Advertisment

Noida की इस बंजर भूमि में हरियाली और सुनाई देती है पक्षियों की चहचहाहट

‘शिव नादर इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस’ (आईओई) परिसर की पूर्वी सीमा के पास 10 एकड़ में फैले इस उद्यान में अब 805 प्रजातियों के पौधे, पक्षी (स्थानीय और मौसमी/प्रवासी), कीट के साथ ही नीलगाय, जंगली सूअर और साही रहते हैं।

author-image
Mukesh Pandit
themtech botanical garden
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

ग्रेटर नोएडा , वाईबीएन डेस्क। एक बड़ी भूमि पर जहां निर्माण का मलबा पड़ा रहता था और लंबी-लंबी घास उग आई थी, लेकिन यह उपेक्षित आर्द्रभूमि अब एक दशक बाद पक्षियों, कीटों और 3,000 पौधों के साथ जैव विविधता का पर्याय बन गयी है, जहां ऊंचाई वाले स्थानों में लगने वाले ‘रुद्राक्ष’ के पेड़ों से लेकर आमतौर पर शुष्क रेगिस्तान में पाए जाने वाले कैक्टस तक शामिल हैं। हरियाली और पक्षियों की चहचहाहट से गुंजायमान इस स्थान का नाम है ‘थीमैटिक बोटेनिकल गार्डन।

विद्यार्थियों के लिए पसंदीदा जगह है यह पार्क

दिल्ली से कुछ किलोमीटर दूर स्थित ‘शिव नादर आईओई’ में ‘स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज’ के डीन संजीव गलांडे ने एक समाचार एजेंसी को बताया, ‘‘जब इस विश्वविद्यालय का निर्माण किया जा रहा था तो एक ऐसा उद्यान विकसित करने का विचार था जहां छात्र और संकाय विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियों से रूबरू हो सकें, उनका अध्ययन कर सकें और पर्यावरण का आनंद ले सकें।’

ज्योति शर्मा की मेहनत रंग लाई

यह पारिस्थितिकी-पुनरुद्धार तत्कालीन प्रति-कुलपति शिखर मल्होत्रा ​​और कुलपति रूपांजलि घोष की मेहनत का नतीजा है और इसमें वनस्पतिशास्त्री ज्योति शर्मा ने उनकी सहायता की। शर्मा इससे पहले केरल में इसी तरह का उद्यान विकसित कर चुकी हैं। पथरीली जमीन को हरे-भरे क्षेत्र में तब्दील करने की कवायद शुरू की गई और सबसे पहले मलबे को हटाया गया तथा पानी के प्राकृतिक प्रवाह के लिए 10 डिग्री कोण वाला ढलान बनाया गया।

भारतभर से लाए गए पौधे

पौधारोपण का कार्य फरवरी 2015 में शुरू हुआ। शर्मा ने भारत के विभिन्न भागों की यात्रा की और बड़ी संख्या में पौधों की प्रजातियां एकत्रित कीं, जिनमें से कई दुर्लभ और लुप्तप्राय थीं। इनमें बैरिंग्टोनिया, बाओबाब (कल्पवृक्ष), बुद्ध नारियल, कपूर, चिनार, भारतीय स्वर्ग वृक्ष, फर्न वृक्ष, बेला-पत्ती अंजीर, कत्था, नींबू-सुगंधित गोंद, मैगनोलिया, महोगनी, महुआ, लाल चंदन, शिकाकाई, रीठा, सिंगापुर चेरी, चाय का पेड़ और विलो की चार प्रजातियां शामिल हैं।

Advertisment


गलांडे कहते हैं, ‘देश भर के बागवानी उद्यानों से कई पौधे खरीदे गए थे। कुछ अन्य देश के खास क्षेत्रों से मंगाए गए थे। प्रोफेसर शर्मा खुद जाकर उन्हें यहां लाईं। उन्होंने और उनकी टीम ने पौधों और उनके पर्यावास का अध्ययन किया और वैसा माहौल यहां बनाया ताकि वे पौधे पनप सकें। उन्होंने बताया कि जब पौधे बड़े और मजबूत हो गए तो उन्हें निर्दिष्ट क्षेत्रों में लगाया गया। दस साल बाद अब पौधे बड़े हो गए हैं और कुछ तो 20 फुट तक ऊंचे हो गए हैं। यह विशाल क्षेत्र अब जैव विविधता का जीता जागता उदाहरण बन गया है।

Advertisment
Advertisment