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फोटो: मुरादाबाद विकास प्राधिकरण
मुरादाबाद वाईवीएन संवाददाता। ट्रांसफर तो नियम है, लेकिन नियम किसके लिए है,आम बाबू के लिए या उन खास अफसरों के लिए जो सत्ता की चिट्ठियों पर सवार होकर नियमों को रौंदते हैं। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद विकास प्राधिकरण में एक नाम वर्षों से स्थायित्व का पर्याय बन चुका था।
ट्रांसफर लेटर आते रहे,सिफारशी करते रहे नजरअंदाज
अधिशासी अभियंता (सिविल) के पद पर तैनात इस अधिकारी ने बीते आठ वर्षों में न केवल कुर्सी संभाली, बल्कि व्यवस्था को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। ट्रांसफर के आदेश आते रहे, लेकिन हर बार सिफारिशों की तलवार उनके पक्ष में झूलती रही। और अब जबकि शासन ने उनका स्थानांतरण दूसरी जगह कर दिया है, सवाल ये उठता है, क्या ये अंत है या नई शुरुआत? ट्रांसफर लेटर आते ही सिफारिशों का दौर शुरू मुरादाबाद विकास प्राधिकरण एक ऐसा विभाग रहा है, जहाँ आम जनता को विकास के नाम पर आश्वासन, और भीतरखाने में अफसरों को मलाईदार टेंडर मिलते रहे हैं।
आज तक नहीं हिली साहब की कुर्सी
साहब का कार्यकाल इन दोनों पहलुओं का चरम उदाहरण रहा। टेंडर प्रक्रिया में बंदरबांट, निर्माण गुणवत्ता में लापरवाही, और फाइलों की 'कीमत के हिसाब से' गति, ये सब बातें कर्मचारी से लेकर ठेकेदार तक, सबकी जुबान पर थीं। शिकायतें होती रहीं, फाइलें भेजी जाती रहीं, RTI में खुलासे भी हुए, लेकिन साहब की कुर्सी पर कोई असर नहीं पड़ा। वजह साफ थी, राजनीतिक पहुंच और आंतरिक सेटिंग। हर बार ट्रांसफर की अटकलें लगतीं, लेकिन सिफारिशों का कवच उन्हें बचा लेता था।
8 वर्ष में 3 बार हुए स्थानांतरण के आदेश
13 जून 2025 को शासन द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि साहब को तत्काल प्रभाव से दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया है। इस आदेश में सिर्फ कार्यभार ग्रहण करने की बात है,न कोई नोटिस, न ही पिछली शिकायतों की समीक्षा का ज़िक्र किया गया है।ये वही शासन है, जो आम कर्मचारी के दस दिन की देरी पर स्पष्टीकरण मांगता है। लेकिन जब अफसर सैकड़ों करोड़ के विकास कार्यों में अनियमितता करें, तब तत्काल कार्यभार कहकर फाइल बंद कर दी जाती है।
साहब का गाजियाबाद हो चुका है स्थानांतरण
साहब का ट्रांसफर गाजियाबाद जनपद में हुआ है। ये इलाका उभरता हुआ निर्माण क्षेत्र है। वहाँ विकास योजनाएँ, भू-उपयोग परिवर्तन, सड़क चौड़ीकरण और आवासीय परियोजनाओं की भरमार है। तो सवाल ये है कि साहब का ट्रांसफर आखिर कब तक होगा।अगर ट्रांसफर सजा होती, तो उनके खिलाफ विभागीय जांच का भी उल्लेख होता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह ट्रांसफर महज मुरादाबाद की जनता को शांत करने का उपाय है, न कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई।
पसंदीदा ठेकेदारों को ही मिलता है टेंडर
शासन और नौकरशाही के इस ‘संदिग्ध गठबंधन’ में आम जनता की भूमिका सबसे चिंताजनक है। हम शिकायत तो करते हैं, लेकिन संस्थानों पर दबाव नहीं बनाते। जब कोई RTI कार्यकर्ता या पत्रकार सवाल करता है, तो उसे अकेला छोड़ दिया जाता है।जब अफसर आठ साल तक एक ही कुर्सी पर डटे रहते हैं और हर टेंडर में एक ही ठेकेदार को काम मिलता है, तो यह सिर्फ एक अफसर का दोष नहीं होता, यह पूरी व्यवस्था की चुप्पी होती है। वो लक्षण जो बताता है कि भारत में ट्रांसफर नियम किताबों तक सीमित हैं। वो लक्षण जो यह दिखाता है कि भ्रष्टाचार को पकड़ने से ज्यादा आसान है, उसे स्थानांतरित कर देना। और सबसे अहम वो लक्षण जो यह साबित करता है कि सिफारिश आज भी योग्यता से बड़ी चीज़ है।
साहब के नाम से चलती है ट्रांसपोर्ट,कई करोड़ की प्रॉपर्टी
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन साहब के नाम से एक ट्रांसपोर्ट भी चलती है। मुरादाबाद में रहते हुए इस अधिकारी ने कई करोड़ रुपए की संपत्ति भी अर्जित की है। अब सवाल ये उठता है कि ट्रांसफर का आदेश तो साहब का आ गया लेकिन इनके द्वारा जमा की गई करोड़ों की संपत्ति पर कब जांच होगी।
सिर्फ ट्रांसफर क्यों,जांच क्यों नहीं?
साहब के लिए शासनादेश 13 जून को जारी किया गया है लेकिन अभी तक साहब ने कुर्सी नहीं छोड़ी है। अब देखने वाली बात ये होगी कि इस शासनादेश का साहब पालन करते हैं या ये आदेश भी पुराने आदेशों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
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