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फोटो अमरीश शर्मा Photograph: (MORADABAD )
मुरादाबाद, वाईबीएन संवाददाता मुरादाबाद के रहने वाले अमरीश शर्मा ने यह साबित कर दिया है कि यदि मन में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो, तो राहें खुद-ब-खुद बन जाती हैं। जापान में लाखों की सैलरी वाली नौकरी छोड़कर उन्होंने एक ऐसा काम शुरू किया है, जो न सिर्फ आत्मनिर्भर भारत की मिसाल है, बल्कि हमारी सनातन संस्कृति को भी नई ऊर्जा दे रहा है।
विदेश में सीखी वफादारी, देश में अपनाई संस्कृति
अमरीश ने एमए, एमबीए, ज्योतिष, जापानी भाषा, इलेक्ट्रीशियन और ऑटोमोबाइल जैसे कई कोर्स किए। इसके बाद उन्होंने कई नौकरियाँ कीं, और अंत में जापान में बतौर जापानी भाषा गाइड लाखों की सैलरी वाली नौकरी मिल गई। लेकिन वहाँ रहकर उन्होंने कुछ ऐसा देखा, जिसने उनकी सोच ही बदल दी — जापानी लोग अपनी चीज़ों से बेहद प्यार करते हैं, और विदेशी चीज़ों से दूरी बनाए रखते हैं।
गाय के गोबर से नई शुरुआत
नौकरी छोड़कर वे मुरादाबाद लौटे और कान्हा गौशाला में गाय के गोबर से दीये, धूपबत्ती, गमले, जैविक खाद जैसे उत्पाद बनाना शुरू किया। उन्होंने खुद मशीनें तैयार कीं और अब उनके बनाए उत्पाद देश के कोने-कोने में जा रहे हैं।
नफे से नहीं, नीयत से चलता है ये काम
अमरीश का काम कोई बड़ा उद्योग नहीं, बल्कि एक सेवा है। वह इसे व्यावसायिक नजर से नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन की तरह करते हैं। उनका मकसद सिर्फ कमाई नहीं, बल्कि देश की सनातन संस्कृति को घर-घर तक पहुँचाना है।
दिल को छू गया एक सवाल
अमरीश के मन में एक सवाल उठा — "अगर ये लोग अपनी संस्कृति को इतना मानते हैं, तो हम क्यों नहीं?" बस, यहीं से उनकी ज़िंदगी ने मोड़ लिया।
सिखाता है कि असली सफलता क्या है
अमरीश की कहानी हमें बताती है कि असली सफलता पैसों में नहीं, उस काम में है जो दिल से जुड़ा हो। और अगर वो काम अपने देश, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से जुड़ा हो — तो फिर बात ही कुछ और है।
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