे तो दर्जनों स्थानों के नाम बदले जा चुके हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है फैजाबाद को अयोध्या और इलाहाबाद को प्रयागराज किया जाना। अयोध्या हिंदुओं की धार्मिक अस्मिता का केंद्र है और वहां भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनाने के साथ भाजपा सरकार हिंदुओं में जनजागरण का काम पहले ही कर चुकी है। गुलामी के अवशेषों को हटाने की दिशा में वहां फैजाबाद नाम हटाया गया। इसी प्रकार इलाहाबाद जहां कि माघमेला और महाकुंभ जैसे आयोजन होते हैं और जिसकी ख्याति गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के रूप में है, उसका नाम प्रयागराज करके भी यही संदेश दिया गया कि भाजपा, धर्मनिरपेक्षता की आड़ में विरासत मिटाने के खेल को खत्म करना चाहती है। यह अलग बात है कि अभी भी वहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट का नाम नहीं बदला गया है। इसी क्रम में मुगल सराय स्टेशन को पं. दीन दयाल उपराध्याय जंक्शन का नाम दिया गया। इसके साथ अंबेडकर नगर में अकबरपुर बस स्टैंड को 'श्रवण धाम बस स्टैंड' नाम दिया गया।
विपक्ष का आरोप, मुद्दों से ध्यान बांटने का तरीका
मुस्तफाबाद का नाम कबीर धाम किए जाने पर विपक्ष की ओर से विरोध स्वाभाविक ही था और हुआ भी। समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि योगी सरकार मुद्दों से जनता का ध्यान बंटाने के लिए नामकरण की राजनीति कर रही है। इस समय बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है और भाजपा के पास इन समस्याओं का समाधान नहीं है। सपा प्रवक्ता मनीष सिंह ने भी इसे वोटों की राजनीति करार दिया। दूसरी ओर भाजपा के मीडिया प्रमुख मनीष दीक्षित मानते है कि सरकार अपने गौरवशाली इतिहास को पहचान देने का काम कर रही है, अपनी सभ्यता को सामने लाने का काम कर रही है।
मायावती शासन में भी बदले गए थे कई नाम
नाम बदलकर राजनीतिक संदेश देने में बहुजन समाज पार्टी भी पीछे नहीं रही थी। मायावती के कार्यकाल में अमेठी को छत्रपति शाहूजी महाराज नगर, हाथरस को महामायानगर, शामली को प्रबुद्ध नगर, हापुड़ को पंचशील नगर और कानपुर देहात को रमाबाई नगर बनाया गया था। लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी को छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय कर दिया गया था। हालांकि अखिलेश यादव की सपा सरकार आने पर इन नामों को यह कहते हुए बहाल कर दिया गया था कि यह वर्गीय पक्षपात है।
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