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Nithari case : आरोपी सुरेंद्र कोली 19 साल बाद हुआ आजाद

सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड के दोषी ठहराए गए सुरेंद्र कोली को बड़ी राहत दी है। अदालत ने उनकी क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करते हुए अंतिम लंबित मामले में भी बरी कर दिया। अब कोली जेल से रिहा हो सकेगा, क्योंकि बाकी सभी मामलों में वह पहले ही बरी हो चुका है।

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Ranjana Sharma
nitin 7 (3)
नोएडा, वाईबीएन डेस्‍क: नोएडा के चर्चित निठारी हत्याकांड के आरोपी सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें अंतिम लंबित मामले में भी बरी कर दिया। अब कोली जेल से बाहर आ सकेंगे, क्योंकि अन्य सभी मामलों में वह पहले ही बरी हो चुके हैं। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया, जिसने कोली की याचिका पर खुले कोर्ट में सुनवाई की थी।

असली अपराधी की पहचान साबित नहीं

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह अत्यंत दुखद और चिंताजनक है कि इतने लंबे समय तक चली जांच के बावजूद निठारी जैसे जघन्य अपराधों के असली दोषी की पहचान कानूनी रूप से स्थापित नहीं हो पाई। अदालत ने कहा कि अपराध भले ही भयावह थे और पीड़ित परिवारों की पीड़ा अपार थी, लेकिन आपराधिक कानून अनुमान या पूर्वधारणा के आधार पर दोषसिद्धि की अनुमति नहीं देता। अदालत ने यह भी कहा कि जांच और अभियोजन में कई गंभीर प्रक्रियागत खामियां रही हैं। घटनास्थल को सही तरीके से सुरक्षित नहीं किया गया, सबूतों को दर्ज करने में देरी हुई, रिमांड दस्तावेजों में विरोधाभास पाए गए और कोली को बिना अदालत के निर्देशित चिकित्सा जांच के लंबे समय तक हिरासत में रखा गया। इन परिस्थितियों में दोषसिद्धि को बनाए रखना न्यायसंगत नहीं है।

परिस्थितिजन्य साक्ष्य और स्वीकारोक्ति पर सवाल

पीठ ने स्पष्ट किया कि जिस स्वीकारोक्ति के आधार पर कोली को दोषी ठहराया गया था, वह वैधानिक मानकों को पूरा नहीं करती। अदालत ने कहा कि फोरेंसिक और जांच रिकॉर्ड में भी कई गुम कड़ियां हैं, जिनके अभाव में परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला अधूरी रह जाती है। कोर्ट के अनुसार जब इन त्रुटिपूर्ण साक्ष्यों को हटा दिया जाता है, तो बची हुई सामग्री से दोषसिद्धि को कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप कायम नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समान तथ्यों पर आधारित अन्य निठारी मामलों में भी पहले शीर्ष अदालत ने दोषसिद्धि रद्द की थी, इसलिए कोली के साथ अलग व्यवहार संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत का उपचारात्मक क्षेत्राधिकार ऐसी विसंगतियों को मिसाल बनने से रोकने के लिए अस्तित्व में है। इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया की त्रुटियाँ इतनी गंभीर थीं कि अदालत ने इसे अपवाद स्वरूप उपचारात्मक राहत देने योग्य माना। सुप्रीम कोर्ट ने कोली की दोषसिद्धि रद्द करते हुए निर्देश दिया कि यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।

18 साल बाद आया महत्वपूर्ण फैसला

यह फैसला उन पीड़ित परिवारों, कानूनी विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए अहम है, जो पिछले 18 वर्षों से निठारी कांड की न्यायिक प्रक्रिया पर नजर रखे हुए थे। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस प्रकरण से यह सबक लेना चाहिए कि जांच एजेंसियों को साक्ष्यों की वैज्ञानिक जांच और कानूनी प्रक्रिया के अनुपालन पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
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