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नोएडा, वाईबीएन संवाददाता। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक बड़े मामले में जेपी ग्रुप के खिलाफ छापेमारी। यह कार्रवाई लगभग 12,000 करोड़ रुपये के घोटाले से जुड़ी है, जिसमें होमबायर्स और निवेशकों के साथ धोखा और फंड्स की हेराफेरी का आरोप है।
ईडी की टीम दिल्ली-एनसीआर और मुंबई में स्थित जेपी इंफ्राटेक, जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड, और उनसे जुड़ी अन्य कंपनियों जैसे गौरसंस, गुलशन, महागुन और सुरक्षा रियल्टी के 15 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर रही है। ईडी को शक है कि बड़ी मात्रा में फंड्स को डायवर्ट कर मनी लॉन्ड्रिंग की गई है। यह कार्रवाई उन हजारों होमबायर्स के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है, जो सालों से अपने घर का इंतज़ार कर रहे हैं। greater noida | Noida | Noida airport | greater noida industry | Ground Report Noida | Greater Noida Authority
यहां दस्तावेजों को जब्त किया जा रहा है। साथ ही सेल ऑफिस में मौजूद लोगों से पूछताछ की जा रही है।ED ने नोएडा ग्रेटरनोएडा और यमुना से Orchards , kasa isles , kensington Boulevard, Kensington park , Krescent Homes , Kosmos , Klassic के दस्तावेज लिए थे। इनकी फाइल भी चेक की जा रही है। डिजिटल दस्तावेज को देखा जा रहा है।
बता दे ED ने नोएडा प्राधिकरण से 9 बिल्डरों की जानकारी मांगी थी। इसी तरह यमुना और ग्रेटरनोएडा विकास प्राधिकरण से भी जानकारी मांगी थी। इस तरह से कुल 26 बिल्डरों की जानकारी ली गई है। जिनके यहां भी सीबीआई रेड कंडक्ट कर सकती है। हालांकि अभी जेपी इंफ्रा से जुड़े प्रोजेक्ट के दस्तावेज खंगाल रही है।
सीबीआई प्रोजेक्ट से संबंधित स्वीकृत पत्र, ले आउट प्लान, बकाया, रजिस्ट्री , के अलावा इनके को डेवलपर्स की जानकारी के आधार पर रेड कर रही है। जिसमें उन बायर्स का डेटा है जिनको बिल्डर ने सबवेंशन स्कीम के तहत लोन दिलाया और पैसे जमा नहीं किया। बिल्डर बायर्स और बैंक एग्रीमेंट के दस्तावेज भी खंगाले जा रहे है। बताया गया कि लोन के लिए लगाए गए अधिकांश दस्तावेज साठगांठ करके तैयार किए गए।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा में सब वेंशन स्कीम के तहत लाई गई ग्रुप हाउसिंग योजनाओं की शुरुआत वर्ष 2014 के आसपास हुई थी। योजना में धांधली के लिए कुछ बिल्डरों ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए बैंकों से लोन पास कराए। बैंकों ने बिना मूल्यांकन और निरीक्षण के रकम जारी कर दी। अधिकारियों के अनुसार, बिल्डर और बैंक के बीच अघोषित समझौते के तहत बैंकों ने बिल्डरों को लोन की पूरी राशि दे दी।
शर्तों के तहत फ्लैट का कब्जा मिलने तक बिल्डर को ही ईएमआई का भुगतान करना था, लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने ईएमआई देनी बंद कर दी और खरीदारों को फ्लैट भी नहीं दिए। इससे खरीदारों पर ईएमआई का बोझ आ गया और बड़ी संख्या में खरीदार डिफॉल्टर हो गए। कुछ वर्षों बाद इन योजनाओं को लाने वाले अधिकांश बिल्डर दिवालिया हो गए।