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कूड़ा उठाते बच्चें Photograph: (moradabad )
सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया,ताकि गरीबों के बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मिल सके। बावजूद इसके मुरादाबाद में बच्चे पढ़ने की उम्र में पढ़ने के बजाय कचरा बीन रहे हैं। सरकार बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होने का दावा कर करती है,लेकिन यहां सैकड़ों नौनिहाल कचरे के ढेर में ही अपना भविष्य तलाश रहे हैं। उनकी रोजी-रोटी इसी कचरे की ढेर पर टिकी हुई है। यानी कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनकर ही वे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं।
यंग भारत की टीम ने शुरू, की पड़ताल सामने आई हकीकत
सरकार के दावों की जब यंग भारत की टीम ने पड़ताल शुरू की तो हकीकत कुछ और ही नजर आई। जिस उम्र में बच्चों के कंधों पर किताब का बैग होना चाहिए,उस उम्र में बच्चें कचरे से भरे बोरे टांग कर ले जाते हुए नजर आ रहे हैं। ये बच्चे हमेशा गंदी जगहों से ही प्लास्टिक उठाते हैं, इसी के चलते गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ये बच्चे कूड़े के बीच से लोहा,शीशा व प्लास्टिक की बोतलें, लकड़ी के सामान व कागज बीनकर बड़े बड़े कचरे के गोदामों में लेकर जाते हैं,जहां से इनको अपनी आजीविका चलाने के पैसे मिल जाते हैं।
नाम का रह गया बाल श्रम अधिनियम बच्चें करते मजदूरी
बाल श्रम अधिनियम के तहत बच्चों को काम लेना कानूनी अपराध है। पर कूड़े कचरे के ढेर में भविष्य तलाशने वाले बच्चों को इस अधिनियम से कोई लेना देना नहीं है। उनकी यही दिनचर्या है और जीने का साधन भी। कूड़े कचरे के ढेर से कबाड़ चुनकर यह बच्चे अपना तो पेट भरते ही हैं साथ ही साथ घर चलाने में परिजनों की भी सहायता करते हैं।जहां तक शिक्षा की बात है ये बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं,और कूड़ा कचरा बीनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं।
सूरज की पहली किरण के साथ जहां बच्चों की पीठ पर किताबों से भरा बैग होना चाहिए,वहीं दूसरी ओर कचरा बीनने वाले इन बच्चों की बच्चे पीठ पर प्लास्टिक का बोरा होता है। ये बच्चे पीठ पर बड़ा सा बोरा लिए कबाड़ चुनने के लिए निकल पड़ते हैं। इन बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की कोई गारंटी लेने को तैयार नहीं है।
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