महाकुंभ नगर, वाईबीएन नेटवर्क।
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर हर बारहवें वर्ष आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला, भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालुओं के साथ नागा साधुओं का दिव्य दर्शन इस मेले को और भी खास बना देता है। सूर्योदय की पहली किरण के साथ भस्म से लिपटी देह, रुद्राक्ष की मालाएं, हाथों में चिमटा और सिर पर जटा वाले ये साधु कुंभ के सबसे बड़े आकर्षण बनते हैं।
शाही स्नान का अद्भुत दृश्य
महाकुंभ में नागा साधुओं का शाही स्नान एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करता है। गंगा के पवित्र जल में स्नान करते इन साधुओं की तपस्या और त्याग का यह उत्सव, धर्म और आध्यात्म का प्रतीक है। नागा साधुओं की लंबी परंपरा और उनकी गहरी आध्यात्मिकता इस आयोजन को ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती है।
कठोर जीवनशैली और तपस्या
नागा साधुओं का जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक है। 12 वर्षों की कठोर साधना और ब्रह्मचर्य पालन के बाद ही कोई व्यक्ति नागा साधु बन सकता है। हिमालय जैसे दुर्गम स्थानों पर ध्यान और साधना करने वाले ये साधु, सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह मुक्त होकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति का मार्ग अपनाते हैं।
महिला नागा साधुओं की भागीदारी
महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। "जूना अखाड़ा" में महिलाओं के लिए विशेष स्थान है, जहां वे "माई" या "अवधूतानी" के रूप में अपनी तपस्या करती हैं। शास्त्र और शस्त्र दोनों में निपुण ये महिलाएं दिखाती हैं कि आध्यात्मिकता में लिंग का कोई भेद नहीं है।
धर्म और संस्कृति के स्तंभ
नागा साधु न केवल भारतीय धर्म और संस्कृति के रक्षक हैं, बल्कि त्याग और तपस्या का एक जीवंत उदाहरण भी हैं। कुंभ मेले में उनकी उपस्थिति आस्था के प्रति जनसाधारण की आस्था को और अधिक गहरा करती है।
महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धर्म और संस्कृति का उत्सव है, बल्कि नागा साधुओं की तपस्या और त्याग को भी नमन करता है। उनकी उपस्थिति इस आयोजन को आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करती है।